अगर किसी को ईश्वर पर पूर्ण विश्वास हो तो ये हकीकत है और न हो तो ये उसके लिए फसाना है.कर्ज से मुक्ति का कुछ सरल और ज्योतिष उपाय क्या हैं?By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाबहमारे शास्त्रो मे ऋण मुक्ति के अनेकानेक उपाय विधियो का उल्लेख किया गया है जिसमे से एक अत्यंत शीघ्र प्रभावकारी स्त्रोत जो मुझे श्री गुरु मुख से प्राप्त हुआ का उल्लेख रूद्रयामल तंन्त्र मे किया गया है जो कि इसप्रकार से है ।बाल वनिता महिला आश्रमविधि- शुक्ल पक्ष के किसी बुधवार को श्री गणेश जी के प्रतिरूप को वाजोट पर लाल रंग के आसन पर स्थापित कर विधिवत पूजन कर लडडू का भोग अर्पित करे के बाद उत्तराभिमुख होकर " ॐ गणेश ऋणं छिन्धि वरेण्यं हुं नमः फट् " का एक माला ( 108 बार ) जप करे के बाद निम्नवत स्त्रोत का 11 बार पाठ नित्य नियत समय पर करे -अथ ऋणमुक्तिगणेश स्त्रोत्अस्य श्री ऋण विमोचन महागणपति स्त्रोत मंत्रस्य शुक्राचार्य ऋषिः , ऋण विमोचन महागणपति र्देवता , अनुष्टुप् छन्दः, ऋण विमोचन महागणपति प्रीत्यर्थे जपे विनियोगः ।ॐ स्मरामि देवदेवेशं वक्रतुण्डं महाबलम् ।षडक्षरं कृपासिन्धुं नमामि ऋणमुक्तये । ।महागणपतिं वन्दे महासेतुं महाबलम् ।एकमेवाद्वितीयं तु नमामि ऋणमुक्तिये । ।एकाक्षरं त्वेकदन्तमेकं ब्रह्म सनातनम् ।महाविध्नहरं देवं नमामि ऋणमुक्तिये । ।शुक्लाम्बरं शुक्लवर्ण शुक्लगन्धानुलेपनम् ।सर्वशुक्लमयं देवं नमामि ऋणमुक्तिये । ।रक्ताम्बरं रक्तवर्ण रक्तगन्धानुलेपनम् ।रक्तपुष्पैः पूज्यमानं नमामि ऋणमुक्तिये । ।कृष्णाम्बरं कृष्णवर्ण कृष्णगन्धानुलेपनम् ।कृष्णयज्ञोपवीतं च नमामि ऋणमुक्तिये ।।पीताम्बरं पीतवर्ण पीतगन्धानुलेपनम् ।पीतपुष्पैः पूज्यमानं नमामि ऋणमुक्तिये ।।सर्वात्मकं सर्ववर्ण सर्वगन्धानुलेपनम् ।सर्वपुष्पैः पूज्यमानं नमामि ऋणमुक्तिये । ।एतद् ऋणहरं स्त्रोतं त्रिसन्ध्यं यः पठेन्नरः ।षणमासाभ्यन्तरे तस्य ऋणच्छेदो न संशयः । ।सहस्त्रदशकं कृत्वा ऋणमुक्तो धनी भवेत् । ।अन्त मे एक माला "ॐ गणेश ऋणं छिन्धि वरेण्यं हूँ नमः फट् " का जप करने के बाद श्री गणेश जी क्षमा प्रार्थना करने से शीघ्र ऋणमुक्ति प्राप्त होती है अद्वितीय एवं विलक्षण स्त्रोत है जो शीघ्रता फल प्रदान करने वाला है ।अत्यंत उपयोगी महत्वपूर्ण प्रश्न करने के लिए आपका ह्दय से आभार श्री गणेश ऋद्धि सिद्धी सहित सभी को ऋण से मुक्ति प्रदान करे साथ ही सभी कामनाओ को पूर्ण करे ऐसी मंगल कामना के साथ सभी पाठको का ह्दय से वंदन।मूल स्रोत- श्री गुरु कृपाइमेज स्रोत गूगल
अगर किसी को ईश्वर पर पूर्ण विश्वास हो तो ये हकीकत है और न हो तो ये उसके लिए फसाना है.
कर्ज से मुक्ति का कुछ सरल और ज्योतिष उपाय क्या हैं?
हमारे शास्त्रो मे ऋण मुक्ति के अनेकानेक उपाय विधियो का उल्लेख किया गया है जिसमे से एक अत्यंत शीघ्र प्रभावकारी स्त्रोत जो मुझे श्री गुरु मुख से प्राप्त हुआ का उल्लेख रूद्रयामल तंन्त्र मे किया गया है जो कि इसप्रकार से है ।
विधि- शुक्ल पक्ष के किसी बुधवार को श्री गणेश जी के प्रतिरूप को वाजोट पर लाल रंग के आसन पर स्थापित कर विधिवत पूजन कर लडडू का भोग अर्पित करे के बाद उत्तराभिमुख होकर " ॐ गणेश ऋणं छिन्धि वरेण्यं हुं नमः फट् " का एक माला ( 108 बार ) जप करे के बाद निम्नवत स्त्रोत का 11 बार पाठ नित्य नियत समय पर करे -
अथ ऋणमुक्तिगणेश स्त्रोत्
अस्य श्री ऋण विमोचन महागणपति स्त्रोत मंत्रस्य शुक्राचार्य ऋषिः , ऋण विमोचन महागणपति र्देवता , अनुष्टुप् छन्दः, ऋण विमोचन महागणपति प्रीत्यर्थे जपे विनियोगः ।
ॐ स्मरामि देवदेवेशं वक्रतुण्डं महाबलम् ।
षडक्षरं कृपासिन्धुं नमामि ऋणमुक्तये । ।
महागणपतिं वन्दे महासेतुं महाबलम् ।
एकमेवाद्वितीयं तु नमामि ऋणमुक्तिये । ।
एकाक्षरं त्वेकदन्तमेकं ब्रह्म सनातनम् ।
महाविध्नहरं देवं नमामि ऋणमुक्तिये । ।
शुक्लाम्बरं शुक्लवर्ण शुक्लगन्धानुलेपनम् ।
सर्वशुक्लमयं देवं नमामि ऋणमुक्तिये । ।
रक्ताम्बरं रक्तवर्ण रक्तगन्धानुलेपनम् ।
रक्तपुष्पैः पूज्यमानं नमामि ऋणमुक्तिये । ।
कृष्णाम्बरं कृष्णवर्ण कृष्णगन्धानुलेपनम् ।
कृष्णयज्ञोपवीतं च नमामि ऋणमुक्तिये ।।
पीताम्बरं पीतवर्ण पीतगन्धानुलेपनम् ।
पीतपुष्पैः पूज्यमानं नमामि ऋणमुक्तिये ।।
सर्वात्मकं सर्ववर्ण सर्वगन्धानुलेपनम् ।
सर्वपुष्पैः पूज्यमानं नमामि ऋणमुक्तिये । ।
एतद् ऋणहरं स्त्रोतं त्रिसन्ध्यं यः पठेन्नरः ।
षणमासाभ्यन्तरे तस्य ऋणच्छेदो न संशयः । ।
सहस्त्रदशकं कृत्वा ऋणमुक्तो धनी भवेत् । ।
अन्त मे एक माला "ॐ गणेश ऋणं छिन्धि वरेण्यं हूँ नमः फट् " का जप करने के बाद श्री गणेश जी क्षमा प्रार्थना करने से शीघ्र ऋणमुक्ति प्राप्त होती है अद्वितीय एवं विलक्षण स्त्रोत है जो शीघ्रता फल प्रदान करने वाला है ।
अत्यंत उपयोगी महत्वपूर्ण प्रश्न करने के लिए आपका ह्दय से आभार श्री गणेश ऋद्धि सिद्धी सहित सभी को ऋण से मुक्ति प्रदान करे साथ ही सभी कामनाओ को पूर्ण करे ऐसी मंगल कामना के साथ सभी पाठको का ह्दय से वंदन।
मूल स्रोत- श्री गुरु कृपा
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