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एकादशी व्रत को सभी व्रतों का राजा क्यों कहते हैं ? By वनिता कासनियां पंजाब:: भगवान विष्णु को अत्यन्त प्रिय है एकादशी का व्रत । पूर्व काल में मुर दैत्य को मारने के लिए भगवान विष्णु के शरीर से एक कन्या प्रकट हुई जो विष्णु के तेज से सम्पन्न और युद्धकला में निपुण थी । उसकी हुंकार मात्र से मुर दैत्य राख का ढेर हो गया । वह कन्या ही एकादशी देवी थी । इससे प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उससे वर मांगने को कहा । एकादशी देवी ने वर मांगा—‘यदि आप प्रसन्न हैं तो आपकी कृपा से मैं सब तीर्थों में प्रधान, सभी विघ्नों का नाश करने वाली व समस्त सिद्धि देने वाली देवी होऊं । जो लोग उपवास (नक्त और एकभुक्त) करके मेरे व्रत का पालन करें, उन्हें आप धन, धर्म व मोक्ष प्रदान कीजिए ।’भगवान ने वर देते हुए कहा—‘ऐसा ही हो । जो तुम्हारे भक्तजन हैं वे मेरे भी भक्त कहलायेंगे ।’एकादशी व्रत को सभी ‘व्रतों का राजा’ या ‘व्रतों में शिरोमणि’ क्यों कहते हैं ?वैकुण्ठधाम की प्राप्ति कराने वाला, भोग और मोक्ष दोनों ही देने वाला तथा पापों का नाश करने वाला एकादशी के समान कोई व्रत नहीं है, इसलिए इसे ‘व्रतों का राजा’ कहते हैं । सभी व्रत व सभी दान से अधिक फल एकादशी व्रत करने से होता है ।जैसे देवताओं में भगवान विष्णु, प्रकाश-तत्त्वों में सूर्य, नदियों में गंगा प्रमुख हैं वैसे ही व्रतों में सर्वश्रेष्ठ व्रत एकादशी-व्रत को माना गया है । इस तिथि को जो कुछ दान किया जाता है, भजन-पूजन किया जाता है, वह सब भगवान श्रीहरि के पूजित होने पर पूर्णता को प्राप्त होता है । संसार के स्वामी सर्वेश्वर श्रीहरि पूजित होने पर संतुष्ट होकर प्रत्यक्ष दर्शन देते हैं । इस दिन किया गया प्रत्येक पुण्य कर्म अनन्त फल देता है और मनुष्य के सात जन्मों के कायिक, वाचिक और मानसिक पाप दूर हो जाते हैं ।▪️विभिन्न नक्षत्रों का योग होने पर एकादशी-व्रत का महत्व और भी बढ़ जाता है । जैसे——जब शुक्ल पक्ष की एकादशी को ‘पुनर्वसु’ नक्षत्र हो तो वह तिथि ‘जया’कहलाती है । इसका व्रत करने से मनुष्य सभी पापों से मुक्त हो जाता है ।——जब शुक्ल पक्ष की द्वादशी को ‘श्रवण’ नक्षत्र हो तो वह तिथि ‘विजया’कहलाती है । इसमें किया गया व्रत, दान व ब्राह्मण-भोजन सहस्त्र गुना फल देने वाला होता है ।——जब शुक्ल पक्ष की द्वादशी को ‘रोहिणी’ नक्षत्र हो तो वह तिथि ‘जयन्ती’कहलाती है । इस दिन भगवान गोविन्द का व्रत व पूजन करने से वे मनुष्य के सब पाप धो डालते हैं ।—जब शुक्ल पक्ष की द्वादशी को ‘पुष्य’ नक्षत्र हो तो वह तिथि ‘पापनाशिनी’कहलाती है । इसका व्रत करने से संसार के स्वामी प्रसन्न होकर प्रत्यक्ष दर्शन देते हैं । पुष्प नक्षत्र से युक्त एकादशी का व्रत करने से मनुष्य एक हजार एकादशियों के व्रत का फल प्राप्त कर लेता है । इस दिन किए गये स्नान, दान, जप, होम, स्वाध्याय व देव पूजा का अक्षय फल माना गया है ।गोदान व अश्वमेध-यज्ञ करने का जो फल होता है, उससे सौगुना अधिक फल एकादशी व्रत करने वाले को मिलता हैएकादशी व्रत के करने से सभी रोग व दोष शान्त हो जाते हैं ।मनुष्य को दीर्घायु, सुख-शान्ति व समृद्धि की प्राप्ति होती है ।मनुष्य जीवन का उद्देश्य ‘भगवान की प्राप्ति’ भी एकादशी व्रत से हो जाती है ।चिन्तामणि के समान एकादशी व्रत मनुष्य की सभी कामनाएं पूरी करता हैं । एकादशी व्रत का अखण्ड पालन करने से मनुष्य की सौ पीढ़ियों का उद्धार हो जाता है ।एकादशी का व्रत सभी पुण्यों को और मोक्ष देने वाला है ।एकादशी के दिन अन्न क्यों नहीं खाना चाहिए ?एकादशी के दिन अन्न (गेहूं, चावल आदि) खाने से पाप क्यों लगता है, इसके लिए कहा गया है कि—‘ब्रह्महत्या आदि समस्त पाप एकादशी के दिन अन्न में रहते हैं । अत: एकादशी के दिन जो भोजन करता है, वह पाप-भोजन करता है ।’ यदि एकादशी का व्रत न भी कर सकें तो इस दिन चावल और उससे बने पदार्थ नहीं खाने चाहिए ।एकादशी का व्रत क्यों करना चाहिए ?▪️यह संसार भोग-भूमि और मानव योनि भोग-योनि है इसलिए मनुष्य की स्वाभाविक रुचि भोगों की ओर ही रहती है । मनुष्य यदि भोगों में ही लिप्त रहेगा तो वह इस संसार में आवागमन के चक्र से मुक्त नहीं हो सकेगा । संसार में सब कार्यों को करते हुए भी कम-से-कम पक्ष में एक बार मनुष्य भोगों से अलग रहकर ‘स्व’ में स्थित रहे और अपने मन व चित्त को सात्विक रखकर भगवान की प्राप्ति की ओर मुड़ सके इसके लिए एकादशी व्रत का विधान किया गया है ।▪️एकादशी ‘नित्य व्रत’ है इसलिए नित्य-कर्म की तरह सभी वैष्णवों को इस व्रत का पालन अवश्य करना चाहिए । ▪️ज्योतिषशास्त्र के अनुसार शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को चन्द्रमा की एकादश (ग्यारह) कलाओं का प्रभाव जीवों पर पड़ता है । चन्द्रमा का प्रभाव शरीर और मन पर होता है, इसलिए इस तिथि में शरीर की अस्वस्थता और मन की चंचलता बढ़ जाती है । इसी तरह कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को सूर्य की एकादश कलाओं का प्रभाव जीवों पर पड़ता है । इसी कारण उपवास से शरीर को संभालने और इष्टदेव के पूजन से चित्त की चंचलता दूर करने और मानसिक बल बढ़ाने के लिए एकादशी का व्रत करने का नियम बनाया गया है ।▪️एकादशी व्रत करने से वात आदि कितनी ही तरह की व्याधियों से मनुष्य की रक्षा होती है ।▪️यदि उदयकाल में थोड़ी-सी एकादशी, मध्य में पूरी द्वादशी और अंत में थोड़ी-सी भी त्रयोदशी हो तो वह ‘त्रिस्पृशा’ एकादशी कहलाती है । यह भगवान को बहुत ही प्रिय है । इसका उपवास करने से एक सहस्त्र एकादशी व्रतों का फल प्राप्त होता है ।▪️दशमी युक्त एकादशी का व्रत कभी नहीं करना चाहिए । ऐसा करने से संतान का नाश होता है और सद्गति (विष्णुलोक की प्राप्ति) नहीं होती है ।

एकादशी व्रत को सभी व्रतों का राजा क्यों कहते हैं ?
By वनिता कासनियां पंजाब::
भगवान विष्णु को अत्यन्त प्रिय है एकादशी का व्रत । पूर्व काल में मुर दैत्य को मारने के लिए भगवान विष्णु के शरीर से एक कन्या प्रकट हुई जो विष्णु के तेज से सम्पन्न और युद्धकला में निपुण थी । उसकी हुंकार मात्र से मुर दैत्य राख का ढेर हो गया । वह कन्या ही एकादशी देवी थी । इससे प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उससे वर मांगने को कहा । 
एकादशी देवी ने वर मांगा—‘यदि आप प्रसन्न हैं तो आपकी कृपा से मैं सब तीर्थों में प्रधान, सभी विघ्नों का नाश करने वाली व समस्त सिद्धि देने वाली देवी होऊं । जो लोग उपवास (नक्त और एकभुक्त) करके मेरे व्रत का पालन करें, उन्हें आप धन, धर्म व मोक्ष प्रदान कीजिए ।’

भगवान ने वर देते हुए कहा—‘ऐसा ही हो । जो तुम्हारे भक्तजन हैं वे मेरे भी भक्त कहलायेंगे ।’

एकादशी व्रत को सभी ‘व्रतों का राजा’ या ‘व्रतों में शिरोमणि’ क्यों कहते हैं ?

वैकुण्ठधाम की प्राप्ति कराने वाला, भोग और मोक्ष दोनों ही देने वाला तथा पापों का नाश करने वाला एकादशी के समान कोई व्रत नहीं है, इसलिए इसे ‘व्रतों का राजा’ कहते हैं । सभी व्रत व सभी दान से अधिक फल एकादशी व्रत करने से होता है ।

जैसे देवताओं में भगवान विष्णु, प्रकाश-तत्त्वों में सूर्य, नदियों में गंगा प्रमुख हैं वैसे ही व्रतों में सर्वश्रेष्ठ व्रत एकादशी-व्रत को माना गया है । इस तिथि को जो कुछ दान किया जाता है, भजन-पूजन किया जाता है, वह सब भगवान श्रीहरि के पूजित होने पर पूर्णता को प्राप्त होता है । संसार के स्वामी सर्वेश्वर श्रीहरि पूजित होने पर संतुष्ट होकर प्रत्यक्ष दर्शन देते हैं । इस दिन किया गया प्रत्येक पुण्य कर्म अनन्त फल देता है और मनुष्य के सात जन्मों के कायिक, वाचिक और मानसिक पाप दूर हो जाते हैं ।

▪️विभिन्न नक्षत्रों का योग होने पर एकादशी-व्रत का महत्व और भी बढ़ जाता है । जैसे—

—जब शुक्ल पक्ष की एकादशी को ‘पुनर्वसु’ नक्षत्र हो तो वह तिथि ‘जया’कहलाती है । इसका व्रत करने से मनुष्य सभी पापों से मुक्त हो जाता है ।

——जब शुक्ल पक्ष की द्वादशी को ‘श्रवण’ नक्षत्र हो तो वह तिथि ‘विजया’कहलाती है । इसमें किया गया व्रत, दान व ब्राह्मण-भोजन सहस्त्र गुना फल देने वाला होता है ।

——जब शुक्ल पक्ष की द्वादशी को ‘रोहिणी’ नक्षत्र हो तो वह तिथि ‘जयन्ती’कहलाती है । इस दिन भगवान गोविन्द का व्रत व पूजन करने से वे मनुष्य के सब पाप धो डालते हैं ।

—जब शुक्ल पक्ष की द्वादशी को ‘पुष्य’ नक्षत्र हो तो वह तिथि ‘पापनाशिनी’कहलाती है । इसका व्रत करने से संसार के स्वामी प्रसन्न होकर प्रत्यक्ष दर्शन देते हैं । पुष्प नक्षत्र से युक्त एकादशी का व्रत करने से मनुष्य एक हजार एकादशियों के व्रत का फल प्राप्त कर लेता है । इस दिन किए गये स्नान, दान, जप, होम, स्वाध्याय व देव पूजा का अक्षय फल माना गया है ।

गोदान व अश्वमेध-यज्ञ करने का जो फल होता है, उससे सौगुना अधिक फल एकादशी व्रत करने वाले को मिलता है

एकादशी व्रत के करने से सभी रोग व दोष शान्त हो जाते हैं ।

मनुष्य को दीर्घायु, सुख-शान्ति व समृद्धि की प्राप्ति होती है ।

मनुष्य जीवन का उद्देश्य ‘भगवान की प्राप्ति’ भी एकादशी व्रत से हो जाती है ।

चिन्तामणि के समान एकादशी व्रत मनुष्य की सभी कामनाएं पूरी करता हैं । 

एकादशी व्रत का अखण्ड पालन करने से मनुष्य की सौ पीढ़ियों का उद्धार हो जाता है ।

एकादशी का व्रत सभी पुण्यों को और मोक्ष देने वाला है ।

एकादशी के दिन अन्न क्यों नहीं खाना चाहिए ?

एकादशी के दिन अन्न (गेहूं, चावल आदि) खाने से पाप क्यों लगता है, इसके लिए कहा गया है कि—‘ब्रह्महत्या आदि समस्त पाप एकादशी के दिन अन्न में रहते हैं । अत: एकादशी के दिन जो भोजन करता है, वह पाप-भोजन करता है ।’ यदि एकादशी का व्रत न भी कर सकें तो इस दिन चावल और उससे बने पदार्थ नहीं खाने चाहिए ।

एकादशी का व्रत क्यों करना चाहिए ?

▪️यह संसार भोग-भूमि और मानव योनि भोग-योनि है इसलिए मनुष्य की स्वाभाविक रुचि भोगों की ओर ही रहती है । मनुष्य यदि भोगों में ही लिप्त रहेगा तो वह इस संसार में आवागमन के चक्र से मुक्त नहीं हो सकेगा । संसार में सब कार्यों को करते हुए भी कम-से-कम पक्ष में एक बार मनुष्य भोगों से अलग रहकर ‘स्व’ में स्थित रहे और अपने मन व चित्त को सात्विक रखकर भगवान की प्राप्ति की ओर मुड़ सके इसके लिए एकादशी व्रत का विधान किया गया है ।

▪️एकादशी ‘नित्य व्रत’ है इसलिए नित्य-कर्म की तरह सभी वैष्णवों को इस व्रत का पालन अवश्य करना चाहिए । 

▪️ज्योतिषशास्त्र के अनुसार शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को चन्द्रमा की एकादश (ग्यारह) कलाओं का प्रभाव जीवों पर पड़ता है । चन्द्रमा का प्रभाव शरीर और मन पर होता है, इसलिए इस तिथि में शरीर की अस्वस्थता और मन की चंचलता बढ़ जाती है । इसी तरह कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को सूर्य की एकादश कलाओं का प्रभाव जीवों पर पड़ता है । इसी कारण उपवास से शरीर को संभालने और इष्टदेव के पूजन से चित्त की चंचलता दूर करने और मानसिक बल बढ़ाने के लिए एकादशी का व्रत करने का नियम बनाया गया है ।

▪️एकादशी व्रत करने से वात आदि कितनी ही तरह की व्याधियों से मनुष्य की रक्षा होती है ।

▪️यदि उदयकाल में थोड़ी-सी एकादशी, मध्य में पूरी द्वादशी और अंत में थोड़ी-सी भी त्रयोदशी हो तो वह ‘त्रिस्पृशा’ एकादशी कहलाती है । यह भगवान को बहुत ही प्रिय है । इसका उपवास करने से एक सहस्त्र एकादशी व्रतों का फल प्राप्त होता है ।

▪️दशमी युक्त एकादशी का व्रत कभी नहीं करना चाहिए । ऐसा करने से संतान का नाश होता है और सद्गति (विष्णुलोक की प्राप्ति) नहीं होती है ।

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Chaitra Navratri 2021: चैत्र नवरात्रि का पहला दिन, जानें मां शैलपुत्री की पूजा विधि और शुभ मुहूर्त  समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाबनवरात्र के पहले दिन माता दुर्गा के शैलपुत्री रूप की आराधना की जाती है। लिहाजा  13 अप्रैल को माता शैलपुत्री का पूजा करना चाहिए। मार्केण्डय पुराण के अनुसार पर्वतराज, यानि शैलराज हिमालय की पुत्री होने के कारण इनका नाम शैलपुत्री पड़ा। साथ ही माता का वाहन बैल होने के कारण इन्हें वृषारूढ़ा भी कहा जाता है। मां शैलपुत्री के दो हाथों में से दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल का फूल सुशोभित है। जानिए मां शैलपुत्री की पूजा विधि और मंत्र। वनिता कासनियां पंजाब चैत्र नवरात्रि 2021: 13 अप्रैल से नवरात्र शुरू, जानें कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त और पूजा विधिकलश स्थापना का शुभ मुहूर्तआचार्य इंदु प्रकाश के अनुसार, कलश स्थापना का सही समय सुबह 7 बजकर 30 मिनट से लेकर सुबह 8 बजकर 30 मिनट तकअभिजित मुहूर्त :  सुबह 11 बजकर 56 मिनट से  दोपहर 12 बजकर 47 मिनट तकमेष लग्न (चर लग्न): सुबह 6 बजकर 02 मिनट से 7 बजकर 38  मिनट तकवृषभ लग्न (स्थिर लग्न): सुबह 7 बजकर 38 मिनट से 9 बजकर 34 मिनट तकसिंह लग्न (स्थिर लग्न): दोपहर  2 बजकर 7 मिनट से 4 बजकर 25 मिनट तकमां शैलपुत्री पूजा विधिनवरात्र के पहले दिन देवी के शरीर में लेपन के तौर पर लगाने के लिए चंदन और केश धोने के  लिए त्रिफला चढ़ाना चाहिए । त्रिफला बनाने के लिए आंवला, हरड़ और बहेड़ा को पीस कर पाउडर बना लें। इससे देवी मां प्रसन्न होती हैं और अपने भक्तों पर अपनी कृपा बनाये रखती हैं।पूजा के दौरान माता शैलपुत्री के मंत्र का जप करना चाहिए | मंत्र है- ‘ऊं ऐं ह्रीं क्लीं शैलपुत्र्यै नम:  ऐसा करने से उपासक को धन-धान्य, ऐश्वर्य, सौभाग्य, आरोग्य, मोक्ष तथा हर प्रकार के सुख-साधनों की प्राप्ति होती है।  कहा जाता हैं कि आज के दिन माता शैलपुत्री की पूजा करने और उनके मंत्र का जप करने से व्यक्ति का मूलाधार चक्र जाग्रत होता है। अतः माता शैलपुत्री का मंत्रवन्दे वाञ्छित लाभाय चन्द्र अर्धकृत बाल वनिता महिला आश्रमवृषारुढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥इस प्रकार माता शैलपुत्री के मंत्र का कम से कम 11 बार जप करने से आपका मूलाधार चक्र तो जाग्रत होगा ही, साथ ही आपके धन-धान्य, ऐश्वर्य और सौभाग्य में वृद्धि होगी और आपको आरोग्य तथा मोक्ष की प्राप्ति भी होगी।इस दिशा में मुंह करके करें देवी की उपासनादेवी मां की उपासना करते समय अपना मुंह घर की पूर्व या उत्तर दिशा की ओर करके रखना चाहिए।

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