लक्ष्मीहिन्दू धर्म की धन-समृद्धि, सुख-सम्पदा की देवी के रूप में सुप्रसिद्ध!By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाबइस लेख में सन्दर्भ या स्रोत नहीं दिया गया है।लक्ष्मी ; संस्कृत: लक्ष्मी, lakṣmī) हिन्दू धर्म की एक प्रमुख देवी हैं। वह भगवान विष्णु की पत्नी हैं। पार्वती और सरस्वती के साथ, वह त्रिदेवियाँ में से एक है और धन, सम्पदा, शान्ति और समृद्धि की देवी मानी जाती हैं। दीपावली के त्योहार में उनकी गणेश सहित पूजा की जाती है। जिनका उल्लेख सबसे पहले ऋग्वेद के श्री सूक्त में मिलता है।लक्ष्मीधनलक्ष्मी, संबंधदेवी/शक्तिनिवासस्थानबैकुंठअस्त्रकमलजीवनसाथीविष्णुसवारीउल्लूगायत्री की कृपा से मिलने वाले वरदानों में एक लक्ष्मी भी है। जिस पर यह अनुग्रह उतरता है, वह दरिद्र, दुर्बल, कृपण, असंतुष्ट एवं पिछड़ेपन से ग्रसित नहीं रहता। स्वच्छता एवं सुव्यवस्था के स्वभाव को भी 'श्री' कहा गया है। यह सद्गुण जहाँ होंगे, वहाँ दरिद्रता, कुरुपता टिक नहीं सकेगी।पदार्थ को मनुष्य के लिए उपयोगी बनाने और उसकी अभीष्ट मात्रा उपलब्ध करने की क्षमता को लक्ष्मी कहते हैं। यों प्रचलन में तो 'लक्ष्मी' शब्द सम्पत्ति के लिए प्रयुक्त होता है, पर वस्तुतः वह चेतना का एक गुण है, जिसके आधार पर निरुपयोगी वस्तुओं को भी उपयोगी बनाया जा सकता है। मात्रा में स्वल्प होते हुए भी उनका भरपूर लाभ सत्प्रयोजनों के लिए उठा लेना एक विशिष्ट कला है। वह जिसे आती है उसे लक्ष्मीवान्, श्रीमान् कहते हैं। शेष अमीर लोगों को धनवान् भर कहा जाता है। गायत्री की एक किरण लक्ष्मी भी है। जो इसे प्राप्त करता है, उसे स्वल्प साधनों में भी अथर् उपयोग की कला आने के कारण सदा सुसम्पन्नों जैसी प्रसन्नता बनी रहती है।श्री, लक्ष्मी के लिए एक सम्मानजनक शब्द, पृथ्वी की मातृभूमि के रूप में सांसारिक क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करता है, जिसे पृथ्वी माता के रूप में संदर्भित किया जाता है, और उसे भु देवीऔर श्री देवी के अवतार मानी जाती हैं।जैन धर्म में भी लक्ष्मी एक महत्वपूर्ण देवता हैं और जैन मंदिरों में पाए जाते हैं। लक्ष्मी भी बौद्धों के लिए प्रचुरता और भाग्य की देवी रही हैं, और उन्हें बौद्ध धर्म के सबसे पुराने जीवित स्तूपों और गुफा मंदिरों का प्रतिनिधित्व किया गया था।By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाबअर्थधन का अधिक मात्रा में संग्रह होने मात्र से किसी को सौभाग्यशाली नहीं कहा जा सकता। सद्बुद्धि के अभाव में वह नशे का काम करती है, जो मनुष्य को अहंकारी, उद्धत, विलासी और दुर्व्यसनी बना देता है। सामान्यतः धन पाकर लोग कृपण, विलासी, अपव्ययी और अहंकारी हो जाते हैं। लक्ष्मी का एक वाहन उलूक माना गया है। उलूक अथार्त् मूखर्ता। कुसंस्कारी व्यक्तियों को अनावश्यक सम्पत्ति मूर्ख ही बनाती है। उनसे दुरुपयोग ही बन पड़ता है और उसके फल स्वरूप वह आहत ही होता है।स्वरूपमाता महालक्ष्मी के अनेक रूप है जिस में से उनके आठ स्वरूप जिन को अष्टलक्ष्मी कहते है प्रसिद्ध हैलक्ष्मी का अभिषेक दो हाथी करते हैं। वह कमल के आसन पर विराजमान है।कमल कोमलता का प्रतीक है। लक्ष्मी के एक मुख, चार हाथ हैं। वे एक लक्ष्य और चार प्रकृतियों (दूरदर्शिता, दृढ़ संकल्प, श्रमशीलता एवं व्यवस्था शक्ति) के प्रतीक हैं। दो हाथों में कमल-सौन्दयर् और प्रामाणिकता के प्रतीक है। दान मुद्रा से उदारता तथा आशीर्वाद मुद्रा से अभय अनुग्रह का बोध होता है। वाहन-उलूक, निर्भीकता एवं रात्रि में अँधेरे में भी देखने की क्षमता का प्रतीक है।कोमलता और सुंदरता सुव्यवस्था में ही सन्निहित रहती है। कला भी इसी सत्प्रवृत्ति को कहते हैं। लक्ष्मी का एक नाम कमल भी है। इसी को संक्षेप में कला कहते हैं। वस्तुओं को, सम्पदाओं को सुनियोजित रीति से सद्दुश्य के लिए सदुपयोग करना, उसे परिश्रम एवं मनोयोग के साथ नीति और न्याय की मयार्दा में रहकर उपार्जित करना भी अथर्कला के अंतगर्त आता है। उपार्जन अभिवधर्न में कुशल होना श्री तत्त्व के अनुग्रह का पूवार्ध है। उत्तरार्ध वह है जिसमें एक पाई का भी अपव्यय नहीं किया जाता। एक-एक पैसे को सदुद्देश्य के लिए ही खर्च किया जाता है।लक्ष्मी का जल-अभिषेक करने वाले दो गजराजों को परिश्रम और मनोयोग कहते हैं। उनका लक्ष्मी के साथ अविच्छिन्न संबंध है। यह युग्म जहाँ भी रहेगा, वहाँ वैभव की, श्रेय-सहयोग की कमी रहेगी ही नहीं। प्रतिभा के धनी पर सम्पन्नता और सफलता की वर्षा होती है और उन्हें उत्कर्ष के अवसर पग-पग पर उपलब्ध होते हैं।गायत्री के तत्त्वदशर्न एवं साधन क्रम की एक धारा लक्ष्मी है। इसका शिक्षण यह है कि अपने में उस कुशलता की, क्षमता की अभिवृद्धि की जाये, तो कहीं भी रहो, लक्ष्मी के अनुग्रह और अनुदान की कमी नहीं रहेगी। उसके अतिरिक्त गायत्री उपासना की एक धारा 'श्री' साधना है। उसके विधान अपनाने पर चेतना-केन्द्र में प्रसुप्त पड़ी हुई वे क्षमताएँ जागृत होती हैं, जिनके चुम्बकत्व से खिंचता हुआ धन-वैभव उपयुक्त मात्रा में सहज ही एकत्रित होता रहता है। एकत्रित होने पर बुद्धि की देवी सरस्वती उसे संचित नहीं रहने देती, वरन् परमाथर् प्रयोजनों में उसके सदुपयोग की प्रेरणा देती है।फलदायकलक्ष्मी प्रसन्नता की, उल्लास की, विनोद की देवी है। वह जहाँ रहेगी हँसने-हँसाने का वातावरण बना रहेगा। अस्वच्छता भी दरिद्रता है। सौन्दर्य, स्वच्छता एवं कलात्मक सज्जा का ही दूसरा नाम है। लक्ष्मी सौन्दर्य की देवी है। वह जहाँ रहेगी वहाँ स्वच्छता, प्रसन्नता, सुव्यवस्था, श्रमनिष्ठा एवं मितव्ययिता का वातावरण बना रहेगा।गायत्री की लक्ष्मी धारा का आववाहन करने वाले श्रीवान बनते हैं और उसका आनंद एकाकी न लेकर असंख्यों को लाभान्वित करते हैं। लक्ष्मी के स्वरूप, वाहन आदि का संक्षेप में विवेचन इस प्रकार है-विष्णु - लक्ष्मी विवाहसमुद्र मंथन से लक्ष्मी जी निकलीं। लक्ष्मी जी ने स्वयं ही भगवान विष्णु को वर लिया।इन्हें भी देखें
लक्ष्मी
हिन्दू धर्म की धन-समृद्धि, सुख-सम्पदा की देवी के रूप में सुप्रसिद्ध!
इस लेख में सन्दर्भ या स्रोत नहीं दिया गया है।
लक्ष्मी ; संस्कृत: लक्ष्मी, IAST: lakṣmī) हिन्दू धर्म की एक प्रमुख देवी हैं। वह भगवान विष्णु की पत्नी हैं। पार्वती और सरस्वती के साथ, वह त्रिदेवियाँ में से एक है और धन, सम्पदा, शान्ति और समृद्धि की देवी मानी जाती हैं। दीपावली के त्योहार में उनकी गणेश सहित पूजा की जाती है। जिनका उल्लेख सबसे पहले ऋग्वेद के श्री सूक्त में मिलता है।
लक्ष्मी
धन
लक्ष्मी,
संबंध
देवी/शक्ति
निवासस्थान
बैकुंठ
अस्त्र
कमल
जीवनसाथी
विष्णु
सवारी
उल्लू
गायत्री की कृपा से मिलने वाले वरदानों में एक लक्ष्मी भी है। जिस पर यह अनुग्रह उतरता है, वह दरिद्र, दुर्बल, कृपण, असंतुष्ट एवं पिछड़ेपन से ग्रसित नहीं रहता। स्वच्छता एवं सुव्यवस्था के स्वभाव को भी 'श्री' कहा गया है। यह सद्गुण जहाँ होंगे, वहाँ दरिद्रता, कुरुपता टिक नहीं सकेगी।
पदार्थ को मनुष्य के लिए उपयोगी बनाने और उसकी अभीष्ट मात्रा उपलब्ध करने की क्षमता को लक्ष्मी कहते हैं। यों प्रचलन में तो 'लक्ष्मी' शब्द सम्पत्ति के लिए प्रयुक्त होता है, पर वस्तुतः वह चेतना का एक गुण है, जिसके आधार पर निरुपयोगी वस्तुओं को भी उपयोगी बनाया जा सकता है। मात्रा में स्वल्प होते हुए भी उनका भरपूर लाभ सत्प्रयोजनों के लिए उठा लेना एक विशिष्ट कला है। वह जिसे आती है उसे लक्ष्मीवान्, श्रीमान् कहते हैं। शेष अमीर लोगों को धनवान् भर कहा जाता है। गायत्री की एक किरण लक्ष्मी भी है। जो इसे प्राप्त करता है, उसे स्वल्प साधनों में भी अथर् उपयोग की कला आने के कारण सदा सुसम्पन्नों जैसी प्रसन्नता बनी रहती है।
श्री, लक्ष्मी के लिए एक सम्मानजनक शब्द, पृथ्वी की मातृभूमि के रूप में सांसारिक क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करता है, जिसे पृथ्वी माता के रूप में संदर्भित किया जाता है, और उसे भु देवीऔर श्री देवी के अवतार मानी जाती हैं।
जैन धर्म में भी लक्ष्मी एक महत्वपूर्ण देवता हैं और जैन मंदिरों में पाए जाते हैं। लक्ष्मी भी बौद्धों के लिए प्रचुरता और भाग्य की देवी रही हैं, और उन्हें बौद्ध धर्म के सबसे पुराने जीवित स्तूपों और गुफा मंदिरों का प्रतिनिधित्व किया गया था।
अर्थ
धन का अधिक मात्रा में संग्रह होने मात्र से किसी को सौभाग्यशाली नहीं कहा जा सकता। सद्बुद्धि के अभाव में वह नशे का काम करती है, जो मनुष्य को अहंकारी, उद्धत, विलासी और दुर्व्यसनी बना देता है। सामान्यतः धन पाकर लोग कृपण, विलासी, अपव्ययी और अहंकारी हो जाते हैं। लक्ष्मी का एक वाहन उलूक माना गया है। उलूक अथार्त् मूखर्ता। कुसंस्कारी व्यक्तियों को अनावश्यक सम्पत्ति मूर्ख ही बनाती है। उनसे दुरुपयोग ही बन पड़ता है और उसके फल स्वरूप वह आहत ही होता है।
स्वरूप
माता महालक्ष्मी के अनेक रूप है जिस में से उनके आठ स्वरूप जिन को अष्टलक्ष्मी कहते है प्रसिद्ध है
लक्ष्मी का अभिषेक दो हाथी करते हैं। वह कमल के आसन पर विराजमान है।
कमल कोमलता का प्रतीक है। लक्ष्मी के एक मुख, चार हाथ हैं। वे एक लक्ष्य और चार प्रकृतियों (दूरदर्शिता, दृढ़ संकल्प, श्रमशीलता एवं व्यवस्था शक्ति) के प्रतीक हैं। दो हाथों में कमल-सौन्दयर् और प्रामाणिकता के प्रतीक है। दान मुद्रा से उदारता तथा आशीर्वाद मुद्रा से अभय अनुग्रह का बोध होता है। वाहन-उलूक, निर्भीकता एवं रात्रि में अँधेरे में भी देखने की क्षमता का प्रतीक है।
कोमलता और सुंदरता सुव्यवस्था में ही सन्निहित रहती है। कला भी इसी सत्प्रवृत्ति को कहते हैं। लक्ष्मी का एक नाम कमल भी है। इसी को संक्षेप में कला कहते हैं। वस्तुओं को, सम्पदाओं को सुनियोजित रीति से सद्दुश्य के लिए सदुपयोग करना, उसे परिश्रम एवं मनोयोग के साथ नीति और न्याय की मयार्दा में रहकर उपार्जित करना भी अथर्कला के अंतगर्त आता है। उपार्जन अभिवधर्न में कुशल होना श्री तत्त्व के अनुग्रह का पूवार्ध है। उत्तरार्ध वह है जिसमें एक पाई का भी अपव्यय नहीं किया जाता। एक-एक पैसे को सदुद्देश्य के लिए ही खर्च किया जाता है।
लक्ष्मी का जल-अभिषेक करने वाले दो गजराजों को परिश्रम और मनोयोग कहते हैं। उनका लक्ष्मी के साथ अविच्छिन्न संबंध है। यह युग्म जहाँ भी रहेगा, वहाँ वैभव की, श्रेय-सहयोग की कमी रहेगी ही नहीं। प्रतिभा के धनी पर सम्पन्नता और सफलता की वर्षा होती है और उन्हें उत्कर्ष के अवसर पग-पग पर उपलब्ध होते हैं।
गायत्री के तत्त्वदशर्न एवं साधन क्रम की एक धारा लक्ष्मी है। इसका शिक्षण यह है कि अपने में उस कुशलता की, क्षमता की अभिवृद्धि की जाये, तो कहीं भी रहो, लक्ष्मी के अनुग्रह और अनुदान की कमी नहीं रहेगी। उसके अतिरिक्त गायत्री उपासना की एक धारा 'श्री' साधना है। उसके विधान अपनाने पर चेतना-केन्द्र में प्रसुप्त पड़ी हुई वे क्षमताएँ जागृत होती हैं, जिनके चुम्बकत्व से खिंचता हुआ धन-वैभव उपयुक्त मात्रा में सहज ही एकत्रित होता रहता है। एकत्रित होने पर बुद्धि की देवी सरस्वती उसे संचित नहीं रहने देती, वरन् परमाथर् प्रयोजनों में उसके सदुपयोग की प्रेरणा देती है।
फलदायक
लक्ष्मी प्रसन्नता की, उल्लास की, विनोद की देवी है। वह जहाँ रहेगी हँसने-हँसाने का वातावरण बना रहेगा। अस्वच्छता भी दरिद्रता है। सौन्दर्य, स्वच्छता एवं कलात्मक सज्जा का ही दूसरा नाम है। लक्ष्मी सौन्दर्य की देवी है। वह जहाँ रहेगी वहाँ स्वच्छता, प्रसन्नता, सुव्यवस्था, श्रमनिष्ठा एवं मितव्ययिता का वातावरण बना रहेगा।
गायत्री की लक्ष्मी धारा का आववाहन करने वाले श्रीवान बनते हैं और उसका आनंद एकाकी न लेकर असंख्यों को लाभान्वित करते हैं। लक्ष्मी के स्वरूप, वाहन आदि का संक्षेप में विवेचन इस प्रकार है-
विष्णु - लक्ष्मी विवाह
समुद्र मंथन से लक्ष्मी जी निकलीं। लक्ष्मी जी ने स्वयं ही भगवान विष्णु को वर लिया।
इन्हें भी देखें
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें