आरती श्री विष्णु भगवान जी कीBy समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाबॐ जय जगदीश हरे, प्रभु! जय जगदीश हरे|भक्तजनों के संकट, क्षण में दूर करे||ॐ जय जगदीश हरे||जो ध्यावै फल पावै, दु:ख बिनसै मनका|सुख सम्पत्ति घर आवै, कष्ट मिटै तनका||ॐ जय जगदीश हरे||मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूँ किसकी|तुम बिन और न दूजा, आस करूँ जिसकी||ॐ जय जगदीश हरे||तुम पूरण परमात्मा, तुम अंतर्यामी|पार ब्रह्म परमेश्वर, तुम सबके स्वामी||ॐ जय जगदीश हरे||तुम करुणा के सागर, तुम पालनकर्ता|मैं मूरख खल कामी, कृपा करो भर्ता||ॐ जय जगदीश हरे||तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति|किस विधि मिलूँ दयामय, तुमको मैं कुमती||ॐ जय जगदीश हरे||दीनबन्धु, दु:खहर्ता तुम ठाकुर मेरे|अपने हाथ उठाओ, द्वार पड़ा (मैं) तेरे||ॐ जय जगदीश हरे||विषय विकार मिटाओ, पाप हरो देवा|श्रद्धा-भक्ति बढ़ाओ, संतन की सेवा||ॐ जय जगदीश हरे||ॐ जय जगदीश हरे, प्रभु! जय जगदीश हरे|भक्तजनों के संकट, क्षण में दूर करे||ॐ जय जगदीश हरे||
आरती श्री विष्णु भगवान जी की
भक्तजनों के संकट, क्षण में दूर करे||
ॐ जय जगदीश हरे||
जो ध्यावै फल पावै, दु:ख बिनसै मनका|
सुख सम्पत्ति घर आवै, कष्ट मिटै तनका||
ॐ जय जगदीश हरे||
मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूँ किसकी|
तुम बिन और न दूजा, आस करूँ जिसकी||
ॐ जय जगदीश हरे||
तुम पूरण परमात्मा, तुम अंतर्यामी|
पार ब्रह्म परमेश्वर, तुम सबके स्वामी||
ॐ जय जगदीश हरे||
तुम करुणा के सागर, तुम पालनकर्ता|
मैं मूरख खल कामी, कृपा करो भर्ता||
ॐ जय जगदीश हरे||
तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति|
किस विधि मिलूँ दयामय, तुमको मैं कुमती||
ॐ जय जगदीश हरे||
दीनबन्धु, दु:खहर्ता तुम ठाकुर मेरे|
अपने हाथ उठाओ, द्वार पड़ा (मैं) तेरे||
ॐ जय जगदीश हरे||
विषय विकार मिटाओ, पाप हरो देवा|
श्रद्धा-भक्ति बढ़ाओ, संतन की सेवा||
ॐ जय जगदीश हरे||
ॐ जय जगदीश हरे, प्रभु! जय जगदीश हरे|
भक्तजनों के संकट, क्षण में दूर करे||
ॐ जय जगदीश हरे||
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