दुर्गा माँ के अनेक रूप में से एक माँ शैलपुत्री के बारे में आप क्या बता सकते हैं?बाल वनिता महिला वृद्ध आश्रम संगरिया राजस्थान की अध्यक्ष श्रीमती वनिता कासनियां पंजाबनेहा जी प्रश्न के लिए धन्यवाद।आइए देखते हैं देवी माँ का शैलपुत्री नाम कहाँ किस संदर्भ में आया है।दुर्गा सप्तशती के पाठ के आरम्भ में पाठ की सिद्धि सफलता के लिए★ कवच ★कीलक और ★अर्गलाइन तीन का पाठ करने पर जोर दिया गया है।इनमें से प्रथम देव्या कवचम के पाठ से साधक का सम्पूर्ण शरीर सभी प्रकार की बाधाओं से सुरक्षित हो जाता है।इसमें ५६ श्लोक हैं।देवी चण्डिका को नमस्कार के उपरांत इन श्लोकों में से आरंभ के तीसरे चौथे और पांचवें श्लोक में जगदंबिका के नौ नाम दिए हैं:प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्म चारिणी ।तृतीयं चंद्र घण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम।।पञ्चमं स्कन्द मातेति षष्टम कात्यायनीति च।सप्तम कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम ।।नवमं सिद्धिदात्री च नव दुर्गा: प्रकीर्तिताः।उपरोक्त नौ नामों में प्रथम नाम शैलपुत्री है। इसका अर्थ हुआ गिरिराज हिमालय की पुत्री पार्वती।यह हिमालय की तपस्या से प्रसन्न होकर उनकी पुत्री रूप में प्रकट हुईं। इसकी पुराण व्याख्या से इतर अन्य तांत्रिक व्याख्याएं भी हैं।विभिन्न पुराणों में इसका आख्यान है। इसी प्रकार अन्य नामों की भी व्याख्या है।_______________________________★शैलपुत्री पार्वती शिव की अर्धांगिनी हैं , शिव शक्ति के इस संयुक्त स्वरूप की शाक्त शैव दर्शनों में कई तरह से व्याख्या है।★यह शैलपुत्री पार्वती ही आदिशक्ति हैं जिनके विविध नाम रूप हैं। सृजन पालन संहार करने वाली शक्ति हैं,महा सरस्वती महालक्ष्मी महाकाली हैं, सर्व व्यापी चेतना हैं।________________________________दुर्गा सतशती के पंचम अध्य्याय में कहा गया है कि जब देवता , शुम्भ निशुम्भ राक्षसों से पराजित होकर गिरिराज हिमालय पर गए और वहाँ भगवती विष्णु माया की स्तुति करने लगे:"नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नमः।नमः प्रकृत्यै भद्रायै नियताः प्रणताः स्म ताम।।"उस समय देवी पार्वती गंगाजी के जल में स्नान करने के लिए वहाँ आईं और देवों से पूँछा कि आप किसकी स्तुति कर रहे हैं? तब पार्वती जी के शरीरकोश से प्रकट हुई शिवा देवी बोलीं, यह मेरी ही स्तुति कर रहे हैं।◆पार्वती के शरीर से अम्बिका के प्रादुर्भाव से पार्वती का शरीर काले रंग का हो गया अतः वे हिमालय पर रहने वाली कालिका देवी के नाम से विख्यात हुईं।(दुर्गा सप्तशती पञ्चम अध्याय श्लोक ८८ )●देवी माँ के इन नौ नाम के बाद दुर्गा सप्तशती के अगले अर्गला पाठ में ग्यारह नाम वर्णित हैं :●१-जयन्ती २-मंगला ३-काली ४-भद्रकाली ५-कपालिनी ६-दुर्गा ७-क्षमा ८-शिवा ९-धात्री १०-स्वाहा ११-स्वधा .●दुर्गा सप्तशती में परिशिष्ट में दुर्गा के बत्तीस नाम भी दिए गए हैं।मेरे विचार से विगत कुछ दशकों से देवी माँ के कवच में वर्णित नाम मीडिया में कुछ अधिक ही चर्चित हो गए हैं जबकि जिस देवी कवच में ये नाम आरम्भ में आए हैं उस कवच का कोई उल्लेख मीडिया में नहीं देखा जाता है।●इन नौ नामों के चित्र भी गीता प्रेस गोरखपुर ने उपलब्ध कराए हैं इसलिए भी इन नौ नामों का मीडिया में चलन बढ़ा है।●जबकि नव रात्रि की देवी साधना में अथवा नित्य ही दुर्गा सप्तशती के समस्त या कुछ अध्यायों का जो पाठ करते हैं उनमें इन नौ नामों का अलग से उल्लेख नहीं किया जाता।कोई देवी साधक शरीर रक्षा के लिए नित्य कवच का पाठ करते हैं उनकी उपासना में ये नौ नाम पाठ आरम्भ में स्वतः ही आ जाते हैं। इन नौ नामों में कुछ के पुराण आख्यान भी हैं ।वस्तुतः साकार सगुण रूप आसानी से मन को ग्रहण होता है इसलिए त्रिदेव, गणेश, देवी माँ के सगुण रूप ही अधिक प्रचलित हैं।★★पार्वती कुंडलिनी शक्ति के रूप में:जब कुंडलिनी शक्ति का वर्णन किया जाता है तब इस शक्ति को छह चक्रों में से प्रथम मूलाधार चक्र में स्थित माना जाता है। रोचक तथ्य यह है कि इस मूलाधार चक्र के रक्षक पार्वती पुत्र गणेश जी हैं।◆इस षड़चक्र के आधार प्रथम चक्र में ही शक्ति का वास है और इसकी कृपा के लिए सर्वप्रथम गणेश उपासना आवश्यक है।गणपति अथर्व शीर्ष में भी रक्तवर्ण गणेश को मूलाधार में स्थित कहा गया है:त्वम मूलाधार स्थितोsसि नित्यं,त्वम शक्ति त्रयात्मकः त्वाम योगिनो ध्यायन्ति नित्यमयही बात इस कथा के रूप में प्रतीक रूप से वर्णित की गई है कि पार्वती जी ने अपने शरीर के उबटन से पुतला बना कर उसमें चेतना संचार कर द्वार रक्षा में नियुक्त किया ।शक्ति से चेतन इसी पुतले को बाद में गणेश कहा गया।★तंत्र की दृष्टि से देवी माँ को दस महाविद्याओं के रूप में वर्णित किया गया है : १ काली, २ तारा, ३ श्रीविद्या या त्रिपुर सुंदरी या ललिता, ४ भुवनेश्वरी, ५ त्रिपुर भैरवी,६ धूमावती, ७ छिन्नमस्ता, ८बगला, ९ मातंगी , १० कमला।देश के विभिन्न भागों में उपरोक्त दस महाविद्याओं में से प्रत्येक के सिद्ध मन्दिर भी हैं।इतना ही क्यों सारे भारत में देवी के 52 सिद्ध पीठ भी हैं । चित्र देखिए जो गूगल के सौजन्य से आगे प्रस्तुत है।★★इनमें से हिंगलाज पीठ व एक अन्य पीठ पाकिस्तान के बलूचिस्तान क्षेत्र में है जिसकी सेवा आज भी हिन्दू मुसलमान मिलकर करते हैं ।जबकि सुगंधा व एक अन्य बंगला देश में है।दुर्गा चालीसा में भी "हिंगलाज में तुमही भवानी" ऐसा उल्लेख है ।मेरी माताजी जब यह पढ़ती थीं तो समझ नहीं आता था कि इसका क्या अर्थ है।हिंगलाजदेवी मन्दिर।चित्र इण्डिया टाइम्स के सौजन्य सेजरा विचार कीजिए कि विभिन्न भूगोल भाषा व स्थानीय संस्कृति की विविधता के बाद भी इन 52 शक्तिपीठों ने हजारों वर्षों से भारत को कितने मजबूत सांस्कृतिक एकता के सूत्र में बांधे रखा है। भले ही राजनीतिक दृष्टि से उन क्षेत्रों में अलग अलग राज्य वंशों का शासन रहा।पर अब आज के सिक्कूलर उधार बुद्धिवादी सनातन धर्म के इस एकता मूलक प्रभाव के प्रति एलर्जिक हैं।अभी देवी माँ के सगुण रूप की चर्चा की ।जबकि वेद की दृष्टि से विचार करें तो देवी माँ को मूल प्रकृति और ब्रह्म स्वरूपणी ही कहा गया है। देखिए अथर्व वेद का देवी अथर्व शीर्षम जिसमें देवों के यह प्रश्न करने पर कि देवी आप कौन हैं तो देवी ने कहा:मैं ब्रह्म स्वरूपणी हूँ। मैं ही प्रकृति और पुरुषरूपात्मक जगत हूँ। ….अहम अखिलं जगत। मैं ही रुद्र और वसु हूँ.. विष्णु ब्रह्म देव और प्रजापति को धारण करती हूँ…यह सगुण निर्गुण निरूपण बहुत ही मनोरम है।इसका सदैव अर्थ समझते हुए अध्ययन मनन करते रहना चाहिए।● प्रश्न के उत्तर का सार यानिष्कर्ष:●शैल पुत्री यह नाम देवी माँ के नौ नामों में से एक प्रथम नाम है जो शैलजा पार्वती को संबोधित है। यह देवी कवच में आया है तथा इसका पुराण में कथाआख्यान भी है।●शैल पुत्री पार्वती ही आदिशक्ति रूप हैं और शिव की अर्द्धांगिनी हैं। ●शैल पुत्री पार्वती ही महा सरस्वती महा लक्ष्मी और महाकाली हैं। शैलपुत्री पार्वती ही दश महाविद्या हैं,सृजन पालन संहारशक्ति हैं और चेतना रूप से सवर्त्र व्याप्त हैं।या देवी सर्व भूतेषु मातृ रूपेण संस्थिता ।नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।: षड़चक्र चित्र, देश के शक्ति पीठ स्थल चित्र गूगल से, शैलपुत्री गीता प्रेस की पुस्तक से, हिंगलाज india times से साभार।
नेहा जी प्रश्न के लिए धन्यवाद।
आइए देखते हैं देवी माँ का शैलपुत्री नाम कहाँ किस संदर्भ में आया है।
दुर्गा सप्तशती के पाठ के आरम्भ में पाठ की सिद्धि सफलता के लिए
★ कवच ★कीलक और ★अर्गला
इन तीन का पाठ करने पर जोर दिया गया है।
इनमें से प्रथम देव्या कवचम के पाठ से साधक का सम्पूर्ण शरीर सभी प्रकार की बाधाओं से सुरक्षित हो जाता है।इसमें ५६ श्लोक हैं।
देवी चण्डिका को नमस्कार के उपरांत इन श्लोकों में से आरंभ के तीसरे चौथे और पांचवें श्लोक में जगदंबिका के नौ नाम दिए हैं:
- प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्म चारिणी ।तृतीयं चंद्र घण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम।।
- पञ्चमं स्कन्द मातेति षष्टम कात्यायनीति च।
- सप्तम कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम ।।
- नवमं सिद्धिदात्री च नव दुर्गा: प्रकीर्तिताः।
उपरोक्त नौ नामों में प्रथम नाम शैलपुत्री है। इसका अर्थ हुआ गिरिराज हिमालय की पुत्री पार्वती।
यह हिमालय की तपस्या से प्रसन्न होकर उनकी पुत्री रूप में प्रकट हुईं। इसकी पुराण व्याख्या से इतर अन्य तांत्रिक व्याख्याएं भी हैं।विभिन्न पुराणों में इसका आख्यान है। इसी प्रकार अन्य नामों की भी व्याख्या है।
_______________________________
★शैलपुत्री पार्वती शिव की अर्धांगिनी हैं , शिव शक्ति के इस संयुक्त स्वरूप की शाक्त शैव दर्शनों में कई तरह से व्याख्या है।
★यह शैलपुत्री पार्वती ही आदिशक्ति हैं जिनके विविध नाम रूप हैं। सृजन पालन संहार करने वाली शक्ति हैं,महा सरस्वती महालक्ष्मी महाकाली हैं, सर्व व्यापी चेतना हैं।
________________________________
दुर्गा सतशती के पंचम अध्य्याय में कहा गया है कि जब देवता , शुम्भ निशुम्भ राक्षसों से पराजित होकर गिरिराज हिमालय पर गए और वहाँ भगवती विष्णु माया की स्तुति करने लगे:
"नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नमः।
नमः प्रकृत्यै भद्रायै नियताः प्रणताः स्म ताम।।"
उस समय देवी पार्वती गंगाजी के जल में स्नान करने के लिए वहाँ आईं और देवों से पूँछा कि आप किसकी स्तुति कर रहे हैं? तब पार्वती जी के शरीरकोश से प्रकट हुई शिवा देवी बोलीं, यह मेरी ही स्तुति कर रहे हैं।
◆पार्वती के शरीर से अम्बिका के प्रादुर्भाव से पार्वती का शरीर काले रंग का हो गया अतः वे हिमालय पर रहने वाली कालिका देवी के नाम से विख्यात हुईं।(दुर्गा सप्तशती पञ्चम अध्याय श्लोक ८८ )
●देवी माँ के इन नौ नाम के बाद दुर्गा सप्तशती के अगले अर्गला पाठ में ग्यारह नाम वर्णित हैं :
●१-जयन्ती २-मंगला ३-काली ४-भद्रकाली ५-कपालिनी ६-दुर्गा ७-क्षमा ८-शिवा ९-धात्री १०-स्वाहा ११-स्वधा .
●दुर्गा सप्तशती में परिशिष्ट में दुर्गा के बत्तीस नाम भी दिए गए हैं।
- मेरे विचार से विगत कुछ दशकों से देवी माँ के कवच में वर्णित नाम मीडिया में कुछ अधिक ही चर्चित हो गए हैं जबकि जिस देवी कवच में ये नाम आरम्भ में आए हैं उस कवच का कोई उल्लेख मीडिया में नहीं देखा जाता है।
●इन नौ नामों के चित्र भी गीता प्रेस गोरखपुर ने उपलब्ध कराए हैं इसलिए भी इन नौ नामों का मीडिया में चलन बढ़ा है।
●जबकि नव रात्रि की देवी साधना में अथवा नित्य ही दुर्गा सप्तशती के समस्त या कुछ अध्यायों का जो पाठ करते हैं उनमें इन नौ नामों का अलग से उल्लेख नहीं किया जाता।
कोई देवी साधक शरीर रक्षा के लिए नित्य कवच का पाठ करते हैं उनकी उपासना में ये नौ नाम पाठ आरम्भ में स्वतः ही आ जाते हैं। इन नौ नामों में कुछ के पुराण आख्यान भी हैं ।
वस्तुतः साकार सगुण रूप आसानी से मन को ग्रहण होता है इसलिए त्रिदेव, गणेश, देवी माँ के सगुण रूप ही अधिक प्रचलित हैं।
★★पार्वती कुंडलिनी शक्ति के रूप में:
जब कुंडलिनी शक्ति का वर्णन किया जाता है तब इस शक्ति को छह चक्रों में से प्रथम मूलाधार चक्र में स्थित माना जाता है। रोचक तथ्य यह है कि इस मूलाधार चक्र के रक्षक पार्वती पुत्र गणेश जी हैं।
◆इस षड़चक्र के आधार प्रथम चक्र में ही शक्ति का वास है और इसकी कृपा के लिए सर्वप्रथम गणेश उपासना आवश्यक है।
गणपति अथर्व शीर्ष में भी रक्तवर्ण गणेश को मूलाधार में स्थित कहा गया है:
त्वम मूलाधार स्थितोsसि नित्यं,त्वम शक्ति त्रयात्मकः त्वाम योगिनो ध्यायन्ति नित्यम
यही बात इस कथा के रूप में प्रतीक रूप से वर्णित की गई है कि पार्वती जी ने अपने शरीर के उबटन से पुतला बना कर उसमें चेतना संचार कर द्वार रक्षा में नियुक्त किया ।शक्ति से चेतन इसी पुतले को बाद में गणेश कहा गया।
★तंत्र की दृष्टि से देवी माँ को दस महाविद्याओं के रूप में वर्णित किया गया है : १ काली, २ तारा, ३ श्रीविद्या या त्रिपुर सुंदरी या ललिता, ४ भुवनेश्वरी, ५ त्रिपुर भैरवी,६ धूमावती, ७ छिन्नमस्ता, ८बगला, ९ मातंगी , १० कमला।
देश के विभिन्न भागों में उपरोक्त दस महाविद्याओं में से प्रत्येक के सिद्ध मन्दिर भी हैं।
इतना ही क्यों सारे भारत में देवी के 52 सिद्ध पीठ भी हैं । चित्र देखिए जो गूगल के सौजन्य से आगे प्रस्तुत है।
★★इनमें से हिंगलाज पीठ व एक अन्य पीठ पाकिस्तान के बलूचिस्तान क्षेत्र में है जिसकी सेवा आज भी हिन्दू मुसलमान मिलकर करते हैं ।जबकि सुगंधा व एक अन्य बंगला देश में है।दुर्गा चालीसा में भी "हिंगलाज में तुमही भवानी" ऐसा उल्लेख है ।मेरी माताजी जब यह पढ़ती थीं तो समझ नहीं आता था कि इसका क्या अर्थ है।
हिंगलाजदेवी मन्दिर।चित्र इण्डिया टाइम्स के सौजन्य से
जरा विचार कीजिए कि विभिन्न भूगोल भाषा व स्थानीय संस्कृति की विविधता के बाद भी इन 52 शक्तिपीठों ने हजारों वर्षों से भारत को कितने मजबूत सांस्कृतिक एकता के सूत्र में बांधे रखा है। भले ही राजनीतिक दृष्टि से उन क्षेत्रों में अलग अलग राज्य वंशों का शासन रहा।
पर अब आज के सिक्कूलर उधार बुद्धिवादी सनातन धर्म के इस एकता मूलक प्रभाव के प्रति एलर्जिक हैं।
अभी देवी माँ के सगुण रूप की चर्चा की ।जबकि वेद की दृष्टि से विचार करें तो देवी माँ को मूल प्रकृति और ब्रह्म स्वरूपणी ही कहा गया है। देखिए अथर्व वेद का देवी अथर्व शीर्षम जिसमें देवों के यह प्रश्न करने पर कि देवी आप कौन हैं तो देवी ने कहा:
- मैं ब्रह्म स्वरूपणी हूँ। मैं ही प्रकृति और पुरुषरूपात्मक जगत हूँ। ….अहम अखिलं जगत। मैं ही रुद्र और वसु हूँ.. विष्णु ब्रह्म देव और प्रजापति को धारण करती हूँ…
यह सगुण निर्गुण निरूपण बहुत ही मनोरम है।इसका सदैव अर्थ समझते हुए अध्ययन मनन करते रहना चाहिए।
● प्रश्न के उत्तर का सार यानिष्कर्ष:
●शैल पुत्री यह नाम देवी माँ के नौ नामों में से एक प्रथम नाम है जो शैलजा पार्वती को संबोधित है। यह देवी कवच में आया है तथा इसका पुराण में कथाआख्यान भी है।●शैल पुत्री पार्वती ही आदिशक्ति रूप हैं और शिव की अर्द्धांगिनी हैं। ●शैल पुत्री पार्वती ही महा सरस्वती महा लक्ष्मी और महाकाली हैं। शैलपुत्री पार्वती ही दश महाविद्या हैं,सृजन पालन संहारशक्ति हैं और चेतना रूप से सवर्त्र व्याप्त हैं।
या देवी सर्व भूतेषु मातृ रूपेण संस्थिता ।नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
: षड़चक्र चित्र, देश के शक्ति पीठ स्थल चित्र गूगल से, शैलपुत्री गीता प्रेस की पुस्तक से, हिंगलाज india times से साभार।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें