💐सोहमसाधना: विज्ञानमय कोश की साधना:By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब👍आत्मा के सूक्ष्म अन्तराल में अपने आप के सम्बन्ध में पूर्ण ज्ञान मौजूद है। वह अपनी स्थिति की घोषणा प्रत्येक क्षण करती रहती है ताकि बुद्धि भ्रमित न हो और अपने स्वरूप को न भूले। थोड़ा सा ध्यान देने पर आत्मा की इस घोषणा को हम स्पष्ट रूप से सुन सकते हैं। उस ध्वनि पर निरन्तर ध्यान दिया जाए तो उस घोषणा के करने वाले अमृत भण्डार आत्मा तक भी पहुँचा जा सकता है।जब एक साँस लेते हैं तो वायु प्रवेश के साथ-साथ एक सूक्ष्म ध्वनि होती है जिसका शब्द ‘सो .ऽऽऽ...’ जैसा होता है। जितनी देर साँस भीतर ठहरती है अर्थात् स्वाभाविक कुम्भक होता है, उतनी देर आधे ‘अ ऽऽऽ’ की सी विराम ध्वनि होती है और जब साँस बाहर निकलती है तो ‘हं....’ जैसी ध्वनि निकलती है। इन तीनों ध्वनियों पर ध्यान केन्द्रित करने से अजपा-जाप की ‘सोऽहं’ साधना होने लगती है।बाल वनिता महिला आश्रमप्रात:काल सूर्योदय से पूर्व नित्यकर्म से निपटकर पूर्व को मुख करके किसी शान्त स्थान पर बैठिए। मेरुदण्ड सीधा रहे। दोनों हाथों को समेटकर गोदी में रख लीजिए, नेत्र बन्द कर रखिये। जब नासिका द्वारा वायु भीतर प्रवेश करने लगे, तो सूक्ष्म कर्णेन्द्रिय को सजग करके ध्यानपूर्वक अवलोकन कीजिए कि वायु के साथ-साथ ‘सो’ की सूक्ष्म ध्वनि हो रही है। इसी प्रकार जितनी देर साँस रुके ‘अ’ और वायु निकलते समय ‘हं’ की ध्वनि पर ध्यान केन्द्रित कीजिए। साथ ही हृदय स्थित सूर्य-चक्र के प्रकाश बिन्दु में आत्मा के तेजोमय स्फुल्लिंग की धारणा कीजिए। जब साँस भीतर जा रही हो और ‘सो’ की ध्वनि हो रही हो, तब अनुभव कीजिए कि यह तेज बिन्दु परमात्मा का प्रकाश है। ‘स’ अर्थात् परमात्मा, ‘ऽहम्’ अर्थात् मैं। जब वायु बाहर निकले और ‘हं’ की ध्वनि हो, तब उसी प्रकाश-बिन्दु में भावना कीजिए कि ‘यह मैं हूँ।’सोऽहं’ साधना की उन्नति जैसे-जैसे होती जाती है, वैसे ही वैसे विज्ञानमय कोश का परिष्कार होता जाता है। आत्म-ज्ञान बढ़ता है। इस अभ्यास से धीरे धीरे हृदय चक्र पर ब्रह्म तेज के दर्शन होने लगते हैं।तथा समाधि की स्थिति में साधक पहुंच जाता है।💐गायत्री महा विज्ञान💐
💐सोहमसाधना: विज्ञानमय कोश की साधना: By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब 👍आत्मा के सूक्ष्म अन्तराल में अपने आप के सम्बन्ध में पूर्ण ज्ञान मौजूद है। वह अपनी स्थिति की घोषणा प्रत्येक क्षण करती रहती है ताकि बुद्धि भ्रमित न हो और अपने स्वरूप को न भूले। थोड़ा सा ध्यान देने पर आत्मा की इस घोषणा को हम स्पष्ट रूप से सुन सकते हैं। उस ध्वनि पर निरन्तर ध्यान दिया जाए तो उस घोषणा के करने वाले अमृत भण्डार आत्मा तक भी पहुँचा जा सकता है।जब एक साँस लेते हैं तो वायु प्रवेश के साथ-साथ एक सूक्ष्म ध्वनि होती है जिसका शब्द ‘सो .ऽऽऽ...’ जैसा होता है। जितनी देर साँस भीतर ठहरती है अर्थात् स्वाभाविक कुम्भक होता है, उतनी देर आधे ‘अ ऽऽऽ’ की सी विराम ध्वनि होती है और जब साँस बाहर निकलती है तो ‘हं....’ जैसी ध्वनि निकलती है। इन तीनों ध्वनियों पर ध्यान केन्द्रित करने से अजपा-जाप की ‘सोऽहं’ साधना होने लगती है। बाल वनिता महिला आश्रम प्रात:काल सूर्योदय से पूर्व नित्यकर्म से निपटकर पूर्व को मुख करके किसी शान्त स्थान पर बैठिए। मेरुदण्ड सीधा रहे। दोनों हाथों को समेटकर गोदी में रख लीजिए, नेत्र बन्द कर रखिये। जब ना...