सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

एकादशी व्रत को सभी व्रतों का राजा क्यों कहते हैं ? By वनिता कासनियां पंजाब:: भगवान विष्णु को अत्यन्त प्रिय है एकादशी का व्रत । पूर्व काल में मुर दैत्य को मारने के लिए भगवान विष्णु के शरीर से एक कन्या प्रकट हुई जो विष्णु के तेज से सम्पन्न और युद्धकला में निपुण थी । उसकी हुंकार मात्र से मुर दैत्य राख का ढेर हो गया । वह कन्या ही एकादशी देवी थी । इससे प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उससे वर मांगने को कहा । एकादशी देवी ने वर मांगा—‘यदि आप प्रसन्न हैं तो आपकी कृपा से मैं सब तीर्थों में प्रधान, सभी विघ्नों का नाश करने वाली व समस्त सिद्धि देने वाली देवी होऊं । जो लोग उपवास (नक्त और एकभुक्त) करके मेरे व्रत का पालन करें, उन्हें आप धन, धर्म व मोक्ष प्रदान कीजिए ।’भगवान ने वर देते हुए कहा—‘ऐसा ही हो । जो तुम्हारे भक्तजन हैं वे मेरे भी भक्त कहलायेंगे ।’एकादशी व्रत को सभी ‘व्रतों का राजा’ या ‘व्रतों में शिरोमणि’ क्यों कहते हैं ?वैकुण्ठधाम की प्राप्ति कराने वाला, भोग और मोक्ष दोनों ही देने वाला तथा पापों का नाश करने वाला एकादशी के समान कोई व्रत नहीं है, इसलिए इसे ‘व्रतों का राजा’ कहते हैं । सभी व्रत व सभी दान से अधिक फल एकादशी व्रत करने से होता है ।जैसे देवताओं में भगवान विष्णु, प्रकाश-तत्त्वों में सूर्य, नदियों में गंगा प्रमुख हैं वैसे ही व्रतों में सर्वश्रेष्ठ व्रत एकादशी-व्रत को माना गया है । इस तिथि को जो कुछ दान किया जाता है, भजन-पूजन किया जाता है, वह सब भगवान श्रीहरि के पूजित होने पर पूर्णता को प्राप्त होता है । संसार के स्वामी सर्वेश्वर श्रीहरि पूजित होने पर संतुष्ट होकर प्रत्यक्ष दर्शन देते हैं । इस दिन किया गया प्रत्येक पुण्य कर्म अनन्त फल देता है और मनुष्य के सात जन्मों के कायिक, वाचिक और मानसिक पाप दूर हो जाते हैं ।▪️विभिन्न नक्षत्रों का योग होने पर एकादशी-व्रत का महत्व और भी बढ़ जाता है । जैसे——जब शुक्ल पक्ष की एकादशी को ‘पुनर्वसु’ नक्षत्र हो तो वह तिथि ‘जया’कहलाती है । इसका व्रत करने से मनुष्य सभी पापों से मुक्त हो जाता है ।——जब शुक्ल पक्ष की द्वादशी को ‘श्रवण’ नक्षत्र हो तो वह तिथि ‘विजया’कहलाती है । इसमें किया गया व्रत, दान व ब्राह्मण-भोजन सहस्त्र गुना फल देने वाला होता है ।——जब शुक्ल पक्ष की द्वादशी को ‘रोहिणी’ नक्षत्र हो तो वह तिथि ‘जयन्ती’कहलाती है । इस दिन भगवान गोविन्द का व्रत व पूजन करने से वे मनुष्य के सब पाप धो डालते हैं ।—जब शुक्ल पक्ष की द्वादशी को ‘पुष्य’ नक्षत्र हो तो वह तिथि ‘पापनाशिनी’कहलाती है । इसका व्रत करने से संसार के स्वामी प्रसन्न होकर प्रत्यक्ष दर्शन देते हैं । पुष्प नक्षत्र से युक्त एकादशी का व्रत करने से मनुष्य एक हजार एकादशियों के व्रत का फल प्राप्त कर लेता है । इस दिन किए गये स्नान, दान, जप, होम, स्वाध्याय व देव पूजा का अक्षय फल माना गया है ।गोदान व अश्वमेध-यज्ञ करने का जो फल होता है, उससे सौगुना अधिक फल एकादशी व्रत करने वाले को मिलता हैएकादशी व्रत के करने से सभी रोग व दोष शान्त हो जाते हैं ।मनुष्य को दीर्घायु, सुख-शान्ति व समृद्धि की प्राप्ति होती है ।मनुष्य जीवन का उद्देश्य ‘भगवान की प्राप्ति’ भी एकादशी व्रत से हो जाती है ।चिन्तामणि के समान एकादशी व्रत मनुष्य की सभी कामनाएं पूरी करता हैं । एकादशी व्रत का अखण्ड पालन करने से मनुष्य की सौ पीढ़ियों का उद्धार हो जाता है ।एकादशी का व्रत सभी पुण्यों को और मोक्ष देने वाला है ।एकादशी के दिन अन्न क्यों नहीं खाना चाहिए ?एकादशी के दिन अन्न (गेहूं, चावल आदि) खाने से पाप क्यों लगता है, इसके लिए कहा गया है कि—‘ब्रह्महत्या आदि समस्त पाप एकादशी के दिन अन्न में रहते हैं । अत: एकादशी के दिन जो भोजन करता है, वह पाप-भोजन करता है ।’ यदि एकादशी का व्रत न भी कर सकें तो इस दिन चावल और उससे बने पदार्थ नहीं खाने चाहिए ।एकादशी का व्रत क्यों करना चाहिए ?▪️यह संसार भोग-भूमि और मानव योनि भोग-योनि है इसलिए मनुष्य की स्वाभाविक रुचि भोगों की ओर ही रहती है । मनुष्य यदि भोगों में ही लिप्त रहेगा तो वह इस संसार में आवागमन के चक्र से मुक्त नहीं हो सकेगा । संसार में सब कार्यों को करते हुए भी कम-से-कम पक्ष में एक बार मनुष्य भोगों से अलग रहकर ‘स्व’ में स्थित रहे और अपने मन व चित्त को सात्विक रखकर भगवान की प्राप्ति की ओर मुड़ सके इसके लिए एकादशी व्रत का विधान किया गया है ।▪️एकादशी ‘नित्य व्रत’ है इसलिए नित्य-कर्म की तरह सभी वैष्णवों को इस व्रत का पालन अवश्य करना चाहिए । ▪️ज्योतिषशास्त्र के अनुसार शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को चन्द्रमा की एकादश (ग्यारह) कलाओं का प्रभाव जीवों पर पड़ता है । चन्द्रमा का प्रभाव शरीर और मन पर होता है, इसलिए इस तिथि में शरीर की अस्वस्थता और मन की चंचलता बढ़ जाती है । इसी तरह कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को सूर्य की एकादश कलाओं का प्रभाव जीवों पर पड़ता है । इसी कारण उपवास से शरीर को संभालने और इष्टदेव के पूजन से चित्त की चंचलता दूर करने और मानसिक बल बढ़ाने के लिए एकादशी का व्रत करने का नियम बनाया गया है ।▪️एकादशी व्रत करने से वात आदि कितनी ही तरह की व्याधियों से मनुष्य की रक्षा होती है ।▪️यदि उदयकाल में थोड़ी-सी एकादशी, मध्य में पूरी द्वादशी और अंत में थोड़ी-सी भी त्रयोदशी हो तो वह ‘त्रिस्पृशा’ एकादशी कहलाती है । यह भगवान को बहुत ही प्रिय है । इसका उपवास करने से एक सहस्त्र एकादशी व्रतों का फल प्राप्त होता है ।▪️दशमी युक्त एकादशी का व्रत कभी नहीं करना चाहिए । ऐसा करने से संतान का नाश होता है और सद्गति (विष्णुलोक की प्राप्ति) नहीं होती है ।

एकादशी व्रत को सभी व्रतों का राजा क्यों कहते हैं ?
By वनिता कासनियां पंजाब::
भगवान विष्णु को अत्यन्त प्रिय है एकादशी का व्रत । पूर्व काल में मुर दैत्य को मारने के लिए भगवान विष्णु के शरीर से एक कन्या प्रकट हुई जो विष्णु के तेज से सम्पन्न और युद्धकला में निपुण थी । उसकी हुंकार मात्र से मुर दैत्य राख का ढेर हो गया । वह कन्या ही एकादशी देवी थी । इससे प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उससे वर मांगने को कहा । 
एकादशी देवी ने वर मांगा—‘यदि आप प्रसन्न हैं तो आपकी कृपा से मैं सब तीर्थों में प्रधान, सभी विघ्नों का नाश करने वाली व समस्त सिद्धि देने वाली देवी होऊं । जो लोग उपवास (नक्त और एकभुक्त) करके मेरे व्रत का पालन करें, उन्हें आप धन, धर्म व मोक्ष प्रदान कीजिए ।’

भगवान ने वर देते हुए कहा—‘ऐसा ही हो । जो तुम्हारे भक्तजन हैं वे मेरे भी भक्त कहलायेंगे ।’

एकादशी व्रत को सभी ‘व्रतों का राजा’ या ‘व्रतों में शिरोमणि’ क्यों कहते हैं ?

वैकुण्ठधाम की प्राप्ति कराने वाला, भोग और मोक्ष दोनों ही देने वाला तथा पापों का नाश करने वाला एकादशी के समान कोई व्रत नहीं है, इसलिए इसे ‘व्रतों का राजा’ कहते हैं । सभी व्रत व सभी दान से अधिक फल एकादशी व्रत करने से होता है ।

जैसे देवताओं में भगवान विष्णु, प्रकाश-तत्त्वों में सूर्य, नदियों में गंगा प्रमुख हैं वैसे ही व्रतों में सर्वश्रेष्ठ व्रत एकादशी-व्रत को माना गया है । इस तिथि को जो कुछ दान किया जाता है, भजन-पूजन किया जाता है, वह सब भगवान श्रीहरि के पूजित होने पर पूर्णता को प्राप्त होता है । संसार के स्वामी सर्वेश्वर श्रीहरि पूजित होने पर संतुष्ट होकर प्रत्यक्ष दर्शन देते हैं । इस दिन किया गया प्रत्येक पुण्य कर्म अनन्त फल देता है और मनुष्य के सात जन्मों के कायिक, वाचिक और मानसिक पाप दूर हो जाते हैं ।

▪️विभिन्न नक्षत्रों का योग होने पर एकादशी-व्रत का महत्व और भी बढ़ जाता है । जैसे—

—जब शुक्ल पक्ष की एकादशी को ‘पुनर्वसु’ नक्षत्र हो तो वह तिथि ‘जया’कहलाती है । इसका व्रत करने से मनुष्य सभी पापों से मुक्त हो जाता है ।

——जब शुक्ल पक्ष की द्वादशी को ‘श्रवण’ नक्षत्र हो तो वह तिथि ‘विजया’कहलाती है । इसमें किया गया व्रत, दान व ब्राह्मण-भोजन सहस्त्र गुना फल देने वाला होता है ।

——जब शुक्ल पक्ष की द्वादशी को ‘रोहिणी’ नक्षत्र हो तो वह तिथि ‘जयन्ती’कहलाती है । इस दिन भगवान गोविन्द का व्रत व पूजन करने से वे मनुष्य के सब पाप धो डालते हैं ।

—जब शुक्ल पक्ष की द्वादशी को ‘पुष्य’ नक्षत्र हो तो वह तिथि ‘पापनाशिनी’कहलाती है । इसका व्रत करने से संसार के स्वामी प्रसन्न होकर प्रत्यक्ष दर्शन देते हैं । पुष्प नक्षत्र से युक्त एकादशी का व्रत करने से मनुष्य एक हजार एकादशियों के व्रत का फल प्राप्त कर लेता है । इस दिन किए गये स्नान, दान, जप, होम, स्वाध्याय व देव पूजा का अक्षय फल माना गया है ।

गोदान व अश्वमेध-यज्ञ करने का जो फल होता है, उससे सौगुना अधिक फल एकादशी व्रत करने वाले को मिलता है

एकादशी व्रत के करने से सभी रोग व दोष शान्त हो जाते हैं ।

मनुष्य को दीर्घायु, सुख-शान्ति व समृद्धि की प्राप्ति होती है ।

मनुष्य जीवन का उद्देश्य ‘भगवान की प्राप्ति’ भी एकादशी व्रत से हो जाती है ।

चिन्तामणि के समान एकादशी व्रत मनुष्य की सभी कामनाएं पूरी करता हैं । 

एकादशी व्रत का अखण्ड पालन करने से मनुष्य की सौ पीढ़ियों का उद्धार हो जाता है ।

एकादशी का व्रत सभी पुण्यों को और मोक्ष देने वाला है ।

एकादशी के दिन अन्न क्यों नहीं खाना चाहिए ?

एकादशी के दिन अन्न (गेहूं, चावल आदि) खाने से पाप क्यों लगता है, इसके लिए कहा गया है कि—‘ब्रह्महत्या आदि समस्त पाप एकादशी के दिन अन्न में रहते हैं । अत: एकादशी के दिन जो भोजन करता है, वह पाप-भोजन करता है ।’ यदि एकादशी का व्रत न भी कर सकें तो इस दिन चावल और उससे बने पदार्थ नहीं खाने चाहिए ।

एकादशी का व्रत क्यों करना चाहिए ?

▪️यह संसार भोग-भूमि और मानव योनि भोग-योनि है इसलिए मनुष्य की स्वाभाविक रुचि भोगों की ओर ही रहती है । मनुष्य यदि भोगों में ही लिप्त रहेगा तो वह इस संसार में आवागमन के चक्र से मुक्त नहीं हो सकेगा । संसार में सब कार्यों को करते हुए भी कम-से-कम पक्ष में एक बार मनुष्य भोगों से अलग रहकर ‘स्व’ में स्थित रहे और अपने मन व चित्त को सात्विक रखकर भगवान की प्राप्ति की ओर मुड़ सके इसके लिए एकादशी व्रत का विधान किया गया है ।

▪️एकादशी ‘नित्य व्रत’ है इसलिए नित्य-कर्म की तरह सभी वैष्णवों को इस व्रत का पालन अवश्य करना चाहिए । 

▪️ज्योतिषशास्त्र के अनुसार शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को चन्द्रमा की एकादश (ग्यारह) कलाओं का प्रभाव जीवों पर पड़ता है । चन्द्रमा का प्रभाव शरीर और मन पर होता है, इसलिए इस तिथि में शरीर की अस्वस्थता और मन की चंचलता बढ़ जाती है । इसी तरह कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को सूर्य की एकादश कलाओं का प्रभाव जीवों पर पड़ता है । इसी कारण उपवास से शरीर को संभालने और इष्टदेव के पूजन से चित्त की चंचलता दूर करने और मानसिक बल बढ़ाने के लिए एकादशी का व्रत करने का नियम बनाया गया है ।

▪️एकादशी व्रत करने से वात आदि कितनी ही तरह की व्याधियों से मनुष्य की रक्षा होती है ।

▪️यदि उदयकाल में थोड़ी-सी एकादशी, मध्य में पूरी द्वादशी और अंत में थोड़ी-सी भी त्रयोदशी हो तो वह ‘त्रिस्पृशा’ एकादशी कहलाती है । यह भगवान को बहुत ही प्रिय है । इसका उपवास करने से एक सहस्त्र एकादशी व्रतों का फल प्राप्त होता है ।

▪️दशमी युक्त एकादशी का व्रत कभी नहीं करना चाहिए । ऐसा करने से संतान का नाश होता है और सद्गति (विष्णुलोक की प्राप्ति) नहीं होती है ।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

#जय_माँ_लक्ष्मी 🙏 🙏 🙏🔯 #माता_लक्ष्मी__की_कथा 🔯 By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब एक बूढ़ा ब्राह्मण था वह रोज पीपल को जल से सींचता था । पीपल में से रोज एक लड़की निकलती और कहती पिताजी मैं आपके साथ जाऊँगी। यह सुनते-सुनते बूढ़ा दिन ब दिन कमजोर होने लगा तो बुढ़िया ने पूछा की क्या बात है ? बूढ़ा बोला कि पीपल से एक लड़की निकलती है और कहती है कि वह भी मेरे साथ चलेगी। बुढ़िया बोली कि कल ले आना उस लड़की को जहाँ छ: लड़कियाँ पहले से ही हमारे घर में है वहाँ सातवीं लड़की और सही।अगले दिन बूढ़ा उस लड़की को घर ले आया। घर लाने के बाद बूढ़ा आटा माँगने गया तो उसे पहले दिनों की अपेक्षा आज ज्यादा आटा मिला था।जब बुढ़िया वह आटा छानने लगी तो लड़की ने कहा कि लाओ माँ, मैं छान देती हूँ। जब वह आटा छानने बैठी तो परात भर गई। उसके बाद माँ खाना बनाने जाने लगी तो लड़की बोली कि आज रसोई में मैं जाऊँगी तो बुढ़िया बोली कि ना, तेरे हाथ जल जाएँगे लेकिन लड़की नहीं मानी और वह रसोई में खाना बनाने गई तो उसने तरह-तरह के छत्तीसों व्यंजन बना डाले और आज सभी ने भरपेट खाना खाया। इससे पहले वह आधा पेट भूखा ही रहते थे।रात हुई तो बुढ़िया का भाई आया और कहने लगा कि दीदी मैं तो खाना खाऊँगा। बुढ़िया परेशान हो गई कि अब खाना कहाँ से लाएगी। लड़की ने पूछा की माँ क्या बात है ? उसने कहा कि तेरा मामा आया है और रोटी खाएगा लेकिन रोटी तो सबने खा ली है अब उसके लिए कहाँ से लाऊँगी। लड़की बोली कि मैं बना दूँगी और वह रसोई में गई और मामा के लिए छत्तीसों व्यंजन बना दिए। मामा ने भरपेट खाया और कहा भी कि ऎसा खाना इससे पहले उसने कभी नहीं खाया है। बुढ़िया ने कहा कि भाई तेरी पावनी भाँजी है उसी ने बनाया है। शाम हुई तो लड़की बोली कि माँ चौका लगा के चौके का दीया जला देना, कोठे में मैं सोऊँगी। बुढ़िया बोली कि ना बेटी तू डर जाएगी लेकिन वह बोली कि ना मैं ना डरुँगी, मैं अंदर कोठे में ही सोऊँगी। वह कोठे में ही जाकर सो गई। आधी रात को लड़की उठी और चारों ओर आँख मारी तो धन ही धन हो गया। वह बाहर जाने लगी तो एक बूढ़ा ब्राह्मण सो रहा था। उसने देखा तो कहा कि बेटी तू कहाँ चली? लड़की बोली कि मैं तो दरिद्रता दूर करने आई थी। अगर तुम्हें दूर करवानी है तो करवा लो। उसने बूढे के घर में भी आँख से देखा तो चारों ओर धन ही धन हो गया।बाल वनिता महिला आश्रमसुबह सवेरे सब उठे तो लड़की को ना पाकर उसे ढूंढने लगे कि पावनी बेटी कहां चली गई। बूढ़ा ब्राह्मण बोला कि वह तो लक्ष्मी माता थी जो तुम्हारे साथ मेरी दरिद्रता भी दूर कर गई। हे लक्ष्मी माता ! जैसे आपने उनकी दरिद्रता दूर की वैसे ही सबकी करना। बोलो 👉🌹🙏जय_माँ_लक्ष्मी🙏🌹

#जय_माँ_लक्ष्मी 🙏 🙏 🙏 🔯 #माता_लक्ष्मी__की_कथा 🔯 By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब एक बूढ़ा ब्राह्मण था वह रोज पीपल को जल से सींचता था । पीपल में से रोज एक लड़की निकलती और कहती पिताजी मैं आपके साथ जाऊँगी। यह सुनते-सुनते बूढ़ा दिन ब दिन कमजोर होने लगा तो बुढ़िया ने पूछा की क्या बात है ? बूढ़ा बोला कि पीपल से एक लड़की निकलती है और कहती है कि वह भी मेरे साथ चलेगी। बुढ़िया बोली कि कल ले आना उस लड़की को जहाँ छ: लड़कियाँ पहले से ही हमारे घर में है वहाँ सातवीं लड़की और सही। अगले दिन बूढ़ा उस लड़की को घर ले आया। घर लाने के बाद बूढ़ा आटा माँगने गया तो उसे पहले दिनों की अपेक्षा आज ज्यादा आटा मिला था। जब बुढ़िया वह आटा छानने लगी तो लड़की ने कहा कि लाओ माँ, मैं छान देती हूँ। जब वह आटा छानने बैठी तो परात भर गई। उसके बाद माँ खाना बनाने जाने लगी तो लड़की बोली कि आज रसोई में मैं जाऊँगी तो बुढ़िया बोली कि ना, तेरे हाथ जल जाएँगे लेकिन लड़की नहीं मानी और वह रसोई में खाना बनाने गई तो उसने तरह-तरह के छत्तीसों व्यंजन बना डाले और आज सभी ने भरपेट खाना खाया। इससे पहले वह आधा पेट भूखा ही रहते थे। रात हुई तो ...

Bal Vanitha Mahila Ashram What is such a thing that by applying it on the navel, even 40 years old starts looking 25 years old?By philanthropist Vanitha Kasniya PunjabOriginally Answered: What are the things that can be applied on the navel?

बाल वनिता महिला आश्रम ऐसी कौन-सी चीज है जो नाभि पर लगाते रहने से 40 साल का भी 25 साल का नजर आने लगता है? By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब सबसे पहले जवाब दिया गया: ऐसी कौन-सी चीज है जो नाभि पर लगाने से 40 साल का भी 25 साल का नजर आने लगता है? बचपन से ही नाभि पर साधारण देसी घी/सरसों तेल/ हींग या लौंग वाला देसी घी लगाते हमने देखा है। आजकल तो नाभि से सम्बंधित चीजों की बाढ़ जैसी आ गई है तेल लगाने से लेकर मालिश, लेप, नेवल केंडलिग, विभिन्न प्रकार के नेवल थेरपिज आदि। हमारे यहां इसका इस्तेमाल पीढ़ियों से चला आ रहा है और यह बेहद असरदार साबित होता रहा है। सबसे पहले जान लेते हैं नाभि की महत्वता:- जब हम  कुंडलिनी, नाड़ी तंत्र और क्लासिकल हट योग की बात करते हैं तब आपकी नाभि को ऊर्जा के सबसे महत्वपूर्ण केंद्र के रूप में देखा जाता है। नाभि को प्राण की उत्पत्ति या बीज के रूप में भी देखा जाता है क्योंकि मां से गर्भ में पल रहे बच्चे को सारे पोषक तत्व नाभि (umbilical cord) से ही प्राप्त होते हैं। कुंडलिनी के संदर्भ में नाभि के स्थान को मणिपुर 👆👆👆चक्र / एनर्जी चैनल के रूप में देखा जाता है इसे सो...

#Happy_dipawli #दीपावली- दीपावली :-"#दीयों की रोशनी से #जगमगाता........#आंगन हो, #पटाखों की #रोशनी से जग मगाता #आसमान हो, ऐसी आये #झूम के ये........................#दीपावली, हर तरफ #खुशियां का #मौसम हो"..!!आप सभी को छोटी दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं.....|| ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ||'दीपावली माने दीपो की वली परंपरा, घर को भीतर-बाहर से दीप प्रकाश से भरकर सकारात्मक उर्जा से भर देना, फिर भीतर भी ईश्वर को प्रकृति माता को अब तक जो भी सुविधा साधन पाया है और आगे पाएंगे उसका धन्यवाद देते यही प्रार्थना करना......🙏🙏#swamimadhurramjisatsang #sanatandharma #deepawali2022 #ShubhDeepawali #दीपावली #शुभदीपावली #deepawali

#Happy_dipawli  #दीपावली - दीपावली :- "#दीयों की रोशनी से #जगमगाता........#आंगन हो,  #पटाखों की #रोशनी से जग मगाता #आसमान हो,  ऐसी आये #झूम के ये........................#दीपावली,  हर तरफ #खुशियां का #मौसम हो"..!! आप सभी को छोटी दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं..... || ॐ नमो भगवते वासुदेवाय || 'दीपावली माने दीपो की वली परंपरा, घर को भीतर-बाहर से दीप प्रकाश से भरकर सकारात्मक उर्जा से भर देना, फिर भीतर भी ईश्वर को प्रकृति माता को अब तक जो भी सुविधा साधन पाया है और आगे पाएंगे उसका धन्यवाद देते यही प्रार्थना करना......🙏🙏 #swamimadhurramjisatsang #sanatandharma #deepawali2022 #ShubhDeepawali #दीपावली #शुभदीपावली #deepawali