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💐सोहमसाधना: विज्ञानमय कोश की साधना:By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब👍आत्मा के सूक्ष्म अन्तराल में अपने आप के सम्बन्ध में पूर्ण ज्ञान मौजूद है। वह अपनी स्थिति की घोषणा प्रत्येक क्षण करती रहती है ताकि बुद्धि भ्रमित न हो और अपने स्वरूप को न भूले। थोड़ा सा ध्यान देने पर आत्मा की इस घोषणा को हम स्पष्ट रूप से सुन सकते हैं। उस ध्वनि पर निरन्तर ध्यान दिया जाए तो उस घोषणा के करने वाले अमृत भण्डार आत्मा तक भी पहुँचा जा सकता है।जब एक साँस लेते हैं तो वायु प्रवेश के साथ-साथ एक सूक्ष्म ध्वनि होती है जिसका शब्द ‘सो .ऽऽऽ...’ जैसा होता है। जितनी देर साँस भीतर ठहरती है अर्थात् स्वाभाविक कुम्भक होता है, उतनी देर आधे ‘अ ऽऽऽ’ की सी विराम ध्वनि होती है और जब साँस बाहर निकलती है तो ‘हं....’ जैसी ध्वनि निकलती है। इन तीनों ध्वनियों पर ध्यान केन्द्रित करने से अजपा-जाप की ‘सोऽहं’ साधना होने लगती है।बाल वनिता महिला आश्रमप्रात:काल सूर्योदय से पूर्व नित्यकर्म से निपटकर पूर्व को मुख करके किसी शान्त स्थान पर बैठिए। मेरुदण्ड सीधा रहे। दोनों हाथों को समेटकर गोदी में रख लीजिए, नेत्र बन्द कर रखिये। जब नासिका द्वारा वायु भीतर प्रवेश करने लगे, तो सूक्ष्म कर्णेन्द्रिय को सजग करके ध्यानपूर्वक अवलोकन कीजिए कि वायु के साथ-साथ ‘सो’ की सूक्ष्म ध्वनि हो रही है। इसी प्रकार जितनी देर साँस रुके ‘अ’ और वायु निकलते समय ‘हं’ की ध्वनि पर ध्यान केन्द्रित कीजिए। साथ ही हृदय स्थित सूर्य-चक्र के प्रकाश बिन्दु में आत्मा के तेजोमय स्फुल्लिंग की धारणा कीजिए। जब साँस भीतर जा रही हो और ‘सो’ की ध्वनि हो रही हो, तब अनुभव कीजिए कि यह तेज बिन्दु परमात्मा का प्रकाश है। ‘स’ अर्थात् परमात्मा, ‘ऽहम्’ अर्थात् मैं। जब वायु बाहर निकले और ‘हं’ की ध्वनि हो, तब उसी प्रकाश-बिन्दु में भावना कीजिए कि ‘यह मैं हूँ।’सोऽहं’ साधना की उन्नति जैसे-जैसे होती जाती है, वैसे ही वैसे विज्ञानमय कोश का परिष्कार होता जाता है। आत्म-ज्ञान बढ़ता है। इस अभ्यास से धीरे धीरे हृदय चक्र पर ब्रह्म तेज के दर्शन होने लगते हैं।तथा समाधि की स्थिति में साधक पहुंच जाता है।💐गायत्री महा विज्ञान💐

💐सोहमसाधना: विज्ञानमय कोश की साधना: By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब 👍आत्मा के सूक्ष्म अन्तराल में अपने आप के सम्बन्ध में पूर्ण ज्ञान मौजूद है। वह अपनी स्थिति की घोषणा प्रत्येक क्षण करती रहती है ताकि बुद्धि भ्रमित न हो और अपने स्वरूप को न भूले। थोड़ा सा ध्यान देने पर आत्मा की इस घोषणा को हम स्पष्ट रूप से सुन सकते हैं। उस ध्वनि पर निरन्तर ध्यान दिया जाए तो उस घोषणा के करने वाले अमृत भण्डार आत्मा तक भी पहुँचा जा सकता है।जब एक साँस लेते हैं तो वायु प्रवेश के साथ-साथ एक सूक्ष्म ध्वनि होती है जिसका शब्द ‘सो .ऽऽऽ...’ जैसा होता है। जितनी देर साँस भीतर ठहरती है अर्थात् स्वाभाविक कुम्भक होता है, उतनी देर आधे ‘अ ऽऽऽ’ की सी विराम ध्वनि होती है और जब साँस बाहर निकलती है तो ‘हं....’ जैसी ध्वनि निकलती है। इन तीनों ध्वनियों पर ध्यान केन्द्रित करने से अजपा-जाप की ‘सोऽहं’ साधना होने लगती है। बाल वनिता महिला आश्रम प्रात:काल सूर्योदय से पूर्व नित्यकर्म से निपटकर पूर्व को मुख करके किसी शान्त स्थान पर बैठिए। मेरुदण्ड सीधा रहे। दोनों हाथों को समेटकर गोदी में रख लीजिए, नेत्र बन्द कर रखिये। जब ना

।। राम ।।By smajsevi Vnita kasnia Punjabश्रीमद्भागवत प्रसंग - (५२६)भाई-बहनों! नारायण, ज्ञान, कर्म तथा भक्ति परमेश्वर के साथ एकत्व स्थापित करने पर 'योग' हो जाते हैं। ध्यान का अभ्यास ज्ञानयोग, कर्मयोग तथा भक्तियोग की संसिद्धि में महत्वपूर्ण, उपयोगी तथा सहायक होने के कारण गीता में ध्यान एक योग के रुप में वर्णित किया गया है। ध्यान से आत्मबोध एवं जागरण संभव हो जाता है तथा मनुष्य राग, द्वेष, घृणा, क्रोध, चिन्ता, भय आदि से निवृत्त होकर साक्षी-भाव से जीवनयापन कर सकता है। यदि ध्यान के अभ्यास से अहंकार और वासना क्षीण न हो तो वह मात्र एक मनोरंजक व्यायाम है। विचार और व्यवहार में परिवर्त्तन होना ध्यान की सिद्धता की सच्ची कसौटी है। मनुष्य ध्यान के द्वारा मन और बुद्धि से परे ऊर्ध्वचेतना में आरोहण करते हुए दिव्य चेतना में निमग्न होकर, शून्यता से परे पूर्णता की अवस्था में सुरदुर्लभ परमानन्दानुभूति कर सकता है। ध्यान ऊर्जा, प्रकाश, दिव्यता और आनन्द-प्राप्ति का सर्वोच्य साधन है। मनुष्य के मन की शक्तियां असंख्य दिशाओं में बिखरी रहती हैं।उन्हें समेटने के लिए ध्यान का अभ्यास अमोघ उपाय है। योगीजन प्रायः खेचरी मुद्रा में ( अर्थात् जिह्वा को विपरीत तालु में लगाकर) भृकुटी पर दृष्टी एकाग्र करते हैं। भृकुटी का ध्यान मनुष्य के तीसरे नेत्र (अन्तर्चक्षु) को खोलकर अकल्पनीय मानसिक दृष्टि से भृकुटि में प्रकाश पर ध्यान को स्थिर किया जा सकता है। अधखुले नेत्रों से नासिका के अग्रभाग पर दृष्टि स्थिर करने से भृकुटी का मानसिक ध्यान सिद्ध हो जाता है। अनेक अन्य प्रकार से भी ध्यान का अभ्यास किया जा सकता है। साधक को नीरव, शान्त तथा एकान्त स्थल में सुविधाजनक मुद्रा में बैठकर धीरे-धीरे कोई छोटा-सा मंत्र (ॐ, सोऽहं, ॐ नमो भगवते वासुदेवाय, ॐ नमः शिवाय, नमः शिवाय कोई भी वैदिक मन्त्र जपते हुए ध्यान का अभ्यास करना चाहिए। ध्यान मस्तिष्क को ऊर्जा एवं प्रकाश देकर समस्त शारीरिक क्रियाओं (रक्त-प्रवाह, श्वास, हृदय-स्पन्दन, चयापचय इत्यादि को तथा मानसिक गति को पूर्णतः नियन्त्रित करने एवं सहज बनाने में सहायक होता है तथा शरीर एवं मस्तिष्क को गहरी विश्रान्ति प्रदान कर देता है। ध्यान का अभ्यास मनुष्य को न केवल समस्त मानसिक रोगों एवं दुर्व्यसनों की रुचि से मुक्त करके पूर्णतः सन्तुलित एवं स्वस्थ कर सकता है, बल्कि उसे दिव्य जीवन की ओर भी उन्मुख कर देता है ध्यान तनाव और अनिद्रा को दूर करने का अमोघ उपाय है। ध्यान के समय़ श्वास सीधा और गहरा होकर आयुवृद्धि करता है। योगी ध्यान द्वारा अचिनत्य, कल्पनीय परमब्रह्म का साक्षात्कार कर लेते हैं। ध्यान का उद्देश्य भौतिक जगत् से ऊपर उठकर दिव्य चेतना में निमग्न होना है।नारायण ! प्रकृति ने मानवदेह के मध्य बिन्दु के रूप में नाभि को संस्थित किया है। मनुष्य की प्राण शक्ति ऊर्जा के रूप में चिन्तन के अनुसार ऊर्ध्वामुकी होकर मस्तिष्क की ओर अथवा अधोमुखी होकर नाभि से नीचे की ओर प्रवाहित होती है। साधक चिन्तन एवं ध्यान द्वारा चेतना के प्रवाह अथवा प्राणों की ऊर्जा के प्रवाह को ऊर्ध्वामुखी करके भोग से योग की ओर अथवा अन्धकार से प्रकाश की ओर बढ़ता है। यही ब्रह्मचर्य एंव आनन्द प्राप्ति का सोपान है।ध्यान के अभ्यास में, विशेषतः कुण्डलिनी शक्ति के जागरण में, सिद्ध गुरु से दिशा-निर्देशन प्राप्त करना अत्यन्त आवश्यक होता है। तर्कवादी मनुष्य कदापि सूक्ष्म तत्व का ग्रहण नहीं कर सकता। पाण्डित्य-प्रदर्शन और वाक्-पटुता सूक्ष्म अनुभूति के आदान-प्रदान में बाधक होते हैं। साधक को श्रद्धा और विश्वास से परिपूरित होकर सदगुरु की शरण ग्रहण करनी चाहिए। सद गुरु गूढ़ तत्वों को सरल प्रकार से हृदयंगम करा देते हैं। ध्याननिमग्न मनुष्य न केवल स्वयं गहन शान्ति का अनुभव करता है, बल्कि अन्य समीपस्थ मनुष्यों में भी शान्ति, सद्भवाना एवं सात्त्विकता का संचार कर देता है।श्रीमद् भगवद्गीता में कुण्डलिनी योग की चर्चा नहीं है, यद्यपि तन्त्र विद्या में ध्यान के संदर्भ में उसका विशेष महत्व कहा गया है। साधक विभिन्न स्तरों को पार करते हुए क्रम-विकास के पथ पर अग्रसर होता है। मानव-देह में मेरुदण्ड के अधोभाग में स्थित मूलाधार चक्र में अनन्त शक्ति (सूक्ष्म नाड़ी तन्तुरुप) कुण्डली लगाये हुए सर्प की आकृति में स्थित है। मल मूत्र विसर्जन के स्थानों के समीप स्थित इस केन्द्र को शक्तिपीठ अथवा योनिपीठ भी कहते हैं। षट्कमलों अथवा षट्चक्रों का भेदन करना षट्चक्र सोपान पर चढ़ना कुण्डलिनी तत्व को जगाने (कुण्डलिनी-जागरण) की विधि है। मेरुदण्ड में तीन प्रमुख नाडियाँ हैं-सुषुम्ना (बोधिनी अथवा प्राणतोषिणी सरस्वती), इडा (गंगा) और पिंगला (यमुना) जो सत्, रज और तम की भी सूचक हैं। योगी त्रिवेणी से मानसिक स्नान करते हैं। मेरुदण्ड जीवन का परिचालक, पोषक एवं धारक होता है। दिव्य सहस्रदल कमल (ब्रह्मरन्ध्र) में चन्द्रमा विराजमान है, जिसका चिन्तन योगी करते हैं। २ सुषुम्ना के सहारे षट्चक्र इस प्रकार हैं-श्रीमद् भगवद्गीता में कुण्डलिनी योग की चर्चा नहीं है, यद्यपि तन्त्र विद्या में ध्यान के संदर्भ में उसका विशेष महत्व कहा गया है। साधक विभिन्न स्तरों को पार करते हुए क्रम-विकास के पथ पर अग्रसर होता है। मानव-देह में मेरुदण्ड के अधोभाग में स्थित मूलाधार चक्र में अनन्त शक्ति (सूक्ष्म नाड़ी तन्तुरुप) कुण्डली लगाये हुए सर्प की आकृति में स्थित है। मल मूत्र विसर्जन के स्थानों के समीप स्थित इस केन्द्र को शक्तिपीठ अथवा योनिपीठ भी कहते हैं। षट्कमलों अथवा षट्चक्रों का भेदन करना षट्चक्र सोपान पर चढ़ना कुण्डलिनी तत्व को जगाने (कुण्डलिनी-जागरण) की विधि है। मेरुदण्ड में तीन प्रमुख नाडियाँ हैं-सुषुम्ना (बोधिनी अथवा प्राणतोषिणी सरस्वती), इडा (गंगा) और पिंगला (यमुना) जो सत्, रज और तम की भी सूचक हैं। योगी त्रिवेणी से मानसिक स्नान करते हैं। मेरुदण्ड जीवन का परिचालक, पोषक एवं धारक होता है। दिव्य सहस्रदल कमल (ब्रह्मरन्ध्र) में चन्द्रमा विराजमान है, जिसका चिन्तन योगी करते हैं। २ सुषुम्ना के सहारे षट्चक्र इस प्रकार हैं-*मूलाधार चक्र (तत्व पृथ्वी, वर्ण पीत, देवता गणेश, सम्बद्ध वाहन हाथी। इसके कमल में चार दल हैं।१. यो गुरुः स शिवः प्रोक्तो यः शिवः स गुरुः स्मृतः।उभयोरन्तरं नास्ति गुरोरपि शिवस्य च॥जो गुरु है, वह शिव कहा गया है, जो शिव है वह गुरु माना गया है। गुरु और शिव दोनों में अन्तर नहीं है।षट् चक्रों एवं सप्तम सहस्रार चक्र को सप्तलोक ( भूः भुवः स्वः तपः जनः महः सत्यम् ) भी कहा गया है। मूलाधार चक्र भूलोक तथा सहस्रार चक्र ब्रह्मलोक है। कुछ हठयोगी नाभिचक्र में मूलाधार का स्थान तथा आज्ञाचक्र में सहस्रार का स्थान मानते हैं। स्वाधिष्ठान चक्र (तत्व जल, वर्ण श्वेत, देवता ब्रह्मा, सम्बद्ध वाहन मगरमच्छ, इसके कमल में छह सिन्दूरी पँखुड़ियाँ हैं। ) मणिपुर चक्र (तत्व अग्नि, वर्ण हेम, देवता विष्णु, सम्बद्ध वाहन मेष। इसके कमल में दस पँखुडियाँ हैं। ) अनाहत चक्र (तत्व आकाश, वर्ण श्वेत अथवा सुहेम, वाहन गज। इसमें सिलेटी बैंगनी रंग की सोलह पँखुडियाँ हैं। ) आज्ञा चक्र (इसके श्वेत कमल में केवल दो पँखुडियाँ हैं, इसका देवता महेश्वर है। ) आज्ञा चक्र में दिव्य ज्योति की अनुभूति होती है। नारायण ! कुण्डलिनी शक्ति जागृत होने पर असंख्य विद्युत-तरंगों के केन्द्र तथा एक हजार पंखुड़ियों के कमलवाले सहस्रार, चक्र को प्राप्त हो जाती है। चित्शक्ति जो सर्पिलरुप में, कुण्डलिनी रूप में, मूलाधार चक्र में (सुषुम्ना के विविर में) प्रसुप्त होकर स्थित है, जागृत होने पर चक्रभेदन करती हुई मस्तिष्क के मध्य में स्थित सहस्राकार चक्र तक पहुँचकर ब्रह्मलीन हो जाती है। सहस्रार चक्र का आज्ञा चक्र के साथ घनिष्ठ संबंध हैं। मेरुदण्ड शिव के पिनाक का प्रतीक है। पिनाक का एक भाग, जो मूलाधार चक्र में रहता है, चित्रकूट कहलाता है तथा सारा देह अयोध्यापुरी कहलाता है। मूलाधार के पद्म के मध्य स्थित योनि में कुण्डलिनी स्थित है। सहस्रार चक्र अथवा ब्रह्मरन्ध्र ही ब्रह्मलोक है, जहाँ महाशिवलिंग विराजमान है अथवा यह चित् स्वरुप महाशिव का कैलासरुप वास-स्थान है। मूलाधार चक्र के भेदन से मिट्टी-तत्व पर विजय प्राप्त होती है तथा ऊर्जा का ऊर्ध्वारोहण प्रारम्भ हो जाता है। योगी क्रमशः पाँचों तत्वों पर विजय पाकर ऊर्ध्वरेता हो जाता है तथा गुणातीत अवस्था को प्राप्त हो जाता है। कुण्डलिनी शक्ति के विविध चक्रों को पार करते समय योगी को विभिन्न ध्वनियों का श्रवण होता है। योगी में आन्तरिक ऊर्जा का विकास एवं आरोहण होता है तथा वह अपने भीतर ऊर्ध्वगमन करते हुए एक विशेष स्तर पर आकर गुरुत्वाकर्षण से मुक्त हो जाता है अर्थात् जड़ता से मुक्त हो जाता है और उसके जीवन में सत्यं शिवं सुन्दरम् का समावेश हो जाता है। भौतिक आकर्षण से विमुक्त होकर वह सहज प्रेम और करुणा से परिपूर्ण हो जाता है। योगी को अनेक सूक्ष्म शक्तियाँ प्राप्त हो जाती हैं। अष्ट सिद्धि उसे हस्तगत हो जाती है, किंतु योगी का लक्ष्य दिव्यसुधापान है।ब्रह्मरन्ध्र का संबंध सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड के साथ होता है। सुषुम्ना मूलाधार से सहस्रार तक अखण्डरूप से स्थित रहती है तथा उमा की प्रतीक कही जाती है। मूलाधार चक्र के भेदन से ऊर्जा का ऊर्ध्वारोहण प्रारंभ हो जाता है। जब वाग्देवी कुण्डलिनी शक्ति जाग्रत होकर सुषुम्ना के द्वारा मूलाधार के सहस्रार तक प्रवाहित हो जाती है, मूलाधार को सहस्रार से जोड़ देती है, वह उमा-शिव-मिलन भी कहलाता है तथा साधक को महाभाव की मधुर मूर्च्छा, दिव्यावेश, असह्य आनन्द, सौन्दर्य-दर्शन इत्यादि का अनुभव होता है तथा ऊर्ध्वागामी चेतना का परम चेतना के साथ ऐक्य होने पर परमानन्द प्राप्ति हो जाती है। इस ध्यान-प्रक्रिया में मूलबन्ध, उड्डियान बन्ध, जालन्धर बन्ध, महाबन्ध तथा खेचरी मुद्रा सहायक होते हैं। ॐकार का नाद नाभिकमल से उत्थित होकर अनाहत चक्र को झंकृत करता हुआ कण्ठस्थित विशुद्ध चक्र में स्फुट होता है तथा योगियों को स्फोट एवं नाद का दिव्य अनुभव होता है। ॐकार का वासस्थान आज्ञा चक्र होने के कारण भृकुटी पर ध्यान केंद्रित किया जाता है तथा भृकुटी पर चन्दन का तिलक किया जाता है। वास्तव में समस्त मस्तक ऊर्जा का संवेदनशील स्थल होता है। नारायण ! ध्यान की साधना से मनुष्य ऐसी मानसिक अवस्था को प्राप्त हो जाता है, जब उसे घोर दुःख भी विचलित नहीं कर सकते। साधक विद्युत के वेग से सदृश प्रसारित होनेवाली दिव्य शक्ति का अनुभव समस्त देह, मन और मस्तिष्क में करता है तथा वह सभी अङ्मों में उसकी व्याप्ति देखता है। संसिद्ध योगी सम्पूर्ण प्राणियों में भगवान् का दर्शन करता है तथा समदर्शी होता है। यदि मृत्यु होने तक साधना अपूर्ण रह जाती है, साधक आगामी जन्मों में पुराने संस्कारों के बल से पुनः साधना की उच्चभूमि की प्राप्ति का प्रयत्न करता है तथा अन्त में परमात्मा को प्राप्त कर लेता है। मनुष्य का मन परमात्मा के अतिरिक्त अन्यत्र कहीं पूर्ण विश्रान्ति नहीं पा सकता। श्रद्धापूर्वक भगवद्भजन करनेवाला सर्वश्रेष्ठ होता है। कर्मयोगी के लिए परिवार सम्पूर्ण साधना का श्रेष्ठ केन्द्र-स्थल होता है। यद्यपि आद्यात्मिक प्रगति में तीर्थों का विशेष महत्व है, कर्मयोगी के लिए सत्य, क्षमा, इन्द्रयि-संयम प्राणियों के प्रति दयाभाव तथा सरल व्यवहार भी तीर्थ होते हैं। कर्मयोगी इन गुणों का अभ्यास परिवार में कर सकता है। परिवार के सदस्य उत्तम भावना, विचार, वचन और व्यवहार द्वारा परिवार को स्वर्ग बना सकते हैं। अपार भौतिक सम्पदा, वैभव और ऐश्वर्य में सुख देने की क्षमता नहीं होती। कर्मयोगी को सद्गुणों की अपेक्षा भौतिक सम्पदा को तुच्छ मानकर सद्गुणों के विकास एवं अभ्यास पर बल देना चाहिए। संघटित परिवार प्रत्येक सदस्य की संकटवेला में पूर्ण सहायता का श्रेष्ठ आश्वासन (बीमा) होता है, किंतु अविवेकीजन की क्षुद्रता, संकीर्णता तथा असहनशीलता के कारण परिवार टूट जाते हैं। नारायण ! घृणा को घृणा से, कटुता को कटुता से, क्रोध को क्रोध से, दुष्टता को दुष्टता से, हिंसा को हिंसा से, क्षुद्रता को क्षुद्रता से, असत्य को असत्य से तथा अन्धकार को अन्धकार से कुछ समय के लिए दबाया जा सकता है, किंतु घृणा को प्रेम से, कटुता को मधुरता से, क्रोध को क्षमा से, दुष्टता को साधुता से, हिंसा को अहिंसा से, क्षुद्रता को उदारता से, असत्य को सत्य से तथा अन्धकार को प्रकाश से ही जीता जा सकता है। मनुष्य की व्यक्तिगत सुखभोग की कामना महान् पुरुषार्थ को भी तुच्छ स्वार्थ बना देती है तथा यज्ञ-भावना (उदार-वृत्ति) पुरुषार्थ को परमार्थ बना देती है। सत्य प्रेम और सेवा मन के विष को धोकर उसे निर्मल बना देते हैं, संयम, सादगी और संतोष मनुष्य को सुख एवं शान्ति देते हैं तथा आध्यात्मिक भाव (ज्ञान, ध्यान एवं भक्ति) उसे आनन्द एवं दिव्यता प्रदान कर सकते हैं। सत्य, क्षमा, इन्द्रिय-संयम, दयाभाव तथा सरल व्यवहार का अभ्यास परिवार को सुगठित एवं सुखमय बना देते हैं। परिवार समाज की महत्वपूर्ण इकाई होता है तथा परिवारों के सुदृढ़ होने पर समाज हो जाता है। जो मनुष्य परिवार के लिए उपयोगी होता है, वहीं समाज के लिए उपयोगी सिद्ध होता है।नारायण ! मनुष्य का मन ही सुख और दुःख का कारण होता है तथा मनुष्य स्वयं अपने विचारों द्वारा अपने मन का निर्माण करता है। मनुष्य जैसा चिन्तन करता है, वैसा ही मन हो जाता है, मन के स्वरुप का निर्माण चिन्तन द्वारा हो जाता है। अतएव स्वाध्याय (उत्तम ग्रन्थों का अध्ययन) तथा सत्संग का जीवन में अतुलनीय महत्व होता है। स्वाध्याय एवं सत्संग का जीवन में अतुलनीय महत्व होता है। स्वाध्याय एवं सत्संग से विवेक उत्पन्न होता है तथा मनुष्य विवेक द्वारा कामना आदि दोषों की निवृत्ति कर सकता है। विवेकशील पुरुष प्रेम, क्षमा, सहनशीलता तथा सेवाभाव से अपने चारों ओर मधुर वातावरण का निर्माण कर लेता है तथा विवेकहीन मनुष्य अंहकार, घृणा, क्रोध, संकीर्णता तथा स्वार्थ से अपने चारो ओर शत्रुतापूर्ण वातावरण का निर्माण कर लेता है तथा अकेला पड़कर सभी दूसरों को दोष देता रहता है। स्वार्थपूर्ण तथा अंहकारपूर्ण मनुष्य को अपने अतिरिक्त कोई व्यक्ति उत्तम प्रतीत नहीं होता तथा अन्त में वह स्वयं से भी घृणा करके दुखी, व्याकुल तथा अशान्त हो जाता है। स्वार्थ विकास-प्रक्रिया में बाधक तथा स्वार्थत्याग सहायक होता है। कर्मयोगी अपने कर्मक्षेत्र में भयरहित एवं चिन्तारहित होकर कर्म करता है तथा सहज प्रसन्न रहता है। वह किसी के क्रुद्ध होने पर प्रतिक्रियात्मक क्रोध नहीं करता और कटुता का उत्तर मधुरता से देता है। कच्चा फल कठोर और कटु होता है तथा पकने पर मृदु और मधुर हो जाता है। परिपक्व उत्तम पुरुष प्रेमरसपूर्ण, मृदु और मधुर हो जाता है। सब मनुष्यों में परमात्मा का दर्शन करनेवाला पुरुष किसी का अपमान नहीं करता तथा निःस्वार्थ जन-सेवा को प्रभु-सेवा अथवा परमेश्वर की पूजा ही मानता है। कर्मयोगी अपना व्यवहार शुद्ध करके आत्मशुद्धि करता है। छठे अध्याय का अन्तिम श्लोक आगामी छह अध्यायों में उपासना (भक्ति) की प्रधानता का सूचक है, यद्यपि गीता के तीनों की षट्कों में कर्म, भक्ति और ज्ञान का समानान्तर प्रतिपादन है। इति शम् बाल वनिता महिला आश्रमजय जय शङ्कर हर हर शङ्कर ।काशी शङ्कर पालय माम् ॥हर हर महादेव शम्भो काशी विश्वनाथ वन्दे । जय हो!!!! जय सिया राम🚩🚩🚩🚩

।। राम ।। By smajsevi Vnita kasnia Punjab श्रीमद्भागवत प्रसंग - (५२६) भाई-बहनों! नारायण, ज्ञान, कर्म तथा भक्ति परमेश्वर के साथ एकत्व स्थापित करने पर 'योग' हो जाते हैं। ध्यान का अभ्यास ज्ञानयोग, कर्मयोग तथा भक्तियोग की संसिद्धि में महत्वपूर्ण, उपयोगी तथा सहायक होने के कारण गीता में ध्यान एक योग के रुप में वर्णित किया गया है। ध्यान से आत्मबोध एवं जागरण संभव हो जाता है तथा मनुष्य राग, द्वेष, घृणा, क्रोध, चिन्ता, भय आदि से निवृत्त होकर साक्षी-भाव से जीवनयापन कर सकता है। यदि ध्यान के अभ्यास से अहंकार और वासना क्षीण न हो तो वह मात्र एक मनोरंजक व्यायाम है। विचार और व्यवहार में परिवर्त्तन होना ध्यान की सिद्धता की सच्ची कसौटी है। मनुष्य ध्यान के द्वारा मन और बुद्धि से परे ऊर्ध्वचेतना में आरोहण करते हुए दिव्य चेतना में निमग्न होकर, शून्यता से परे पूर्णता की अवस्था में सुरदुर्लभ परमानन्दानुभूति कर सकता है। ध्यान ऊर्जा, प्रकाश, दिव्यता और आनन्द-प्राप्ति का सर्वोच्य साधन है। मनुष्य के मन की शक्तियां असंख्य दिशाओं में बिखरी रहती हैं। उन्हें समेटने के लिए ध्यान का अभ्यास अमोघ उपाय है। योगी

श्री कृष्ण ने क्यों किया कर्ण का अंतिम संस्कार अपने ही हाथों पर?By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️🌼जब कर्ण मृत्युशैया पर थे तब कृष्ण उनके पास उनके दानवीर होने की परीक्षा लेने के लिए आए। कर्ण ने कृष्ण को कहा कि उसके पास देने के लिए कुछ भी नहीं है। ऐसे में कृष्ण ने उनसे उनका सोने का दांत मांग लिया।कर्ण ने अपने समीप पड़े पत्थर को उठाया और उससे अपना दांत तोड़कर कृष्ण को दे दिया। कर्ण ने एक बार फिर अपने दानवीर होने का प्रमाण दिया जिससे कृष्ण काफी प्रभावित हुए। कृष्ण ने कर्ण से कहा कि वह उनसे कोई भी वरदान मांग़ सकते हैं।कर्ण ने कृष्ण से कहा कि एक निर्धन सूत पुत्र होने की वजह से उनके साथ बहुत छल हुए हैं। अगली बार जब कृष्ण धरती पर आएं तो वह पिछड़े वर्ग के लोगों के जीवन को सुधारने के लिए प्रयत्न करें। इसके साथ कर्ण ने दो और वरदान मांगे।दूसरे वरदान के रूप में कर्ण ने यह मांगा कि अगले जन्म में कृष्ण उन्हीं के राज्य में जन्म लें और तीसरे वरदान में उन्होंने कृष्ण से कहा कि उनका अंतिम संस्कार ऐसे स्थान पर होना चाहिए जहां कोई पाप ना हो।बाल वनिता महिला आश्रमपूरी पृथ्वी पर ऐसा कोई स्थान नहीं होने के कारण कृष्ण ने कर्ण का अंतिम संस्कार अपने ही हाथों पर किया। इस तरह दानवीर कर्ण मृत्यु के पश्चात साक्षात वैकुण्ठ धाम को प्राप्त हुए।〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️

श्री कृष्ण ने क्यों किया कर्ण का अंतिम संस्कार अपने ही हाथों पर? By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब 〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️🌼 जब कर्ण मृत्युशैया पर थे तब कृष्ण उनके पास उनके दानवीर होने की परीक्षा लेने के लिए आए। कर्ण ने कृष्ण को कहा कि उसके पास देने के लिए कुछ भी नहीं है। ऐसे में कृष्ण ने उनसे उनका सोने का दांत मांग लिया। कर्ण ने अपने समीप पड़े पत्थर को उठाया और उससे अपना दांत तोड़कर कृष्ण को दे दिया। कर्ण ने एक बार फिर अपने दानवीर होने का प्रमाण दिया जिससे कृष्ण काफी प्रभावित हुए। कृष्ण ने कर्ण से कहा कि वह उनसे कोई भी वरदान मांग़ सकते हैं। कर्ण ने कृष्ण से कहा कि एक निर्धन सूत पुत्र होने की वजह से उनके साथ बहुत छल हुए हैं। अगली बार जब कृष्ण धरती पर आएं तो वह पिछड़े वर्ग के लोगों के जीवन को सुधारने के लिए प्रयत्न करें। इसके साथ कर्ण ने दो और वरदान मांगे। दूसरे वरदान के रूप में कर्ण ने यह मांगा कि अगले जन्म में कृष्ण उन्हीं के राज्य में जन्म लें और तीसरे वरदान में उन्होंने कृष्ण से कहा कि उनका अंतिम संस्कार ऐसे स्थान पर होना चाहिए जहां कोई पाप ना हो। बाल वनिता महिला आश्रम पूर

श्रीसूक्त पाठ विधिBy समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब🔶🔹🔶🔹🔶🔹🔶धन की कामना के लिए दीपावली पूजन के साथ श्री सूक्त का पाठ अत्यन्त लाभकारी रहता है।(श्रीसूक्त के इस प्रयोग को हृदय अथवा आज्ञा चक्र में करने से सर्वोत्तम लाभ होगा, अन्यथा सामान्य पूजा प्रकरण से ही संपन्न करें .)प्राणायाम आचमन आदि कर आसन पूजन करें :- ॐ अस्य श्री आसन पूजन महामन्त्रस्य कूर्मो देवता मेरूपृष्ठ ऋषि पृथ्वी सुतलं छंद: आसन पूजने विनियोग: । विनियोग हेतु जल भूमि पर गिरा दें ।पृथ्वी पर रोली से त्रिकोण का निर्माण कर इस मन्त्र से पंचोपचार पूजन करें – ॐ पृथ्वी त्वया धृता लोका देवी त्वं विष्णुनां धृता त्वां च धारय मां देवी पवित्रां कुरू च आसनं ।ॐ आधारशक्तये नम: । ॐ कूर्मासनायै नम: । ॐ पद्‌मासनायै नम: । ॐ सिद्धासनाय नम: । ॐ साध्य सिद्धसिद्धासनाय नम: ।तदुपरांत गुरू गणपति गौरी पित्र व स्थान देवता आदि का स्मरण व पंचोपचार पूजन कर श्री चक्र के सम्मुख पुरुष सूक्त का एक बार पाठ करें ।निम्न मन्त्रों से करन्यास करें :-🔶🔹🔶🔹🔶🔹🔶🔹🔶🔹🔶1 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं ऐं क ए ई ल ह्रीं अंगुष्ठाभ्याम नमः ।2 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं ह स क ह ल ह्रीं तर्जनीभ्यां स्वाहा ।3 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं सौं स क ल ह्रीं मध्यमाभ्यां वष्‌ट ।4 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं ऐं क ए ई ल ह्रीं अनामिकाभ्यां हुम्‌ ।5 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं ह स क ह ल ह्रीं कनिष्ठिकाभ्यां वौषट ।6 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं सौं स क ल ह्रीं करतल करपृष्ठाभ्यां फट्‌ ।निम्न मन्त्रों से षड़ांग न्यास करें :-🔶🔹🔶🔹🔶🔹🔶🔹🔶🔹🔶1 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं ऐं क ए ई ल ह्रीं हृदयाय नमः ।2 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं ह स क ह ल ह्रीं शिरसे स्वाहा ।3 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं सौं स क ल ह्रीं शिखायै वष्‌ट ।4 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं ऐं क ए ई ल ह्रीं कवचायै हुम्‌ ।5 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं ह स क ह ल ह्रीं नेत्रत्रयाय वौषट ।6 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं सौं स क ल ह्रीं अस्त्राय फट्‌ ।श्री पादुकां पूजयामि नमः बोलकर शंख के जल से अर्घ्य प्रदान करते रहें ।श्री चक्र के बिन्दु चक्र में निम्न मन्त्रों से गुरू पूजन करें :-🔶🔹🔶🔹🔶🔹🔶🔹🔶🔹🔶🔹🔶🔹🔶🔹🔶1 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री गुरू पादुकां पूजयामि नमः ।2 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री परम गुरू पादुकां पूजयामि नमः ।3 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री परात्पर गुरू पादुकां पूजयामि नमः ।श्री चक्र महात्रिपुरसुन्दरी का ध्यान करके योनि मुद्रा का प्रदर्शन करते हुए पुन: इस मन्त्र से तीन बार पूजन करें :- ॐ श्री ललिता महात्रिपुर सुन्दरी श्री विद्या राज राजेश्वरी श्री पादुकां पूजयामि नमः ।अब श्रीसूक्त का विधिवत पाठ करें :-🔶🔹🔶🔹🔶🔹🔶🔹🔶🔹🔶ॐ हिरण्यवर्णा हरिणीं सुवर्णरजतस्रजाम् । चन्द्रां हिरण्यमयींलक्ष्मींजातवेदो मऽआवह ।।1।।तांम आवह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम् । यस्या हिरण्यं विन्देयंगामश्वं पुरुषानहम् ।।2।।अश्वपूर्वां रथमध्यांहस्तिनादप्रबोधिनीम् । श्रियं देवीमुपह्वये श्रीर्मा देवीजुषताम् ।।3।।कांसोस्मितां हिरण्यप्राकारामाद्रां ज्वलन्तींतृप्तां तर्पयन्तीम् । पद्मेस्थितांपद्मवर्णा तामिहोपह्वयेश्रियम् ।।4।।चन्द्रां प्रभासांयशसां ज्वलन्तीं श्रियं लोके देवीजुष्टामुदाराम् । तांपद्मिनींमीं शरण प्रपद्येऽलक्ष्मीर्मे नश्यतांत्वां वृणे ।।5।।आदित्यवर्णे तपसोऽधिजातो वनस्पतिस्तव वृक्षोऽथ बिल्वः । तस्य फ़लानि तपसानुदन्तुमायान्तरा याश्चबाह्या अलक्ष्मीः ।।6।।उपैतु मां देवसखःकीर्तिश्चमणिना सह । प्रादुर्भूतोसुराष्ट्रेऽस्मिन्कीर्तिमृद्धिं ददातु मे ।। 7।।क्षुत्पिपासामलां ज्येष्ठामलक्ष्मींनाशयाम्यहम् । अभूतिमसमृद्धिं च सर्वा निर्णुद मे गृहात् ।।8।।गन्धद्वारांदुराधर्षां नित्यपुष्टांकरीषिणीम् । ईश्वरींसर्वभूतानां तामिहोपह्वये श्रियम् ।।9।।मनसः काममाकूतिं वाचःसत्यमशीमहि । पशुनांरुपमन्नस्य मयिश्रीःश्रयतांयशः ।।10।।कर्दमेन प्रजाभूता मयिसम्भवकर्दम । श्रियं वासय मे कुले मातरं पद्ममालिनीम् ।।11।।आपःसृजन्तु स्निग्धानिचिक्लीतवस मे गृहे । नि च देवी मातरं श्रियं वासय मे कुले ।।12।।आर्द्रा पुष्करिणीं पुष्टिं पिंगलां पद्मालिनीम् । चन्द्रां हिरण्मयींलक्ष्मी जातवेदो मेंआवह ।।13।।आर्द्रा यःकरिणींयष्टिं सुवर्णा हेममालिनीम् । सूर्या हिरण्मयींलक्ष्मींजातवेदो म आवह ।।14।।तां मऽआवह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम् । यस्यां हिरण्यं प्रभूतं गावो दास्योऽश्वन्विन्देयं पुरुषानहम् ।।15।।यःशुचिः प्रयतोभूत्वा जुहुयादाज्यमन्वहम् । सूक्तमं पंचदशर्च श्रीकामःसततं जपेत् ।।16।।🔶🔹🔶🔹🔶🔹🔶🔹🔶🔹🔶🔹🔶🔹🔶🔹🔶

श्रीसूक्त पाठ विधि By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब 🔶🔹🔶🔹🔶🔹🔶 धन की कामना के लिए दीपावली पूजन के साथ श्री सूक्त का पाठ अत्यन्त लाभकारी रहता है। (श्रीसूक्त के इस प्रयोग को हृदय अथवा आज्ञा चक्र में करने से सर्वोत्तम लाभ होगा, अन्यथा सामान्य पूजा प्रकरण से ही संपन्न करें .) प्राणायाम आचमन आदि कर आसन पूजन करें :- ॐ अस्य श्री आसन पूजन महामन्त्रस्य कूर्मो देवता मेरूपृष्ठ ऋषि पृथ्वी सुतलं छंद: आसन पूजने विनियोग: । विनियोग हेतु जल भूमि पर गिरा दें । पृथ्वी पर रोली से त्रिकोण का निर्माण कर इस मन्त्र से पंचोपचार पूजन करें – ॐ पृथ्वी त्वया धृता लोका देवी त्वं विष्णुनां धृता त्वां च धारय मां देवी पवित्रां कुरू च आसनं ।ॐ आधारशक्तये नम: । ॐ कूर्मासनायै नम: । ॐ पद्‌मासनायै नम: । ॐ सिद्धासनाय नम: । ॐ साध्य सिद्धसिद्धासनाय नम: । तदुपरांत गुरू गणपति गौरी पित्र व स्थान देवता आदि का स्मरण व पंचोपचार पूजन कर श्री चक्र के सम्मुख पुरुष सूक्त का एक बार पाठ करें । निम्न मन्त्रों से करन्यास करें :- 🔶🔹🔶🔹🔶🔹🔶🔹🔶🔹🔶 1 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं ऐं क ए ई ल ह्रीं अंगुष्ठाभ्याम नमः । 2 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं ह स क

सिद्ध कुंजिका स्तोत्र विशेषBy समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸जीवन में सफलता की कुंजी है "सिद्ध कुंजिका" दुर्गा सप्तशती में वर्णित सिद्ध कुंजिका स्तोत्र एक अत्यंत चमत्कारिक और तीव्र प्रभाव दिखाने वाला स्तोत्र है। जो लोग पूरी दुर्गा सप्तशती का पाठ नहीं कर सकते वे केवल कुंजिका स्तोत्र का पाठ करेंगे तो उससे भी संपूर्ण दुर्गा सप्तशती का फल मिल जाता है। जीवन में किसी भी प्रकार के अभाव, रोग, कष्ट, दुख, दारिद्रय और शत्रुओं का नाश करने वाले सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ नवरात्रि में अवश्य करना चाहिए। लेकिन इस स्तोत्र का पाठ करने में कुछ सावधानियां भी हैं, जिनका ध्यान रखा जाना आवश्यक है।सिद्ध कुंजिका स्तोत्र पाठ की विधि🔸🔸🔹🔸🔸🔸🔸🔹🔸🔸कुंजिका स्तोत्र का पाठ वैसे तो किसी भी माह, दिन में किया जा सकता है, लेकिन नवरात्रि में यह अधिक प्रभावी होता है। कुंजिका स्तोत्र साधना भी होती है, लेकिन यहां हम इसकी सर्वमान्य विधि का वर्णन कर रहे हैं। नवरात्रि के प्रथम दिन से नवमी तक प्रतिदिन इसका पाठ किया जाता है। इसलिए साधक प्रात:काल सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नानादि दैनिक कार्यों से निवृत्त होकर अपने पूजा स्थान को साफ करके लाल रंग के आसन पर बैठ जाए। अपने सामने लकड़ी की चौकी पर लाल वस्त्र बिछाकर उस पर देवी दुर्गा की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें। सामान्य पूजन करें।अपनी सुविधानुसार तेल या घी का दीपक लगाएअपनी सुविधानुसार तेल या घी का दीपक लगाए और देवी को हलवे या मिष्ठान्न् का नैवेद्य लगाएं। इसके बाद अपने दाहिने हाथ में अक्षत, पुष्प, एक रुपए का सिक्का रखकर नवरात्रि के नौ दिन कुंजिका स्तोत्र का पाठ संयम-नियम से करने का संकल्प लें। यह जल भूमि पर छोड़कर पाठ प्रारंभ करें। यह संकल्प केवल पहले दिन लेना है। इसके बाद प्रतिदिन उसी समय पर पाठ करें।कुंजिका स्तोत्र के लाभ🔸🔸🔹🔹🔸🔸धन लाभ👉 जिन लोगों को सदा धन का अभाव रहता हो। लगातार आर्थिक नुकसान हो रहा हो। बेवजह के कार्यों में धन खर्च हो रहा हो उन्हें कुंजिका स्तोत्र के पाठ से लाभ होता है। धन प्राप्ति के नए मार्ग खुलते हैं। धन संग्रहण बढ़ता है।शत्रु मुक्ति👉 शत्रुओं से छुटकारा पाने और मुकदमों में जीत के लिए यह स्तोत्र किसी चमत्कार की तरह काम करता है। नवरात्रि के बाद भी इसका नियमित पाठ किया जाए तो जीवन में कभी शत्रु बाधा नहीं डालते। कोर्ट-कचहरी के मामलों में जीत हासिल होती है।रोग मुक्ति👉 दुर्गा सप्तशती के संपूर्ण पाठ जीवन से रोगों का समूल नाश कर देते हैं। कुंजिका स्तोत्र के पाठ से न केवल गंभीर से गंभीर रोगों से मुक्ति मिलती है, बल्कि रोगों पर होने वाले खर्च से भी मुक्ति मिलती है।कर्ज मुक्ति👉 यदि किसी व्यक्ति पर कर्ज चढ़ता जा रहा है। छोटी-छोटी जरूरतें पूरी करने के लिए कर्ज लेना पड़ रहा है, तो कुंजिका स्तोत्र का नियमित पाठ जल्द कर्ज मुक्ति करवाता है।सुखद दांपत्य जीवन👉 दांपत्य जीवन में सुख-शांति के लिए कुंजिका स्तोत्र का नियमित पाठ किया जाना चाहिए। आकर्षण प्रभाव बढ़ाने के लिए भी इसका पाठ किया जाता है।इन बातों का ध्यान रखना आवश्यक🔸🔸🔹🔸🔸🔸🔸🔹🔸🔸देवी दुर्गा की आराधना, साधना और सिद्धि के लिए तन, मन की पवित्रता होना अत्यंत आवश्यक है। साधना काल या नवरात्रि में इंद्रिय संयम रखना जरूरी है। बुरे कर्म, बुरी वाणी का प्रयोग भूलकर भी नहीं करना चाहिए। इससे विपरीत प्रभाव हो सकते हैं।कुंजिका स्तोत्र का पाठ बुरी कामनाओं, किसी के मारण, उच्चाटन और किसी का बुरा करने के लिए नहीं करना चाहिए। इसका उल्टा प्रभाव पाठ करने वाले पर ही हो सकता है।साधना काल में मांस, मदिरा का सेवन न करें। मैथुन के बारे में विचार भी मन में न लाएं।श्री दुर्गा सप्तशती में से हम आपको एक एसा पाठ बता रहे हैं, जिसके करने से आपकी सारी समस्याएं दूर हो जाएंगी। इस पाठ को करने के बाद आपको किसी अन्य पाठ की आवश्यकता नहीं होगी। यह पाठ है..सिद्धकुंजिकास्तोत्रम्। समस्त बाधाओं को शांत करने, शत्रु दमन, ऋण मुक्ति, करियर, विद्या, शारीरिक और मानसिक सुख प्राप्त करना चाहते हैं तो सिद्धकुंजिकास्तोत्र का पाठ अवश्य करें। श्री दुर्गा सप्तशती में यह अध्याय सम्मिलित है। यदि समय कम है तो आप इसका पाठ करके भी श्रीदुर्गा सप्तशती के संपूर्ण पाठ जैसा ही पुण्य प्राप्त कर सकते हैं। नाम के अनुरूप यह सिद्ध कुंजिका है। जब किसी प्रश्न का उत्तर नहीं मिल रहा हो, समस्या का समाधान नहीं हो रहा हो, तो सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ करिए। भगवती आपकी रक्षा करेंगी।सिद्ध कुंजिका स्तोत्र की महिमा🔸🔸🔹🔸🔸🔸🔹🔸🔸भगवान शंकर कहते हैं कि सिद्धकुंजिका स्तोत्र का पाठ करने वाले को देवी कवच, अर्गला, कीलक, रहस्य, सूक्त, ध्यान, न्यास और यहां तक कि अर्चन भी आवश्यक नहीं है। केवल कुंजिका के पाठ मात्र से दुर्गा पाठ का फल प्राप्त हो जाता है।क्यों है सिद्ध🔸🔹🔸इसके पाठ मात्र से मारण, मोहन, वशीकरण, स्तम्भन और उच्चाटन आदि उद्देश्यों की एक साथ पूर्ति हो जाती है। इसमें स्वर व्यंजन की ध्वनि है। योग और प्राणायाम है।संक्षिप्त मंत्र🔸🔹🔸ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे॥ ( सामान्य रूप से हम इस मंत्र का पाठ करते हैं लेकिन संपूर्ण मंत्र केवल सिद्ध कुंजिका स्तोत्र में है) संपूर्ण मंत्र यह है🔸🔸🔹🔸🔸ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। ऊं ग्लौं हुं क्लीं जूं स: ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा।। कैसे करें🔸🔹🔸सिद्ध कुंजिका स्तोत्र को अत्यंत सावधानी पूर्वक किया जाना चाहिए। प्रतिदिन की पूजा में इसको शामिल कर सकते हैं। लेकिन यदि अनुष्ठान के रूप में या किसी इच्छाप्राप्ति के लिए कर रहे हैं तो आपको कुछ सावधानी रखनी होंगी।1👉 संकल्प: सिद्ध कुंजिका पढ़ने से पहले हाथ में अक्षत, पुष्प और जल लेकर संकल्प करें। मन ही मन देवी मां को अपनी इच्छा कहें।2👉 जितने पाठ एक साथ ( 1, 2, 3, 5. 7. 11) कर सकें, उसका संकल्प करें। अनुष्ठान के दौरान माला समान रखें। कभी एक कभी दो कभी तीन न रखें।3👉 सिद्ध कुंजिका स्तोत्र के अनुष्ठान के दौरान जमीन पर शयन करें। ब्रह्मचर्य का पालन करें।4👉 प्रतिदिन अनार का भोग लगाएं। लाल पुष्प देवी भगवती को अर्पित करें।5👉 सिद्ध कुंजिका स्तोत्र में दशों महाविद्या, नौ देवियों की आराधना है।सिद्धकुंजिका स्तोत्र के पाठ का समय🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸👉 रात्रि 9 बजे करें तो अत्युत्तम।2👉 रात को 9 से 11.30 बजे तक का समय रखें।आसन🔸🔹🔸लाल आसन पर बैठकर पाठ करें दीपक🔸🔹🔸घी का दीपक दायें तरफ और सरसो के तेल का दीपक बाएं तरफ रखें। अर्थात दोनों दीपक जलाएं किस इच्छा के लिए कितने पाठ करने हैं🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸1👉 विद्या प्राप्ति के लिए....पांच पाठ ( अक्षत लेकर अपने ऊपर से तीन बार घुमाकर किताबों में रख दें)2👉 यश-कीर्ति के लिए.... पांच पाठ ( देवी को चढ़ाया हुआ लाल पुष्प लेकर सेफ आदि में रख लें)3👉 धन प्राप्ति के लिए....9 पाठ ( सफेद तिल से अग्यारी करें)4👉 मुकदमे से मुक्ति के लिए...सात पाठ ( पाठ के बाद एक नींबू काट दें। दो ही हिस्से हों ध्यान रखें। इनको बाहर अलग-अलग दिशा में फेंक दें)5👉 ऋण मुक्ति के लिए....सात पाठ ( जौं की 21 आहुतियां देते हुए अग्यारी करें। जिसको पैसा देना हो या जिससे लेना हो, उसका बस ध्यान कर लें)6👉 घर की सुख-शांति के लिए...तीन पाठ ( मीठा पान देवी को अर्पण करें)7👉 स्वास्थ्यके लिए...तीन पाठ ( देवी को नींबू चढाएं और फिर उसका प्रयोग कर लें)8👉 शत्रु से रक्षा के लिए..., 3, 7 या 11 पाठ ( लगातार पाठ करने से मुक्ति मिलेगी)9👉 रोजगार के लिए...3,5, 7 और 11 ( एच्छिक) ( एक सुपारी देवी को चढाकर अपने पास रख लें)10👉 सर्वबाधा शांति- तीन पाठ ( लोंग के तीन जोड़े अग्यारी पर चढ़ाएं या देवी जी के आगे तीन जोड़े लोंग के रखकर फिर उठा लें और खाने या चाय में प्रयोग कर लें।श्री सिद्धकुंजिकास्तोत्रम्🔸🔸🔹🔸🔹🔸🔸शिव उवाचशृणु देवि प्रवक्ष्यामि कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम् ।येन मन्त्रप्रभावेण चण्डीजापः भवेत् ॥१॥न कवचं नार्गलास्तोत्रं कीलकं न रहस्यकम् ।न सूक्तं नापि ध्यानं च न न्यासो न च वार्चनम् ॥२॥कुंजिकापाठमात्रेण दुर्गापाठफलं लभेत् ।अति गुह्यतरं देवि देवानामपि दुर्लभम् ॥३॥गोपनीयं प्रयत्नेन स्वयोनिरिव पार्वति ।मारणं मोहनं वश्यं स्तम्भनोच्चाटनादिकम् ।पाठमात्रेण संसिद्ध्येत् कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम् ॥४॥अथ मन्त्रः🔸🔹🔸ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। ॐ ग्लौं हुं क्लीं जूं सःज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वलऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहाइति मन्त्रः॥नमस्ते रुद्ररूपिण्यै नमस्ते मधुमर्दिनि।नमः कैटभहारिण्यै नमस्ते महिषार्दिनि ॥१॥नमस्ते शुम्भहन्त्र्यै च निशुम्भासुरघातिन ॥२॥जाग्रतं हि महादेवि जपं सिद्धं कुरुष्व मे ।ऐंकारी सृष्टिरूपायै ह्रींकारी प्रतिपालिका ॥३॥क्लींकारी कामरूपिण्यै बीजरूपे नमोऽस्तु ते ।चामुण्डा चण्डघाती च यैकारी वरदायिनी ॥४॥विच्चे चाभयदा नित्यं नमस्ते मंत्ररूपिण ॥५॥धां धीं धूं धूर्जटेः पत्नी वां वीं वूं वागधीश्वरी ।क्रां क्रीं क्रूं कालिका देविशां शीं शूं मे शुभं कुरु ॥६॥हुं हुं हुंकाररूपिण्यै जं जं जं जम्भनादिनी ।भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रे भवान्यै ते नमो नमः ॥७॥अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं हं क्षंधिजाग्रं धिजाग्रं त्रोटय त्रोटय दीप्तं कुरु कुरु स्वाहा ॥पां पीं पूं पार्वती पूर्णा खां खीं खूं खेचरी तथा ॥८॥सां सीं सूं सप्तशती देव्या मंत्रसिद्धिंकुरुष्व मे ॥इदंतु कुंजिकास्तोत्रं मंत्रजागर्तिहेतवे ।अभक्ते नैव दातव्यं गोपितं रक्ष पार्वति ॥यस्तु कुंजिकया देविहीनां सप्तशतीं पठेत् ।न तस्य जायते सिद्धिररण्ये रोदनं यथा ॥इतिश्रीरुद्रयामले गौरीतंत्रे शिवपार्वतीसंवादे कुंजिकास्तोत्रं संपूर्ण।🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸

सिद्ध कुंजिका स्तोत्र विशेष By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब 🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸 जीवन में सफलता की कुंजी है "सिद्ध कुंजिका"  दुर्गा सप्तशती में वर्णित सिद्ध कुंजिका स्तोत्र एक अत्यंत चमत्कारिक और तीव्र प्रभाव दिखाने वाला स्तोत्र है। जो लोग पूरी दुर्गा सप्तशती का पाठ नहीं कर सकते वे केवल कुंजिका स्तोत्र का पाठ करेंगे तो उससे भी संपूर्ण दुर्गा सप्तशती का फल मिल जाता है। जीवन में किसी भी प्रकार के अभाव, रोग, कष्ट, दुख, दारिद्रय और शत्रुओं का नाश करने वाले सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ नवरात्रि में अवश्य करना चाहिए। लेकिन इस स्तोत्र का पाठ करने में कुछ सावधानियां भी हैं, जिनका ध्यान रखा जाना आवश्यक है। सिद्ध कुंजिका स्तोत्र पाठ की विधि 🔸🔸🔹🔸🔸🔸🔸🔹🔸🔸 कुंजिका स्तोत्र का पाठ वैसे तो किसी भी माह, दिन में किया जा सकता है, लेकिन नवरात्रि में यह अधिक प्रभावी होता है। कुंजिका स्तोत्र साधना भी होती है, लेकिन यहां हम इसकी सर्वमान्य विधि का वर्णन कर रहे हैं। नवरात्रि के प्रथम दिन से नवमी तक प्रतिदिन इसका पाठ किया जाता है। इसलिए साधक प्रात:काल सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नानादि दैनिक कार्यों

महाभारत काल के चार रहस्यमय पक्षी जिन्हें अपना पूर्वजन्म याद थाBy समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाबएक बार महर्षि जैमिनी को महाभारत में आये कुछ तथ्यों से सम्बंधित कुछ संदेह उत्पन्न हो गया | मन में चल रही उहापोह के बीच उन्हें मार्कंडेय मुनि का ध्यान आया | वे उनके पास गए और उनसे अपने संदेह निवारण के लिए आग्रह किया |उस समय तक सांझ हो चली थी और मार्कंडेय मुनि के संध्या वन्दन का समय हो रहा था लेकिन उन्होंने महर्षि जैमिनी की बातें सुनी और सब सुनने के बाद उन्होंने महर्षि जैमिनी को विंध्य पर्वत की एक कन्दरा में रहने वाले 4 पक्षियों के पास जाने को कहा |महर्षि जैमिनी द्वारा उन पक्षियों के बारे में पूछे जाने पर मारकंडे जी ने बतलाया कि वह मुनिवर समीक के द्वारा पालित पक्षी है | महर्षि मार्कंडेय जी ने उन्हें पूरी कथा बतायी जिसके अनुसार एक समय दुर्वासा ऋषि ने क्रोधित हो कर वपु नामक अप्सरा को तिर्यक योनी में जन्म लेने का श्राप दिया जिसके फलस्वरूप वपु नामक उस अप्सरा ने, गरुड़ वंशीय कंधर नामक पक्षी की पत्नी मदनिका के गर्भ से तार्क्षी नामक पक्षिणी के रूप में जन्म लिया था |वही तार्क्षी द्रोण नामक एक ब्राह्मण को ब्याही गई थी, जिससे गर्भधारण करने पर साढ़े तीन महीने के बाद वह तार्क्षी, जब महाभारत युद्ध हो रहा था, उड़ती हुई उस क्षेत्र से निकली | उसी समय अर्जुन ने अपने किसी शत्रु के ऊपर बाण का संधान किया था जिसके प्रभाव से उसका शरीर छिल गया और वह अपने गर्भस्थ अंडों को गिराकर स्वयं भी मृत्यु को प्राप्त हो गयी |संयोगवश उसी समय युद्ध लड़ रहे भगदत्त के सुप्रवीक नामक गजराज का विशालकाय गलघंट भी बाण लगने से टूटकर गिरा और उसने अंडों को आच्छादित (ढक लिया) कर दिया | युद्ध समाप्त होने के पश्चात्, शिष्यों के साथ उधर की तरफ विचरण करते हुए समीक मुनि ने उन अण्डों को देखा और वे उनको उठा लाए |आश्रम के पवित्र वातावरण में उन चारों अण्डों से कुल चार पक्षी निकले और कुछ समय बाद परिपुष्ट होकर एक दिन वे पक्षी मनुष्य की वाणी बोलते हुए अपने गुरु यानि समीक मुनि को प्रणाम करने गए | मुनिवर समीक ने विस्मित होकर उनसे उनके पूर्व जन्म का वृतांत पूछा | उन्होंने बतलाया कि ‘हम चारों भाई पूर्व जन्म में सुक्रष नामक ब्राह्मण के ज्ञानी पुत्र थे |लेकिन एक दिन हमने अपने पिता की आज्ञा का उल्लंघन करके उनका अपमान कर दिया | इससे उन्होंने क्रोधित होकर हमें तिर्यक योनि में जाने का शाप दे दिया | अतः हे गुरुदेव ! हम वही चारों ब्राम्हण कुमार हैं, जो अब पक्षी होकर तार्क्षी के गर्भ से उत्पन्न हुए हैं | हमारी माता महाभारत के युद्ध में मारी गई है | हे गुरु ! अब हमें आप आज्ञा दीजिए, हम विंध्य पर्वत की इसी मनोहर कंदरा में निवास करेंगे” |यह कथा सुनाने के बाद मार्कंडेय जी ने कहा- हे मुनिवर ! आप वहीँ जाइए | वे वेद ज्ञान संपन्न चारो पक्षी आपको उपदेश करेंगे और आपकी शंका का समाधान करेंगे | तब महर्षि जैमिनी समीक मुनि के आश्रम की उसी मनोहर कन्दरा में गए और पूर्व ज्ञान की स्मृति से संपन्न उन पक्षियों ने उनके सारे संदेहों का निवारण कर दिया |इस प्रकार हमारे धर्म ग्रंथों तथा इतिहास और पुराण आदि के अध्ययन से पता लगता है कि इस धरा पर पशु-पक्षी तक भी जातिस्मर होते रहे हैं और उन्हें भी पूर्व जन्म का ज्ञान होता है | और प्राचीन काल के ऋषि-मुनि, भले ही वो ब्रह्मर्षि रहे हों लेकिन अगर उन्हें किसी तिर्यक योनि के पशु-पक्षी से उन्हें ज्ञान मिल रहा हो तो उन्होंने कभी संकोच नहीं किया बल्कि उसे आदर पूर्वक ग्रहण किया | धन्य है यह सनातन धर्म और धन्य है यह भारत भूमि |बाल वनिता महिला आश्रम

महाभारत काल के चार रहस्यमय पक्षी जिन्हें अपना पूर्वजन्म याद था By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब एक बार महर्षि जैमिनी को महाभारत में आये कुछ तथ्यों से सम्बंधित कुछ संदेह उत्पन्न हो गया | मन में चल रही उहापोह के बीच उन्हें मार्कंडेय मुनि का ध्यान आया | वे उनके पास गए और उनसे अपने संदेह निवारण के लिए आग्रह किया | उस समय तक सांझ हो चली थी और मार्कंडेय मुनि के संध्या वन्दन का समय हो रहा था लेकिन उन्होंने महर्षि जैमिनी की बातें सुनी और सब सुनने के बाद उन्होंने महर्षि जैमिनी को विंध्य पर्वत की एक कन्दरा में रहने वाले 4 पक्षियों के पास जाने को कहा | महर्षि जैमिनी द्वारा उन पक्षियों के बारे में पूछे जाने पर मारकंडे जी ने बतलाया कि वह मुनिवर समीक के द्वारा पालित पक्षी है | महर्षि मार्कंडेय जी ने उन्हें पूरी कथा बतायी जिसके अनुसार एक समय दुर्वासा ऋषि ने क्रोधित हो कर वपु नामक अप्सरा को तिर्यक योनी में जन्म लेने का श्राप दिया जिसके फलस्वरूप वपु नामक उस अप्सरा ने, गरुड़ वंशीय कंधर नामक पक्षी की पत्नी मदनिका के गर्भ से तार्क्षी नामक पक्षिणी के रूप में जन्म लिया था | वही तार्क्षी द्रोण नामक एक ब्राह्

सिद्ध कुंजिका स्तोत्र विशेषBy समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸जीवन में सफलता की कुंजी है "सिद्ध कुंजिका" दुर्गा सप्तशती में वर्णित सिद्ध कुंजिका स्तोत्र एक अत्यंत चमत्कारिक और तीव्र प्रभाव दिखाने वाला स्तोत्र है। जो लोग पूरी दुर्गा सप्तशती का पाठ नहीं कर सकते वे केवल कुंजिका स्तोत्र का पाठ करेंगे तो उससे भी संपूर्ण दुर्गा सप्तशती का फल मिल जाता है। जीवन में किसी भी प्रकार के अभाव, रोग, कष्ट, दुख, दारिद्रय और शत्रुओं का नाश करने वाले सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ नवरात्रि में अवश्य करना चाहिए। लेकिन इस स्तोत्र का पाठ करने में कुछ सावधानियां भी हैं, जिनका ध्यान रखा जाना आवश्यक है।सिद्ध कुंजिका स्तोत्र पाठ की विधि🔸🔸🔹🔸🔸🔸🔸🔹🔸🔸कुंजिका स्तोत्र का पाठ वैसे तो किसी भी माह, दिन में किया जा सकता है, लेकिन नवरात्रि में यह अधिक प्रभावी होता है। कुंजिका स्तोत्र साधना भी होती है, लेकिन यहां हम इसकी सर्वमान्य विधि का वर्णन कर रहे हैं। नवरात्रि के प्रथम दिन से नवमी तक प्रतिदिन इसका पाठ किया जाता है। इसलिए साधक प्रात:काल सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नानादि दैनिक कार्यों से निवृत्त होकर अपने पूजा स्थान को साफ करके लाल रंग के आसन पर बैठ जाए। अपने सामने लकड़ी की चौकी पर लाल वस्त्र बिछाकर उस पर देवी दुर्गा की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें। सामान्य पूजन करें।अपनी सुविधानुसार तेल या घी का दीपक लगाएअपनी सुविधानुसार तेल या घी का दीपक लगाए और देवी को हलवे या मिष्ठान्न् का नैवेद्य लगाएं। इसके बाद अपने दाहिने हाथ में अक्षत, पुष्प, एक रुपए का सिक्का रखकर नवरात्रि के नौ दिन कुंजिका स्तोत्र का पाठ संयम-नियम से करने का संकल्प लें। यह जल भूमि पर छोड़कर पाठ प्रारंभ करें। यह संकल्प केवल पहले दिन लेना है। इसके बाद प्रतिदिन उसी समय पर पाठ करें।कुंजिका स्तोत्र के लाभ🔸🔸🔹🔹🔸🔸धन लाभ👉 जिन लोगों को सदा धन का अभाव रहता हो। लगातार आर्थिक नुकसान हो रहा हो। बेवजह के कार्यों में धन खर्च हो रहा हो उन्हें कुंजिका स्तोत्र के पाठ से लाभ होता है। धन प्राप्ति के नए मार्ग खुलते हैं। धन संग्रहण बढ़ता है।शत्रु मुक्ति👉 शत्रुओं से छुटकारा पाने और मुकदमों में जीत के लिए यह स्तोत्र किसी चमत्कार की तरह काम करता है। नवरात्रि के बाद भी इसका नियमित पाठ किया जाए तो जीवन में कभी शत्रु बाधा नहीं डालते। कोर्ट-कचहरी के मामलों में जीत हासिल होती है।रोग मुक्ति👉 दुर्गा सप्तशती के संपूर्ण पाठ जीवन से रोगों का समूल नाश कर देते हैं। कुंजिका स्तोत्र के पाठ से न केवल गंभीर से गंभीर रोगों से मुक्ति मिलती है, बल्कि रोगों पर होने वाले खर्च से भी मुक्ति मिलती है।कर्ज मुक्ति👉 यदि किसी व्यक्ति पर कर्ज चढ़ता जा रहा है। छोटी-छोटी जरूरतें पूरी करने के लिए कर्ज लेना पड़ रहा है, तो कुंजिका स्तोत्र का नियमित पाठ जल्द कर्ज मुक्ति करवाता है।सुखद दांपत्य जीवन👉 दांपत्य जीवन में सुख-शांति के लिए कुंजिका स्तोत्र का नियमित पाठ किया जाना चाहिए। आकर्षण प्रभाव बढ़ाने के लिए भी इसका पाठ किया जाता है।इन बातों का ध्यान रखना आवश्यक🔸🔸🔹🔸🔸🔸🔸🔹🔸🔸देवी दुर्गा की आराधना, साधना और सिद्धि के लिए तन, मन की पवित्रता होना अत्यंत आवश्यक है। साधना काल या नवरात्रि में इंद्रिय संयम रखना जरूरी है। बुरे कर्म, बुरी वाणी का प्रयोग भूलकर भी नहीं करना चाहिए। इससे विपरीत प्रभाव हो सकते हैं।कुंजिका स्तोत्र का पाठ बुरी कामनाओं, किसी के मारण, उच्चाटन और किसी का बुरा करने के लिए नहीं करना चाहिए। इसका उल्टा प्रभाव पाठ करने वाले पर ही हो सकता है।साधना काल में मांस, मदिरा का सेवन न करें। मैथुन के बारे में विचार भी मन में न लाएं।श्री दुर्गा सप्तशती में से हम आपको एक एसा पाठ बता रहे हैं, जिसके करने से आपकी सारी समस्याएं दूर हो जाएंगी। इस पाठ को करने के बाद आपको किसी अन्य पाठ की आवश्यकता नहीं होगी। यह पाठ है..सिद्धकुंजिकास्तोत्रम्। समस्त बाधाओं को शांत करने, शत्रु दमन, ऋण मुक्ति, करियर, विद्या, शारीरिक और मानसिक सुख प्राप्त करना चाहते हैं तो सिद्धकुंजिकास्तोत्र का पाठ अवश्य करें। श्री दुर्गा सप्तशती में यह अध्याय सम्मिलित है। यदि समय कम है तो आप इसका पाठ करके भी श्रीदुर्गा सप्तशती के संपूर्ण पाठ जैसा ही पुण्य प्राप्त कर सकते हैं। नाम के अनुरूप यह सिद्ध कुंजिका है। जब किसी प्रश्न का उत्तर नहीं मिल रहा हो, समस्या का समाधान नहीं हो रहा हो, तो सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ करिए। भगवती आपकी रक्षा करेंगी।सिद्ध कुंजिका स्तोत्र की महिमा🔸🔸🔹🔸🔸🔸🔹🔸🔸भगवान शंकर कहते हैं कि सिद्धकुंजिका स्तोत्र का पाठ करने वाले को देवी कवच, अर्गला, कीलक, रहस्य, सूक्त, ध्यान, न्यास और यहां तक कि अर्चन भी आवश्यक नहीं है। केवल कुंजिका के पाठ मात्र से दुर्गा पाठ का फल प्राप्त हो जाता है।क्यों है सिद्ध🔸🔹🔸इसके पाठ मात्र से मारण, मोहन, वशीकरण, स्तम्भन और उच्चाटन आदि उद्देश्यों की एक साथ पूर्ति हो जाती है। इसमें स्वर व्यंजन की ध्वनि है। योग और प्राणायाम है।संक्षिप्त मंत्र🔸🔹🔸ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे॥ ( सामान्य रूप से हम इस मंत्र का पाठ करते हैं लेकिन संपूर्ण मंत्र केवल सिद्ध कुंजिका स्तोत्र में है) संपूर्ण मंत्र यह है🔸🔸🔹🔸🔸ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। ऊं ग्लौं हुं क्लीं जूं स: ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा।। कैसे करें🔸🔹🔸सिद्ध कुंजिका स्तोत्र को अत्यंत सावधानी पूर्वक किया जाना चाहिए। प्रतिदिन की पूजा में इसको शामिल कर सकते हैं। लेकिन यदि अनुष्ठान के रूप में या किसी इच्छाप्राप्ति के लिए कर रहे हैं तो आपको कुछ सावधानी रखनी होंगी।1👉 संकल्प: सिद्ध कुंजिका पढ़ने से पहले हाथ में अक्षत, पुष्प और जल लेकर संकल्प करें। मन ही मन देवी मां को अपनी इच्छा कहें।2👉 जितने पाठ एक साथ ( 1, 2, 3, 5. 7. 11) कर सकें, उसका संकल्प करें। अनुष्ठान के दौरान माला समान रखें। कभी एक कभी दो कभी तीन न रखें।3👉 सिद्ध कुंजिका स्तोत्र के अनुष्ठान के दौरान जमीन पर शयन करें। ब्रह्मचर्य का पालन करें।4👉 प्रतिदिन अनार का भोग लगाएं। लाल पुष्प देवी भगवती को अर्पित करें।5👉 सिद्ध कुंजिका स्तोत्र में दशों महाविद्या, नौ देवियों की आराधना है।सिद्धकुंजिका स्तोत्र के पाठ का समय🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸👉 रात्रि 9 बजे करें तो अत्युत्तम।2👉 रात को 9 से 11.30 बजे तक का समय रखें।आसन🔸🔹🔸लाल आसन पर बैठकर पाठ करें दीपक🔸🔹🔸घी का दीपक दायें तरफ और सरसो के तेल का दीपक बाएं तरफ रखें। अर्थात दोनों दीपक जलाएं किस इच्छा के लिए कितने पाठ करने हैं🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸1👉 विद्या प्राप्ति के लिए....पांच पाठ ( अक्षत लेकर अपने ऊपर से तीन बार घुमाकर किताबों में रख दें)2👉 यश-कीर्ति के लिए.... पांच पाठ ( देवी को चढ़ाया हुआ लाल पुष्प लेकर सेफ आदि में रख लें)3👉 धन प्राप्ति के लिए....9 पाठ ( सफेद तिल से अग्यारी करें)4👉 मुकदमे से मुक्ति के लिए...सात पाठ ( पाठ के बाद एक नींबू काट दें। दो ही हिस्से हों ध्यान रखें। इनको बाहर अलग-अलग दिशा में फेंक दें)5👉 ऋण मुक्ति के लिए....सात पाठ ( जौं की 21 आहुतियां देते हुए अग्यारी करें। जिसको पैसा देना हो या जिससे लेना हो, उसका बस ध्यान कर लें)6👉 घर की सुख-शांति के लिए...तीन पाठ ( मीठा पान देवी को अर्पण करें)7👉 स्वास्थ्यके लिए...तीन पाठ ( देवी को नींबू चढाएं और फिर उसका प्रयोग कर लें)8👉 शत्रु से रक्षा के लिए..., 3, 7 या 11 पाठ ( लगातार पाठ करने से मुक्ति मिलेगी)9👉 रोजगार के लिए...3,5, 7 और 11 ( एच्छिक) ( एक सुपारी देवी को चढाकर अपने पास रख लें)10👉 सर्वबाधा शांति- तीन पाठ ( लोंग के तीन जोड़े अग्यारी पर चढ़ाएं या देवी जी के आगे तीन जोड़े लोंग के रखकर फिर उठा लें और खाने या चाय में प्रयोग कर लें।श्री सिद्धकुंजिकास्तोत्रम्🔸🔸🔹🔸🔹🔸🔸शिव उवाचशृणु देवि प्रवक्ष्यामि कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम् ।येन मन्त्रप्रभावेण चण्डीजापः भवेत् ॥१॥न कवचं नार्गलास्तोत्रं कीलकं न रहस्यकम् ।न सूक्तं नापि ध्यानं च न न्यासो न च वार्चनम् ॥२॥कुंजिकापाठमात्रेण दुर्गापाठफलं लभेत् ।अति गुह्यतरं देवि देवानामपि दुर्लभम् ॥३॥गोपनीयं प्रयत्नेन स्वयोनिरिव पार्वति ।मारणं मोहनं वश्यं स्तम्भनोच्चाटनादिकम् ।पाठमात्रेण संसिद्ध्येत् कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम् ॥४॥अथ मन्त्रः🔸🔹🔸ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। ॐ ग्लौं हुं क्लीं जूं सःज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वलऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहाइति मन्त्रः॥नमस्ते रुद्ररूपिण्यै नमस्ते मधुमर्दिनि।नमः कैटभहारिण्यै नमस्ते महिषार्दिनि ॥१॥नमस्ते शुम्भहन्त्र्यै च निशुम्भासुरघातिन ॥२॥जाग्रतं हि महादेवि जपं सिद्धं कुरुष्व मे ।ऐंकारी सृष्टिरूपायै ह्रींकारी प्रतिपालिका ॥३॥क्लींकारी कामरूपिण्यै बीजरूपे नमोऽस्तु ते ।चामुण्डा चण्डघाती च यैकारी वरदायिनी ॥४॥विच्चे चाभयदा नित्यं नमस्ते मंत्ररूपिण ॥५॥धां धीं धूं धूर्जटेः पत्नी वां वीं वूं वागधीश्वरी ।क्रां क्रीं क्रूं कालिका देविशां शीं शूं मे शुभं कुरु ॥६॥हुं हुं हुंकाररूपिण्यै जं जं जं जम्भनादिनी ।भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रे भवान्यै ते नमो नमः ॥७॥बाल वनिता महिला आश्रमअं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं हं क्षंधिजाग्रं धिजाग्रं त्रोटय त्रोटय दीप्तं कुरु कुरु स्वाहा ॥पां पीं पूं पार्वती पूर्णा खां खीं खूं खेचरी तथा ॥८॥सां सीं सूं सप्तशती देव्या मंत्रसिद्धिंकुरुष्व मे ॥इदंतु कुंजिकास्तोत्रं मंत्रजागर्तिहेतवे ।अभक्ते नैव दातव्यं गोपितं रक्ष पार्वति ॥यस्तु कुंजिकया देविहीनां सप्तशतीं पठेत् ।न तस्य जायते सिद्धिररण्ये रोदनं यथा ॥इतिश्रीरुद्रयामले गौरीतंत्रे शिवपार्वतीसंवादे कुंजिकास्तोत्रं संपूर्ण।🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸

सिद्ध कुंजिका स्तोत्र विशेष By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब 🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸 जीवन में सफलता की कुंजी है "सिद्ध कुंजिका"  दुर्गा सप्तशती में वर्णित सिद्ध कुंजिका स्तोत्र एक अत्यंत चमत्कारिक और तीव्र प्रभाव दिखाने वाला स्तोत्र है। जो लोग पूरी दुर्गा सप्तशती का पाठ नहीं कर सकते वे केवल कुंजिका स्तोत्र का पाठ करेंगे तो उससे भी संपूर्ण दुर्गा सप्तशती का फल मिल जाता है। जीवन में किसी भी प्रकार के अभाव, रोग, कष्ट, दुख, दारिद्रय और शत्रुओं का नाश करने वाले सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ नवरात्रि में अवश्य करना चाहिए। लेकिन इस स्तोत्र का पाठ करने में कुछ सावधानियां भी हैं, जिनका ध्यान रखा जाना आवश्यक है। सिद्ध कुंजिका स्तोत्र पाठ की विधि 🔸🔸🔹🔸🔸🔸🔸🔹🔸🔸 कुंजिका स्तोत्र का पाठ वैसे तो किसी भी माह, दिन में किया जा सकता है, लेकिन नवरात्रि में यह अधिक प्रभावी होता है। कुंजिका स्तोत्र साधना भी होती है, लेकिन यहां हम इसकी सर्वमान्य विधि का वर्णन कर रहे हैं। नवरात्रि के प्रथम दिन से नवमी तक प्रतिदिन इसका पाठ किया जाता है। इसलिए साधक प्रात:काल सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नानादि दैनिक कार्यों

#जय_माँ_लक्ष्मी 🙏 🙏 🙏🔯 #माता_लक्ष्मी__की_कथा 🔯 By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब एक बूढ़ा ब्राह्मण था वह रोज पीपल को जल से सींचता था । पीपल में से रोज एक लड़की निकलती और कहती पिताजी मैं आपके साथ जाऊँगी। यह सुनते-सुनते बूढ़ा दिन ब दिन कमजोर होने लगा तो बुढ़िया ने पूछा की क्या बात है ? बूढ़ा बोला कि पीपल से एक लड़की निकलती है और कहती है कि वह भी मेरे साथ चलेगी। बुढ़िया बोली कि कल ले आना उस लड़की को जहाँ छ: लड़कियाँ पहले से ही हमारे घर में है वहाँ सातवीं लड़की और सही।अगले दिन बूढ़ा उस लड़की को घर ले आया। घर लाने के बाद बूढ़ा आटा माँगने गया तो उसे पहले दिनों की अपेक्षा आज ज्यादा आटा मिला था।जब बुढ़िया वह आटा छानने लगी तो लड़की ने कहा कि लाओ माँ, मैं छान देती हूँ। जब वह आटा छानने बैठी तो परात भर गई। उसके बाद माँ खाना बनाने जाने लगी तो लड़की बोली कि आज रसोई में मैं जाऊँगी तो बुढ़िया बोली कि ना, तेरे हाथ जल जाएँगे लेकिन लड़की नहीं मानी और वह रसोई में खाना बनाने गई तो उसने तरह-तरह के छत्तीसों व्यंजन बना डाले और आज सभी ने भरपेट खाना खाया। इससे पहले वह आधा पेट भूखा ही रहते थे।रात हुई तो बुढ़िया का भाई आया और कहने लगा कि दीदी मैं तो खाना खाऊँगा। बुढ़िया परेशान हो गई कि अब खाना कहाँ से लाएगी। लड़की ने पूछा की माँ क्या बात है ? उसने कहा कि तेरा मामा आया है और रोटी खाएगा लेकिन रोटी तो सबने खा ली है अब उसके लिए कहाँ से लाऊँगी। लड़की बोली कि मैं बना दूँगी और वह रसोई में गई और मामा के लिए छत्तीसों व्यंजन बना दिए। मामा ने भरपेट खाया और कहा भी कि ऎसा खाना इससे पहले उसने कभी नहीं खाया है। बुढ़िया ने कहा कि भाई तेरी पावनी भाँजी है उसी ने बनाया है। शाम हुई तो लड़की बोली कि माँ चौका लगा के चौके का दीया जला देना, कोठे में मैं सोऊँगी। बुढ़िया बोली कि ना बेटी तू डर जाएगी लेकिन वह बोली कि ना मैं ना डरुँगी, मैं अंदर कोठे में ही सोऊँगी। वह कोठे में ही जाकर सो गई। आधी रात को लड़की उठी और चारों ओर आँख मारी तो धन ही धन हो गया। वह बाहर जाने लगी तो एक बूढ़ा ब्राह्मण सो रहा था। उसने देखा तो कहा कि बेटी तू कहाँ चली? लड़की बोली कि मैं तो दरिद्रता दूर करने आई थी। अगर तुम्हें दूर करवानी है तो करवा लो। उसने बूढे के घर में भी आँख से देखा तो चारों ओर धन ही धन हो गया।बाल वनिता महिला आश्रमसुबह सवेरे सब उठे तो लड़की को ना पाकर उसे ढूंढने लगे कि पावनी बेटी कहां चली गई। बूढ़ा ब्राह्मण बोला कि वह तो लक्ष्मी माता थी जो तुम्हारे साथ मेरी दरिद्रता भी दूर कर गई। हे लक्ष्मी माता ! जैसे आपने उनकी दरिद्रता दूर की वैसे ही सबकी करना। बोलो 👉🌹🙏जय_माँ_लक्ष्मी🙏🌹

#जय_माँ_लक्ष्मी 🙏 🙏 🙏 🔯 #माता_लक्ष्मी__की_कथा 🔯 By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब एक बूढ़ा ब्राह्मण था वह रोज पीपल को जल से सींचता था । पीपल में से रोज एक लड़की निकलती और कहती पिताजी मैं आपके साथ जाऊँगी। यह सुनते-सुनते बूढ़ा दिन ब दिन कमजोर होने लगा तो बुढ़िया ने पूछा की क्या बात है ? बूढ़ा बोला कि पीपल से एक लड़की निकलती है और कहती है कि वह भी मेरे साथ चलेगी। बुढ़िया बोली कि कल ले आना उस लड़की को जहाँ छ: लड़कियाँ पहले से ही हमारे घर में है वहाँ सातवीं लड़की और सही। अगले दिन बूढ़ा उस लड़की को घर ले आया। घर लाने के बाद बूढ़ा आटा माँगने गया तो उसे पहले दिनों की अपेक्षा आज ज्यादा आटा मिला था। जब बुढ़िया वह आटा छानने लगी तो लड़की ने कहा कि लाओ माँ, मैं छान देती हूँ। जब वह आटा छानने बैठी तो परात भर गई। उसके बाद माँ खाना बनाने जाने लगी तो लड़की बोली कि आज रसोई में मैं जाऊँगी तो बुढ़िया बोली कि ना, तेरे हाथ जल जाएँगे लेकिन लड़की नहीं मानी और वह रसोई में खाना बनाने गई तो उसने तरह-तरह के छत्तीसों व्यंजन बना डाले और आज सभी ने भरपेट खाना खाया। इससे पहले वह आधा पेट भूखा ही रहते थे। रात हुई तो

💐 अन्नमय कोश और पंच तत्वों का संतुलन :योग साधकों को जान लेना चाहिए?By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब कि पंच तत्वों से बने शरीर को सुरक्षित रखने का आधार यही है कि देह में पंच तत्व स्थिर मात्रा में रहे ।गायत्री के पांच मुख शरीर में पांच तत्व बनकर निवास करते हैं। लापरवाही, अव्यवस्था और आहार-विहार के असंयम से तत्वों का संतुलन बिगाड़ कर रोग ग्रस्त होना एक प्रकार से पंचमुखी गायत्री माता का, देह परमेश्वरी तिरस्कार करना है। पंच तत्वों में पृथ्वी तत्व शरीर का स्थिर आधार है मिट्टी से ही शरीर बना है और जला देने पर केवल मिट्टी रूप में ही इसका अस्तित्व रह जाता है इसलिए पृथ्वी तत्व तो रोग आदि का कारण नहीं बनता । पर मोटा या पतला होना लंबा या ठिगना होना, रूपवान, गोरा या काला होना आदि पृथ्वी तत्व की स्थिति से संबंधित है।आकाश का संबंध मन से बुद्धि एवं इंद्रियों की सूक्ष्म तन्मात्रा से है। उन्माद, सनक, दिल की धड़कन, अनिद्रा आदि रोग आकाश तत्व की गड़बड़ी के कारण होते हैं। वायु की मात्रा में अंतर आ जाने से गठिया ,लकवा,दर्द,अकड़न, आदि रोग उत्पन्न होते हैं ।जल तत्व की गड़बड़ी से जलोदर,पेचिस,बहुमुत्र, संग्रहनी आदि रोग होते हैं अग्नि की मात्रा कम हो तो जुकाम,अपच आदि रोग हो सकते हैं। आयुर्वेद शास्त्र में वात ,पित्त कफ का असंतुलन रोगों का कारण माना गया है। रसोई का स्वादिष्ट तथा लाभदायक होना इस बात पर निर्भर है कि इन में पड़ने वाली चीजें नियत मात्रा में है या नहीं।इसी प्रकार सब्जी,दलिया में नमक या चीनी की मात्रा बहुत कम या ज्यादा हो जाए तो भोजन का स्वाद बिगड़ जाता है ।यही स्थिति शरीर की है तत्वों की मात्रा की गड़बड़ी हो जाने से स्वास्थ्य में निश्चित रूप से खराबी आ जाती है । इसलिए अन्नमय कोश के परिमार्जन के लिए तत्व शुद्धि पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए ।💐गायत्री महा विज्ञान💐बाल वनिता महिला आश्रम

💐 अन्नमय कोश और  पंच तत्वों का संतुलन :योग साधकों को जान लेना चाहिए? By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब  कि पंच तत्वों से बने शरीर को सुरक्षित रखने का आधार यही है कि देह में पंच तत्व  स्थिर मात्रा में रहे ।गायत्री के पांच मुख शरीर में पांच तत्व बनकर निवास करते हैं। लापरवाही, अव्यवस्था और आहार-विहार के असंयम से तत्वों का संतुलन बिगाड़ कर रोग ग्रस्त होना एक प्रकार से पंचमुखी गायत्री माता का, देह परमेश्वरी तिरस्कार करना है। पंच तत्वों में पृथ्वी तत्व शरीर का स्थिर आधार है मिट्टी से ही शरीर बना है और जला देने  पर केवल मिट्टी रूप में ही इसका अस्तित्व रह जाता है इसलिए पृथ्वी तत्व तो रोग आदि का कारण नहीं बनता । पर मोटा या पतला होना लंबा या ठिगना होना, रूपवान, गोरा या काला होना आदि पृथ्वी तत्व की स्थिति से संबंधित है।आकाश का संबंध मन से बुद्धि एवं इंद्रियों की सूक्ष्म तन्मात्रा से है। उन्माद, सनक, दिल की धड़कन, अनिद्रा आदि रोग आकाश तत्व की गड़बड़ी के कारण होते हैं। वायु की मात्रा में अंतर आ जाने से गठिया ,लकवा,दर्द,अकड़न,  आदि रोग उत्पन्न होते हैं ।जल तत्व की गड़बड़ी से जलोदर,पेचिस,बहुमुत्र,  स

Bal Vanitha Mahila Ashram What is such a thing that by applying it on the navel, even 40 years old starts looking 25 years old?By philanthropist Vanitha Kasniya PunjabOriginally Answered: What are the things that can be applied on the navel?

बाल वनिता महिला आश्रम ऐसी कौन-सी चीज है जो नाभि पर लगाते रहने से 40 साल का भी 25 साल का नजर आने लगता है? By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब सबसे पहले जवाब दिया गया: ऐसी कौन-सी चीज है जो नाभि पर लगाने से 40 साल का भी 25 साल का नजर आने लगता है? बचपन से ही नाभि पर साधारण देसी घी/सरसों तेल/ हींग या लौंग वाला देसी घी लगाते हमने देखा है। आजकल तो नाभि से सम्बंधित चीजों की बाढ़ जैसी आ गई है तेल लगाने से लेकर मालिश, लेप, नेवल केंडलिग, विभिन्न प्रकार के नेवल थेरपिज आदि। हमारे यहां इसका इस्तेमाल पीढ़ियों से चला आ रहा है और यह बेहद असरदार साबित होता रहा है। सबसे पहले जान लेते हैं नाभि की महत्वता:- जब हम  कुंडलिनी, नाड़ी तंत्र और क्लासिकल हट योग की बात करते हैं तब आपकी नाभि को ऊर्जा के सबसे महत्वपूर्ण केंद्र के रूप में देखा जाता है। नाभि को प्राण की उत्पत्ति या बीज के रूप में भी देखा जाता है क्योंकि मां से गर्भ में पल रहे बच्चे को सारे पोषक तत्व नाभि (umbilical cord) से ही प्राप्त होते हैं। कुंडलिनी के संदर्भ में नाभि के स्थान को मणिपुर 👆👆👆चक्र / एनर्जी चैनल के रूप में देखा जाता है इसे सोलर पलक्स

Narasimha Puja 1. If Narasimha continues to worship the mind, he will get the power to defeat his enemies. 2. Those who accept Narasimha as the worship deity, they will get fame in all the 8 directions. 3. Due to the incarnation of Narasimha, forgotten Vedas, incomprehensible languages ​​and lost sacrifices have become common and have attained high status. One of the eight divine nations of the 4th century is "Singhalekundara". It is worth mentioning that the songs, songs and news sung on this site are only Narasimha avatar. 5. The first mention of Narasimha Avatar is found in Paripat. 6. Narasimha is also known as Narasimham, Singpran, Arikumattu Aksthan, Seem, Naram Singh, Ari and Anari. 7. Parasuraman and Balaraman are the two forms of anger in the ten incarnations of Tirumal. Thus the two avatars were not worshiped much by the Vaishnavas. But even though the Narasimha avatar is considered fierce, devotees worship him. 8. Kanbardan was the first to pronounce Narasimha Avatar. 9. Thirumagadevar in his Sivaka Chintamani, "Narasimha is the one who has found the devil," Narasimha Avatar. 10. Shiva came and drank the blood of Narasimha, who became enraged when he drank the blood of iron. After this he says that Narasimhar's anger has subsided. This information has been mentioned in Abhidhan Chintamani. 11. The real name of Sholingar is Cholasingapuram. The city, which was named after Narasimha, was incorrectly called Sholingar. 12. Narasimha Shrine is a cave temple at Singha Perumal Temple, Mattapally, Yatagirighatta and Mangalagiri. 13. Devotees believe that Narasimhara Niventiyal accepts half of the heart that we give to the lower octopus and releases the rest from his mouth. 14. Nanganallur Narasimha Temple was built around 1500 years ago. It was discovered by Indian archaeologists in 1974. 15. Adi Shankaracharya, who became the deity of Lord Shiva, praised Sri Lakshmi Narasimha and immediately gave him Narasimha. 16. Whenever you recite Narasimha Avatar, study the worship of Baghim, fruits and youths. 17. Lord Narasimha incarnated to realize that "I am in all things". Therefore Narasimha can be worshiped anywhere. 18. Narasimha avatar is a sudden incarnation of the avatars of Tirumal. 19. The Sun in the right eye of Narasimha, the Moon in the left eye and the fire in the middle eye. 20. Narasimhan means light-hearted. 21. Devotees believe that Narasimha's Tejas Gayatri is within magic. 22. "An Electric Phenomenon," says German scholar MaxManiler on Narasimha Avatar. 23. There are indications that Narasimha's roar generated during the killing of Iranikashipu crossed the 7 worlds. 24. Bhadra is also a name of Mahalakshmi. That is why Narasimman is also called Badran. The meaning of Badran is auspicious. 25. It is believed that though the Lord took many incarnations, his name would eventually go to Narasimhamarthi. 26. The first incarnation of Sahasranama is Narasimha Avatar. 27. There is something special in Narasimha Avatar which cannot be measured. 28. Ramayana, Mahabharata, Bhagavatam, 18 Puranas and Upa Puranas are all mentioned in the specialty of Narasimha. 29. Narasimha Mantra starts with one letter and extends to one lakh thirty two and can be fruitful. 30. Wherever Narasimha blesses, Anjaneyaar is firm. 31. Yog Narasimha is holding a knife in the waist in Vedatri. If people performing surgery worship him, then good results are obtained. 32. A torch will be held against the nose of Narasimha on the head of Vadapalli. It is believed that the lamp is moving in the air and Narasimha's breath is in the air. At the same time, the torch on Narasimhar's feet keeps burning unceasingly. 33. Worshiping Narasimha in Matapally will remove mental troubles. 34. While worshiping Narasimha, a poo-poo with the words "Srinarasimhaya Naama" is worshipped and one gets the benefit of learning all the magic. 35. Narasimha's name is also "perumal, shaking hands". This means that the devotees will be able to help him in the next hour when he is beaten with authority. 36. We should worship Narasimha like a publication. If you have such devotion, there is no need to ask for it. 37. Narasimha is full of all things. So he will give it to you without asking. If Narasimha is worshiped as Mridyuyesvak, then the fear of death will end. 38. There are many temples for Narasimha in Andhra Pradesh. The temple in the throne is covered with sandalwood on the statue throughout the year to reduce the anger of the originator. One day of the year can be seen without sandalwood. 39. Will drink matka in Mangalagiri temple. The name of the promoter is Banaka Lakshmi Narasimha Swamy. 40. There are many Narasimha temples which offer yoga. There is also a Yogananda Narasimha Swamy temple in front of Srikuramaham temple in tortoiseshell avatar. Pancha Narasimha Murthy is the originator of Vedadri. "" ""

नरसिंह पूजा By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब  1. यदि नरसिंह मन की पूजा करना जारी रखते हैं, तो उन्हें अपने शत्रुओं को हराने की शक्ति प्राप्त होगी।  2. जो लोग नरसिंह को उपासना देवता के रूप में स्वीकार करते हैं, वे सभी 8 दिशाओं में प्रसिद्धि प्राप्त करेंगे।  3. नरसिंह अवतार के कारण भूले हुए वेद, अबोध भाषाएँ और लुप्त यज्ञ सामान्य रह गए हैं और उच्च पद प्राप्त कर चुके हैं।  4. सदी के आठ दिव्य राष्ट्रों में से एक "सिंघलेकुंडरा" है। उल्लेखनीय है कि इस साइट पर गाए जाने वाले गीतों, गीतों और समाचारों के केवल नरसिंह अवतार हैं।  5. नरसिंह अवतार का पहला उल्लेख परीपत में मिलता है।  6. नरसिंह को नरसिंहम, सिंगप्रान, अरिकुमट्टू अक्षथान, सीम, नारम सिंह, अरी और अनारी के नाम से भी जाना जाता है।  7. परशुरामन और बलरामन तिरुमल के दस अवतारों में क्रोध के दो रूप हैं। इस प्रकार वैष्णवों द्वारा दोनों अवतारों की अधिक पूजा नहीं की गई। लेकिन भले ही नरसिंह अवतार को भयंकर माना जाता है, लेकिन भक्त उनकी पूजा करते हैं।  8. कंबरदान ने सबसे पहले नरसिंह अवतार का उच्चारण किया था।  9. थिरुमगदेवर ने अपने शिवका चि