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भगवान् विष्णु ने विश्व मोहनी कन्या का रूप कब लिया था?By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाबसमुद्र मंथन के अंत में भगवान धन्वन्तरि अमृत कलश लेकर प्रगट हुए ,अमृत कुम्भ निकलते ही धन्वन्तरि के हाथ से अमृतपूर्ण कलश छीनकर दैत्य लेकर भागे, क्योंकि उनमें से प्रत्येक सबसे पहले अमृत पान करना चाहते था।कलश के लिये छीना झपटी चल रही थी और देवता निराश खड़े थे अचानक वहाँ एक अदि्वतीय सौन्दर्यशालिनी नारी प्रकट हुई असुरों ने उसके सौन्दर्य से प्रभावित होकर उससे मध्यस्थ बनकर अमृत बाँटने की प्रार्थना की** वास्तव में भगवान विष्णु ने ही दैत्यों को मोहित करने के लिए मोहिनीरूप धारण किया था।***मोहिनीधारी भगवान ने कहा - मैं विभाजन का कार्य करूँ, चाहे वह उचित हो या अनुचित- तुम लोग बीच में बाधा न उपस्थित करने का वचन दो तभी में कार्य को करूँगी।*सभी ने इस शर्त को स्वीकार किया, देवता और दैत्य अलग अलग पंक्तियों में बैठ गये। जिस समय भगवान मोहिनी रूप में देवताओं को अमृत पिला रहे थे। राहु धैर्य न रख सका वह देवताओं का रूप धारण करके सूर्य - चन्द्रमा के बीच में बैठ गया।जैसे ही उसे अमृत का एक घूट मिला, सूर्य-चन्द्रमा ने संकेत कर दिया। भगवान मोहिनी रूप त्याग करके चक्रधारी विष्णु हो गये और उन्होंने चक्र से राहु का सिर काट डाला.अमृत के प्रभाव से राहु के सर और धड़ से राहु और केतु दो दैत्यों का रूप ले लिया।असुरों ने भी अपना शस्त्र उठाया और देवासुर संग्राम प्रारम्भ हो गया। अमृत के प्रभाव से तथा भगवान की कृपा से देवताओं की विजय हुई और उन्हें अपना स्वर्ग पुन: वापस मिला।भस्मासुर के वध के लिए भी भगवान विष्णु विश्व मोहनी कन्या बने थे

भगवान् विष्णु ने विश्व मोहनी कन्या का रूप कब लिया था? By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब समुद्र मंथन के अंत में भगवान धन्वन्तरि अमृत कलश लेकर प्रगट हुए  ,अमृत कुम्भ निकलते ही धन्वन्तरि के हाथ से अमृतपूर्ण कलश छीनकर दैत्य लेकर भागे, क्योंकि उनमें से प्रत्येक सबसे पहले अमृत पान करना चाहते था। कलश के लिये छीना झपटी चल रही थी और देवता निराश खड़े थे  अचानक वहाँ एक अदि्वतीय सौन्दर्यशालिनी नारी प्रकट हुई  असुरों ने उसके सौन्दर्य से प्रभावित होकर उससे मध्यस्थ बनकर अमृत बाँटने की प्रार्थना की** वास्तव में भगवान विष्णु ने ही दैत्यों को मोहित करने के लिए मोहिनीरूप धारण किया था।** *मोहिनीधारी भगवान ने कहा - मैं विभाजन का कार्य करूँ, चाहे वह उचित हो या अनुचित- तुम लोग बीच में बाधा न उपस्थित करने का वचन दो तभी में कार्य को करूँगी।* सभी ने इस शर्त को स्वीकार किया, देवता और दैत्य अलग अलग पंक्तियों में बैठ गये। जिस समय भगवान मोहिनी रूप में देवताओं को अमृत पिला रहे थे। राहु धैर्य न रख सका वह देवताओं का रूप धारण करके सूर्य - चन्द्रमा के बीच में बैठ गया। जैसे ही उसे अमृत का एक घूट मिला, सूर्य-...

श्री हरि जय सिया राम , कुछ उपाय टोटके = By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब ★★★★★★👉विवाह में बिलम्ब हो रहा हो 4किलो जौ और 600gm कच्चा कोयला दूध मिलाकर दरिया में डाले , 👉मुकदमा में विजय प्राप्त करने के लिए चार दिन लगातार ठीक एक समय पर श्मशान में वाहर से श्मशान में बादाम डाले 👉एक कागज पर अपनी मनोकामना लिखकर साथ मे लोहे , ताँबा, जस्त, का एक एक टुकड़ा लेकर ज़मीन में छेद करके डाल दे और ऊपर से मिट्टी भर दे मनोकामना पूरी होगी , 👉 जायदाद आदि पूरी किम्मत पर बेचने के लिए काले उड़द चलते पानी मे बहाओ , लोहे की चीजो का दान करे , बादाम बच्चो में बांट दे 👉चने की दाल लगातार धर्मस्थान में 43 दिन दे सुख , सफलता आर्थिक स्तिथि में सुधार होता है 👉 झग़डे , फसाद , और व्यपारिक घाटे से बचने के लिए अपने वजन के बराबर कोयले दरिया में बहाए 👉आर्थिक स्तिथि ठीक करने के लिए शरीर पर सोने का चौरस टुकड़ा पहने 👉गृह की शांति सुख समृद्धि के लिए प्रतिदिन अपने भोजन में से गाय , कौआ और कुते को हिस्सा दे 👉8 छुहारे लाल कपड़े में बांधकर प्लास्टिक की थैली में अपने पास रखे , या वाहन में रख दे और ॐ नमः शिवाय का जप करे , दुर्घटना आदि से बचाव होता है 👉 किसी भी तरह से विमारी ना जाती हो तो मरीज के वजन जितने जौ चलते पानी मे वहां दे 👉 आप को लगता है किया कराया है तो आप शाम के समय पीपल के पेड़ पास कुछ खाद्य पदार्थ रखे , और इसके बाद पीपल की पूजा करे , और पीपल की 49 वार परिक्रमा करे , इससे किया कराया , भूत प्रेत आदि दोष दूर होते है 👉 कुंडली प्रश्न कुंडली के फलादेश आदि के लिए सम्पर्क करें बाल वनिता महिला आश्रम

श्री हरि जय सिया राम ,  कुछ उपाय टोटके =  By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब          ★★★★★★ 👉विवाह में बिलम्ब हो रहा हो 4किलो जौ और 600gm कच्चा कोयला दूध मिलाकर दरिया में डाले ,  👉मुकदमा में विजय प्राप्त करने के लिए चार दिन लगातार ठीक एक समय पर श्मशान में वाहर से श्मशान में बादाम डाले  👉एक कागज पर अपनी मनोकामना लिखकर साथ मे लोहे , ताँबा, जस्त, का एक एक टुकड़ा लेकर ज़मीन में छेद करके डाल दे और ऊपर से मिट्टी भर दे मनोकामना पूरी होगी ,  👉 जायदाद आदि पूरी किम्मत पर बेचने के लिए काले उड़द चलते पानी मे बहाओ , लोहे की चीजो का दान करे , बादाम बच्चो में बांट दे  👉चने की दाल लगातार धर्मस्थान में 43 दिन दे सुख , सफलता आर्थिक स्तिथि में सुधार होता है  👉 झग़डे , फसाद , और व्यपारिक घाटे से बचने के लिए अपने वजन के बराबर कोयले दरिया में बहाए  👉आर्थिक  स्तिथि ठीक करने के लिए शरीर पर सोने का चौरस टुकड़ा पहने  👉गृह की शांति सुख समृद्धि के लिए प्रतिदिन अपने भोजन में से गाय , कौआ और कुते को हिस्सा दे  👉8 छुहारे लाल कपड़े में ब...
Nirjala Ekadashi 2021 : एकादशी के दिन इस आरती को करने से मिलता है स्वर्ग में स्थान, भगवान विष्णु होते हैं प्रसन्न By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब एकादशी का पावन दिन भगवान विष्णु को समर्पित होता है। इस पावन दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है। इस दिन एकादशी माता की आरती करने से भी शुभ फल की प्राप्ति होती है। हिंदू पंचांग के अनुसार साल में कुल 24 एकादशी पड़ती हैं। इस एकादशी आरती में सभी 24 एकादशियों के नाम शामिल हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस पावन आरती को करने से विष्णु भगवान की विशेष कृपा प्राप्त होती है और मृत्यु के पश्चात स्वर्ग में स्थान मिलता है। Nirjala Ekadashi 2021 : निर्जला एकादशी के दिन जरूर करें इस कथा का पाठ, जानें किस समय पूजा करना होगा शुभ पंचांग-पुराण से और  चाणक्य नीति: किसी पर भरोसा करने से पहले जान लें उसकी ये 3 बातें, वरना पड़ सकता है पछताना 2021/06/21 07:22:49    राशिफल 21 जून: मेष व कन्या राशि वाले रोजगार में करेंगे तरक्की, इस राशि के जातक गृहकलह से बचें 2021/06/21 06:58:06    मिथुन व तुला के बाद इन राशि वालों...

🌹|| 13-06-21 प्रात:मुरली ओम् शान्ति ''अव्यक्त-बापदादा'' रिवाइज: 18-01-88 मधुबन ||🌹🌹🌻🌹‘स्नेह' और ‘शक्ति' की समानता🌹🌻🌹💖💞🅱️🅰️🅱️🅰️💖💞🅱️🅰️🅱️🅰️💖💞🌷आज स्मृति-स्वरूप बनाने वाले समर्थ बाप चारों ओर के स्मृति-स्वरूप समर्थ बच्चों को देख रहे हैं। आज का दिन बापदादा के स्नेह में समाने के साथ-साथ स्नेह और समर्थ - दोनों के बैलेन्स स्थिति के अनुभव का दिन है। स्मृति दिवस अर्थात् स्नेह और समर्थी - दोनों की समानता के वरदान का दिवस है क्योंकि जिस बाप की स्मृति में स्नेह में लवलीन होते हो, वह ब्रह्मा बाप स्नेह और शक्ति की समानता का श्रेष्ठ सिम्बल है। अभी-अभी अति स्नेही, अभी-अभी श्रेष्ठ शक्तिशाली। स्नेह में भी स्नेह द्वारा हर बच्चे को सदा शक्तिशाली बनाया। सिर्फ स्नेह में अपनी तरफ आकर्षित नहीं किया लेकिन स्नेह द्वारा शक्ति सेना बनाए विश्व के आगे सेवा अर्थ निमित्त बनाया। सदा ‘स्नेही भव' के साथ ‘नष्टोमोहा कर्मातीत भव' का पाठ पढ़ाया। अन्त तक बच्चों को सदा न्यारे और सदा प्यारे - यही नयनों की दृष्टि द्वारा वरदान दिया।🌷आज के दिन चारों ओर के बच्चे भिन्न-भिन्न स्वरूप से, भिन्न-भिन्न सम्बन्ध से, स्नेह से और बाप के समान बनने की स्थिति के अनुभूति से मिलन मनाने बापदादा के वतन में पहुँचे। कोई बुद्धि द्वारा और कोई दिव्य-दृष्टि द्वारा। बापदादा ने सभी बच्चों के स्नेह का और समान स्थिति का याद और प्यार दिल से स्वीकार किया और रिटर्न में सभी बच्चों को ‘बापदादा समान भव' का वरदान दिया और दे रहे हैं। बापदादा जानते हैं कि बच्चों का ब्रह्मा बाप से अति स्नेह है। चाहे साकार में पालना ली, चाहे अब अव्यक्त रूप से पालना ले रहे हैं लेकिन बड़ी माँ होने के कारण माँ से बच्चों का प्यार स्वत: ही होता है। इस कारण बाप जानते हैं कि ब्रह्मा माँ को बहुत याद करते हैं। लेकिन स्नेह का प्रत्यक्ष स्वरूप है समान बनना। जितना-जितना दिल का सच्चा प्यार है, बच्चों के मन में उतना ही फालो फादर करने का उमंग-उत्साह दिखाई देता है। यह अलौकिक माँ का अलौकिक प्यार वियोगी बनाने वाला नहीं है, सहजयोगी राजयोगी अर्थात् राजा बनाने वाला है। अलौकिक माँ की बच्चों के प्रति अलौकिक ममता है कि हर एक बच्चा राजा बने। सभी राजा बच्चे बनें, प्रजा नहीं। प्रजा बनाने वाले हो, प्रजा बनने वाले नहीं हो।🌷आज वतन में मात-पिता की रूहरिहान चल रही थी। बाप ने ब्रह्मा माँ से पूछा कि बच्चों के विशेष स्नेह के दिन क्या याद आता? आप लोगों को भी विशेष याद आती है ना। हर एक को अपनी याद आती है और उन यादों में समा जाते हो। आज के दिन विशेष अलौकिक यादों का संसार होता है। हर कदम में विशेष साकार स्वरूप के चरित्रों की याद स्वत: ही आती है। पालना की याद, प्राप्तियों की याद, वरदानों की याद स्वत: ही आती है। तो बाप ने भी ब्रह्मा माँ से यही पूछा। जानते हो, ब्रह्मा ने क्या बोला होगा? संसार तो बच्चों का ही है। ब्रह्मा बोले-अमृतवेले पहले ‘समान बच्चे' याद आये। स्नेही बच्चे और समान बच्चे। स्नेही बच्चों को समान बनने की इच्छा वा संकल्प है लेकिन इच्छा के साथ, संकल्प के साथ सदा समर्थी नहीं रहती, इसलिए समान बनने में नम्बर आगे के बजाये पीछे रह जाता है। स्नेह उमंग-उत्साह में लाता लेकिन समस्यायें स्नेह और शक्ति रूप की समान स्थिति बनने में कहाँ-कहाँ कमजोर बना देती हैं। समस्यायें सदा समान बनने की स्थिति से दूर कर लेती हैं। स्नेह के कारण बाप को भूल भी नहीं सकते। हैं भी पक्के ब्राह्मण। पीछे हटने वाले भी नहीं हैं, अमर भी हैं। सिर्फ समस्या को देख थोड़े समय के लिए उस समय घबरा जाते हैं इसलिए, निरन्तर स्नेह और शक्ति की समान स्थिति का अनुभव नहीं कर सकते।🌷इस समय के प्रमाण नॉलेजफुल, पावरफुल, सक्सेसफुल स्थिति के बहुतकाल के अनुभवी बन चुके हो। माया के, प्रकृति के वा आत्माओं द्वारा निमित्त बनी हुई समस्याओं के अनेक बार के अनुभवी आत्मायें हो। नई बात नहीं है। त्रिकालदर्शी हो! समस्याओं के आदि, मध्य, अन्त - तीनों को जानते हो। अनेक कल्पों की बात तो छोड़ो लेकिन इस कल्प के ब्राह्मण जीवन में भी बुद्धि द्वारा जान विजयी बनने में वा समस्या को पार कर अनुभवी बनने में नये नहीं हो, पुराने हो गये हो। चाहे एक साल का भी हो लेकिन इस अनुभव में पुराने हैं। ‘नथिंग न्यू'-यह पाठ भी पढ़ाया हुआ है इसलिए वर्तमान समय के प्रमाण अभी समस्या से घबराने में समय नहीं गंवाना है। समय गंवाने से नम्बर पीछे हो जाता है।🌷तो ब्रह्मा माँ ने बोला - एक विशेष स्नेही बच्चे और दूसरे समान बनने वाले, दो प्रकार के बच्चों को देख यही संकल्प आया कि वर्तमान समय प्रमाण मैजारिटी बच्चों को अब समान स्थिति के समीप देखने चाहते हैं। समान स्थिति वाले भी हैं लेकिन मैजारिटी समानता के समीप पहुँच जाएं-यही अमृतवेले बच्चों को देख-देख समान बनने का दिन याद आ रहा था। आप ‘स्मृति-दिन' को याद कर रहे थे और ब्रह्मा माँ ‘समान बनने का दिन' याद कर रहे थे। यही श्रेष्ठ संकल्प पूरा करना अर्थात् स्मृति दिवस को समर्थ दिवस बनाना है। यही स्नेह का प्रत्यक्ष फल माँ-बाप देखने चाहते हैं। पालना का वा बाप के वरदानों का यही श्रेष्ठ फल है। मात-पिता को प्रत्यक्ष फल दिखाने वाले श्रेष्ठ बच्चे हो। पहले भी सुनाया था-अति स्नेह की निशानी यह है जो स्नेही, स्नेही की कमी देख नहीं सकते इसलिए, अभी तीव्र गति से समान स्थिति के समीप आओ। यही माँ का स्नेह है। हर कदम में फालो फादर करते चलो। ब्रह्मा एक ही विशेष आत्मा है जिसका मात-पिता दोनों पार्ट साकार रूप में नूँधा हुआ है इसलिए विचित्र पार्टधारी महान् आत्मा का डबल स्वरूप बच्चों को याद अवश्य आता है। लेकिन जो ब्रह्मा ‘मात-पिता' के दिल की श्रेष्ठ आशा है कि सर्व समान बनें, उसको भी याद करना। समझा? आज के स्मृति दिवस का श्रेष्ठ संकल्प “समान बनना ही है''। चाहे संकल्प में, चाहे बोल में, चाहे सम्बन्ध संपर्क में समान अर्थात् समर्थ बनना है। कितनी भी बड़ी समस्या हो लेकिन ‘नथिंग-न्यू'-इस स्मृति से समर्थ बन जायेंगे, इसमें अलबेले नहीं बनना, अलबेलेपन में भी नथिंग-न्यू शब्द यूज़ करते हैं। लेकिन अनेक बार विजयी बनने में नथिंग-न्यु। इस विधि से सदा सिद्धि को प्राप्त करते चलो। अच्छा!🌷सभी बहुत उमंग से स्मृति दिवस मनाने आए हैं। तीन पैर (पग) पृथ्वी देने वाले भी आए हैं। तीन पैर दे और तीन लोकों का मालिक बन जाएं, तो देना क्या हुआ! फिर भी, सेवा का पुण्य जमा करने में होशियार बने इसलिए होशियारी की मुबारक हो। एक दे लाख पाने की विधि को अपनाने की समर्थी रखी इसलिए विशेष स्मृति-दिवस पर ऐसी समर्थ आत्माओं को बुलाया है। बाप रमणीक चिट-चैट कर रहे थे। विशेष स्थान देने वालों को बुलाया है। बाप ने भी स्थान दिया है ना। बाप का भी लिस्ट में नाम है ना। कौनसा स्थान दिया है? ऐसा स्थान कोई नहीं दे सकता। बाप ने ‘दिलतख्त' दिया, कितना बड़ा स्थान है! यह सब स्थान उसमें आ जायेंगे ना। देश-विदेश के सेवा-स्थान सभी इकट्ठे करो तो भी बड़ा स्थान कौनसा है? पुरानी दुनिया में रहने के कारण आपने तो ईटों का मकान दिया और बाप ने तख्त दिया - जहाँ सदा ही बेफिकर बादशाह बन बैठ जाते। फिर भी देखो, किसी भी प्रकार की सेवा का-चाहे स्थान द्वारा सेवा करते, चाहे स्थिति द्वारा करते - सेवा का महत्व स्वत: ही होता है। तो स्थान की सेवा का भी बहुत महत्व है। किसी को ‘हाँ जी' कहकर, किसी को ‘पहले आप' कहकर सेवा करने का भी महत्व है। सिर्फ भाषण करना सेवा नहीं है लेकिन किसी भी सेवा की विधि से मन्सा, वाचा, कर्मणा, बर्तन माँजना भी सेवा का महत्व है। जितना भाषण करने वाला पद पा लेता है उतना योगयुक्त, युक्तियुक्त स्थिति में स्थित रहकर ‘बर्तन मांजने वाला' भी श्रेष्ठ पद पा सकता है। वह मुख से करता, वह स्थिति से करता। तो सदा हर समय सेवा की विधि के महत्व को जानकर महान् बनो। कोई भी सेवा का फल न मिले - यह हो नहीं सकता। लेकिन सच्ची दिल पर साहेब राज़ी होता है। जब दाता, वरदाता राज़ी हो जाए तो क्या कमी रहेगी! वरदाता वा भाग्यविधाता ज्ञान-दाता भोले बाप को राज़ी करना बहुत सहज है। भगवान राज़ी तो धर्मराज काज़ी से भी बच जायेंगे, माया से भी बच जायेंगे। अच्छा!🌷चारों ओर के सर्व स्नेह और शक्ति के समान स्थिति में स्थित रहने वाले, सदा मात-पिता की श्रेष्ठ आशा को पूर्ण करने वाले आशा के दीपकों को, सदा हर विधि से सेवा के महत्व को जानने वाले, सदा हर कदम में फालो फादर करने वाले मात-पिता को सदा स्नेह और शक्ति द्वारा समान बनने का फल दिखाने वाले, ऐसे स्मृति-स्वरूप सर्व समर्थ बच्चों को समर्थ बाप का समर्थ-दिवस पर यादप्यार और नमस्ते।🌹सेवाकेन्द्रों के लिए तीन पैर पृथ्वी देने वाले निमित्त भाई-बहिनों से अव्यक्त बाप-दादा की मुलाकात🌹🌷विशेष सेवा के प्रत्यक्षफल की प्राप्ति देख खुशी हो रही है ना। भविष्य तो जमा है ही लेकिन वर्तमान भी श्रेष्ठ बन गया। वर्तमान समय की प्राप्ति भविष्य से भी श्रेष्ठ है! क्योंकि अप्राप्ति और प्राप्ति के अनुभव का ज्ञान इस समय है। वहाँ अप्राप्ति क्या होती है, उसका पता ही नहीं है। तो अन्तर का पता नहीं होता है और यहाँ अन्तर का अनुभव है इसलिए इस समय की प्राप्ति के अनुभव का महत्व है। जो भी सेवा के निमित्त बनते हैं, तो ‘तुरन्त दान महापुण्य' गाया हुआ है। अगर कोई भी बात के कोई निमित्त बनता है अर्थात् तुरन्त दान करता तो उसके रिटर्न में महापुण्य की अनुभूति होती है। वह क्या होती है? किसी भी सेवा का पुण्य एकस्ट्रा ‘खुशी', शक्ति की अनुभूति होती है। जब भी कोई सफलता - स्वरूप बनके सेवा करते हो तो उस समय विशेष खुशी की अनुभूति करते हो ना। वर्णन करते हो कि आज बहुत अच्छा अनुभव हुआ! क्यों हुआ? बाप का परिचय सुनकर के सफलता का अनुभव किया। कोई परिचय सुनकर के जाग जाता है या परिचय मिलते परिवर्तन हो जाता है तो उनकी प्राप्ति का प्रभाव आपके ऊपर भी पड़ता है। दिल में खुशी के गीत बजने शुरू हो जाते हैं-यह है प्रत्यक्षफल की प्राप्ति। तो सेवा करने वाला अर्थात् सदा प्राप्ति का मेवा खाने वाला। तो जो मेवा खाता है वह क्या होता? तन्दरूस्त होता है ना। अगर डॉक्टर्स भी किसको कमजोर देखते हैं तो क्या कहते हैं? फल खाओ क्योंकि आजकल और ताकत की चीज़ - माखन खाओ, घी खाओ - वह तो हज़म नहीं कर सकते। आजकल ताकत के लिए फल देते हैं। तो सेवा का भी प्रत्यक्ष-फल मिलता है। चाहे कर्मणा भी करो, कर्मणा की भी खुशी होती है। मानो सफाई करते हो, लेकिन जब स्थान सफाई से चमकता है तो सच्चे दिल से करने कारण स्थान को चमकता हुआ देखकर के खुशी होती है ना।🌷कोई भी सेवा के पुण्य का फल स्वत: ही प्राप्त होता है। पुण्य का फल जमा भी होता है और फिर अभी भी मिलता है। अगर मानो, आप कोई भी काम करते हो, सेवा करते हो तो कोई भी आपको कहेगा-बहुत अच्छी सेवा की, बहुत हड्डी, अथक होकर की। तो ये सुनकर खुशी होती है ना। तो फल मिला ना। चाहे मुख से सेवा करो, चाहे हाथों से करो लेकिन सेवा माना ही मेवा। तो यह भी सेवा के निमित्त बने हो ना। महत्व रखने से महानता प्राप्त कर लेते। तो ऐसे आगे भी सेवा के महत्व को जान सदा कोई न कोई सेवा में बिजी रहो। ऐसे नहीं कि कोई जिज्ञासु नहीं मिला तो सेवा क्या करूँ? कोई प्रदर्शनी नहीं हुई, कोई भाषण नहीं हुआ तो क्या सेवा करूँ? नहीं। सेवा का फील्ड बहुत बड़ा है! कोई कहे, हमको सेवा मिलती नहीं है-कह नहीं सकता। वायुमण्डल को बनाने की कितनी सेवा रही हुई है! प्रकृति को भी परिवर्तन करने वाले हो। तो प्रकृति का परिवर्तन कैसे होगा? भाषण करेंगे क्या? वृत्ति से वायुमण्डल बनेगा। वायुमण्डल बनना अर्थात् प्रकृति का परिवर्तन होना। तो यह कितनी सेवा है! अभी हुई है? अभी तो प्रकृति पेपर ले रही है। तो हर सेकण्ड सेवा का बहुत बड़ा फील्ड रहा हुआ है। कोई कह नहीं सकता कि हमको सेवा का चांस नहीं मिलता। बीमार भी हो, तो भी सेवा का चांस है। कोई भी हो-चाहे अनपढ़ हो, चाहे पढ़ा हुआ हो, किसी भी प्रकार की आत्मा, सबके लिए सेवा का साधन बहुत बड़ा है। तो सेवा का चांस मिले-यह नहीं, मिला हुआ है।🌷आलराउन्ड सेवाधारी बनना है। कर्मणा सेवा की भी 100 मार्क्स हैं। अगर वाचा और मन्सा ठीक है लेकिन कर्मणा के तरफ रूचि नहीं है तो 100 मार्क्स तो गई। आलराउन्ड सेवाधारी अर्थात् सब प्रकार की सेवा द्वारा फुल मार्क्स लेने वाले। इसको कहेंगे आलराउन्ड सेवाधारी। तो ऐसे हो? देखो, शुरू में जब बच्चों की भट्ठी बनाई तो कर्मणा का कितना पाठ पक्का कराया! माली भी बनाया तो जूते बनाने वाला भी बनाया। बर्तन मांजने वाले भी बनाया तो भाषण करने वाला भी बनाया क्योंकि इसकी मार्क्स भी रह नही जायें। वहाँ भी लौकिक पढ़ाई में मानों आप कोई हल्की सबजेक्ट में भी फेल हो जाते हो। विशेष सब्जेक्ट नहीं है, नम्बर थ्री फोर सब्जेक्ट हैं लेकिन उसमें भी अगर फेल हुए तो पास विद् ऑनर नहीं बनेंगे। टोटल में मार्क्स तो कम हो गई ना। ऐसे सब सब्जेक्ट चेक करो। सब सब्जेक्ट्स में मार्क्स लिया है? जैसे यह (मकान देने के) निमित्त बने, यह सेवा की, इसका पुण्य मिला, मार्क्स मिलेंगी। लेकिन फुल मार्क्स ली हैं या नहीं-यह चेक करो। कोई न कोई कर्मणा सेवा, वह भी जरूरी है क्योंकि कर्मणा की भी 100 मार्क्स हैं, कम नहीं हैं यहाँ सब सब्जेक्ट की 100 मार्क्स हैं। वहाँ तो ड्राइंग में थोड़ी मार्क्स होंगी, हिसाब में (गणित में) ज्यादा होंगी। यहाँ सब सब्जेक्ट महत्व वाली हैं। तो ऐसा न हो कि मन्सा, वाचा में तो मार्क्स बना लो और कर्मणा में रह जाए और आप समझो-मैं बहुत महावीर हूँ। सभी में मार्क्स लेनी हैं। इसको कहते हैं सेवाधारी। तो कौनसा ग्रुप है? आलराउन्ड सेवाधारी या स्थान देने के सेवाधारी? यह भी अच्छा किया जो सफल कर लिया। जो जितना सफल करते हैं, उतना मालिक बनते हैं। समय के पहले सफल कर लेना-यह समझदार बनने की निशानी है। तो समझदारी का काम किया है। बापदादा भी खुश होते हैं कि हिम्मत रखने वाले बच्चे हैं। अच्छा!🌷वरदान: स्नेही बनने के गुह्य रहस्य को समझ सर्व को राज़ी करने वाले राज़युक्त, योगयुक्त भवजो बच्चे एक सर्वशक्तिमान् बाप के स्नेही बनकर रहते हैं वे सर्व आत्माओं के स्नेही स्वत: बन जाते हैं। इस गुह्य रहस्य को जो समझ लेते वह राजयुक्त, योगयुक्त वा दिव्यगुणों से युक्तियुक्त बन जाते हैं। ऐसी राज़युक्त आत्मा सर्व आत्माओं को सहज ही राज़ी कर लेती है। जो इस राज़ को नहीं जानते वे कभी अन्य को नाराज़ करते और कभी स्वयं नाराज रहते हैं इसलिए सदा स्नेही के राज़ को जान राजयुक्त बनो।By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब🌷स्लोगन: जो निमित्त हैं वह जिम्मेवारी सम्भालते भी सदा हल्के हैं।💖💞ओम शान्ति💖💞

🌹|| 13-06-21 प्रात:मुरली ओम् शान्ति ''अव्यक्त-बापदादा'' रिवाइज: 18-01-88 मधुबन ||🌹 🌹🌻🌹‘स्नेह' और ‘शक्ति' की समानता🌹🌻🌹 💖💞🅱️🅰️🅱️🅰️💖💞🅱️🅰️🅱️🅰️💖💞 🌷आज स्मृति-स्वरूप बनाने वाले समर्थ बाप चारों ओर के स्मृति-स्वरूप समर्थ बच्चों को देख रहे हैं। आज का दिन बापदादा के स्नेह में समाने के साथ-साथ स्नेह और समर्थ - दोनों के बैलेन्स स्थिति के अनुभव का दिन है। स्मृति दिवस अर्थात् स्नेह और समर्थी - दोनों की समानता के वरदान का दिवस है क्योंकि जिस बाप की स्मृति में स्नेह में लवलीन होते हो, वह ब्रह्मा बाप स्नेह और शक्ति की समानता का श्रेष्ठ सिम्बल है। अभी-अभी अति स्नेही, अभी-अभी श्रेष्ठ शक्तिशाली। स्नेह में भी स्नेह द्वारा हर बच्चे को सदा शक्तिशाली बनाया। सिर्फ स्नेह में अपनी तरफ आकर्षित नहीं किया लेकिन स्नेह द्वारा शक्ति सेना बनाए विश्व के आगे सेवा अर्थ निमित्त बनाया। सदा ‘स्नेही भव' के साथ ‘नष्टोमोहा कर्मातीत भव' का पाठ पढ़ाया। अन्त तक बच्चों को सदा न्यारे और सदा प्यारे - यही नयनों की दृष्टि द्वारा वरदान दिया। 🌷आज के दिन चारों ओर के बच्चे भिन्न-भिन्न ...

॥ सर्व गायत्रीमन्त्राः॥145 देवो के गायत्री मंत्रBy समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब1 सूर्य ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ॥ 2 ॐ आदित्याय विद्महे सहस्रकिरणाय धीमहि तन्नो भानुः प्रचोदयात् ॥ 3 ॐ प्रभाकराय विद्महे दिवाकराय धीमहि तन्नः सूर्यः प्रचोदयात् ॥ 4 ॐ अश्वध्वजाय विद्महे पाशहस्ताय धीमहि तन्नः सूर्यः प्रचोदयात् ॥ 5 ॐ भास्कराय विद्महे महद्द्युतिकराय धीमहि तन्न आदित्यः प्रचोदयात् ॥ 6 ॐ आदित्याय विद्महे सहस्रकराय धीमहि तन्नः सूर्यः प्रचोदयात् ॥ 7 ॐ भास्कराय विद्महे महातेजाय धीमहि तन्नः सूर्यः प्रचोदयात् ॥ 8 ॐ भास्कराय विद्महे महाद्द्युतिकराय धीमहि तन्नः सूर्यः प्रचोदयात् ॥ 9 चन्द्र ॐ क्षीरपुत्राय विद्महे महाकालाय धीमहि तन्नश्चन्द्रः प्रचोदयात् ॥ 10 ॐ क्षीरपुत्राय विद्महे अमृतत्वाय धीमहि तन्नश्चन्द्रः प्रचोदयात् ॥ 11 ॐ निशाकराय विद्महे कलानाथाय धीमहि तन्नः सोमः प्रचोदयात् ॥ 12 अङ्गारक, भौम, मङ्गल, कुज ॐ वीरध्वजाय विद्महे विघ्नहस्ताय धीमहि तन्नो भौमः प्रचोदयात् ॥ 13 ॐ अङ्गारकाय विद्महे भूमिपालाय धीमहि तन्नः कुजः प्रचोदयात् ॥ 14 ॐ चित्रिपुत्राय विद्महे लोहिताङ्गाय धीमहि तन्नो भौमः प्रचोदयात् ॥15 ॐ अङ्गारकाय विद्महे शक्तिहस्ताय धीमहि तन्नो भौमः प्रचोदयात् ॥ 16 बुध ॐ गजध्वजाय विद्महे सुखहस्ताय धीमहि तन्नो बुधः प्रचोदयात् ॥ 17 ॐ चन्द्रपुत्राय विद्महे रोहिणी प्रियाय धीमहि तन्नो बुधः प्रचोदयात् ॥18 ॐ सौम्यरूपाय विद्महे वाणेशाय धीमहि तन्नो बुधः प्रचोदयात् ॥ 19 गुरु ॐ वृषभध्वजाय विद्महे क्रुनिहस्ताय धीमहि तन्नो गुरुः प्रचोदयात् ॥ 20 ॐ सुराचार्याय विद्महे सुरश्रेष्ठाय धीमहि तन्नो गुरुः प्रचोदयात् ॥ 21 शुक्र ॐ अश्वध्वजाय विद्महे धनुर्हस्ताय धीमहि तन्नः शुक्रः प्रचोदयात् ॥22 ॐ रजदाभाय विद्महे भृगुसुताय धीमहि तन्नः शुक्रः प्रचोदयात् ॥ 23 ॐ भृगुसुताय विद्महे दिव्यदेहाय धीमहि तन्नः शुक्रः प्रचोदयात् ॥ 24 शनीश्वर, शनैश्चर, शनी ॐ काकध्वजाय विद्महे खड्गहस्ताय धीमहि तन्नो मन्दः प्रचोदयात् ॥ 25 ॐ शनैश्चराय विद्महे सूर्यपुत्राय धीमहि तन्नो मन्दः प्रचोदयात् ॥ 26 ॐ सूर्यपुत्राय विद्महे मृत्युरूपाय धीमहि तन्नः सौरिः प्रचोदयात् ॥27 राहु ॐ नाकध्वजाय विद्महे पद्महस्ताय धीमहि तन्नो राहुः प्रचोदयात् ॥28 ॐ शिरोरूपाय विद्महे अमृतेशाय धीमहि तन्नो राहुः प्रचोदयात् ॥29 केतु ॐ अश्वध्वजाय विद्महे शूलहस्ताय धीमहि तन्नः केतुः प्रचोदयात् ॥30 ॐ चित्रवर्णाय विद्महे सर्परूपाय धीमहि तन्नः केतुः प्रचोदयात् ॥31 ॐ गदाहस्ताय विद्महे अमृतेशाय धीमहि तन्नः केतुः प्रचोदयात् ॥32 पृथ्वी ॐ पृथ्वी देव्यै विद्महे सहस्रमर्त्यै च धीमहि तन्नः पृथ्वी प्रचोदयात् ॥33 ब्रह्मा ॐ चतुर्मुखाय विद्महे हंसारूढाय धीमहि तन्नो ब्रह्मा प्रचोदयात् ॥34 ॐ वेदात्मनाय विद्महे हिरण्यगर्भाय धीमहि तन्नो ब्रह्मा प्रचोदयात् ॥35 ॐ चतुर्मुखाय विद्महे कमण्डलुधराय धीमहि तन्नो ब्रह्मा प्रचोदयात् ॥36 ॐ परमेश्वराय विद्महे परमतत्त्वाय धीमहि तन्नो ब्रह्मा प्रचोदयात् ॥37 विष्णु ॐ नारायणाय विद्महे वासुदेवाय धीमहि तन्नो विष्णुः प्रचोदयात् ॥38 नारायण ॐ नारायणाय विद्महे वासुदेवाय धीमहि तन्नो विष्णुः प्रचोदयात् ॥39 वेङ्कटेश्वर ॐ निरञ्जनाय विद्महे निरपाशाय धीमहि तन्नः श्रीनिवासः प्रचोदयात् ॥40 राम ॐ रघुवंश्याय विद्महे सीतावल्लभाय धीमहि तन्नो रामः प्रचोदयात् ॥41 ॐ दाशरथाय विद्महे सीतावल्लभाय धीमहि तन्नो रामः प्रचोदयात् ॥42 ॐ भरताग्रजाय विद्महे सीतावल्लभाय धीमहि तन्नो रामः प्रचोदयात् ॥43 ॐ भरताग्रजाय विद्महे रघुनन्दनाय धीमहि तन्नो रामः प्रचोदयात् ॥44 कृष्ण ॐ देवकीनन्दनाय विद्महे वासुदेवाय धीमहि तन्नः कृष्णः प्रचोदयात् ॥45 ॐ दामोदराय विद्महे रुक्मिणीवल्लभाय धीमहि तन्नः कृष्णः प्रचोदयात् ॥46 ॐ गोविन्दाय विद्महे गोपीवल्लभाय धीमहि तन्नः कृष्णः प्रचोदयात् ।47 गोपाल ॐ गोपालाय विद्महे गोपीजनवल्लभाय धीमहि तन्नो गोपालः प्रचोदयात् ॥48 पाण्डुरङ्ग ॐ भक्तवरदाय विद्महे पाण्डुरङ्गाय धीमहि तन्नः कृष्णः प्रचोदयात् ॥49 नृसिंह ॐ वज्रनखाय विद्महे तीक्ष्णदंष्ट्राय धीमहि तन्नो नारसिꣳहः प्रचोदयात् ॥50 ॐ नृसिंहाय विद्महे वज्रनखाय धीमहि तन्नः सिंहः प्रचोदयात् ॥51 परशुराम ॐ जामदग्न्याय विद्महे महावीराय धीमहि तन्नः परशुरामः प्रचोदयात् ॥52 इन्द्र ॐ सहस्रनेत्राय विद्महे वज्रहस्ताय धीमहि तन्न इन्द्रः प्रचोदयात् ॥53 हनुमान ॐ आञ्जनेयाय विद्महे महाबलाय धीमहि तन्नो हनूमान् प्रचोदयात् 54 ॐ आञ्जनेयाय विद्महे वायुपुत्राय धीमहि तन्नो हनूमान् प्रचोदयात् ॥55 मारुती ॐ मरुत्पुत्राय विद्महे आञ्जनेयाय धीमहि तन्नो मारुतिः प्रचोदयात् ॥56 दुर्गा ॐ कात्यायनाय विद्महे कन्यकुमारी च धीमहि तन्नो दुर्गा प्रचोदयात् ॥57 ॐ महाशूलिन्यै विद्महे महादुर्गायै धीमहि तन्नो भगवती प्रचोदयात् ॥58 ॐ गिरिजायै च विद्महे शिवप्रियायै च धीमहि तन्नो दुर्गा प्रचोदयात् ॥59 शक्ति ॐ सर्वसंमोहिन्यै विद्महे विश्वजनन्यै च धीमहि तन्नः शक्तिः प्रचोदयात् ॥60 काली ॐ कालिकायै च विद्महे श्मशानवासिन्यै च धीमहि तन्न अघोरा प्रचोदयात् ॥61 ॐ आद्यायै च विद्महे परमेश्वर्यै च धीमहि तन्नः कालीः प्रचोदयात् ॥62 देवी ॐ महाशूलिन्यै च विद्महे महादुर्गायै धीमहि तन्नो भगवती प्रचोदयात् ॥63 ॐ वाग्देव्यै च विद्महे कामराज्ञै च धीमहि तन्नो देवी प्रचोदयात् ॥64 गौरी ॐ सुभगायै च विद्महे काममालिन्यै च धीमहि तन्नो गौरी प्रचोदयात् ॥65 लक्ष्मी ॐ महालक्ष्मी च विद्महे विष्णुपत्नीश्च धीमहि तन्नो लक्ष्मीः प्रचोदयात् ॥66 ॐ महादेव्यै च विद्महे विष्णुपत्न्यै च धीमहि तन्नो लक्ष्मीः प्रचोदयात् ॥67 सरस्वती ॐ वाग्देव्यै च विद्महे विरिञ्चिपत्न्यै च धीमहि तन्नो वाणी प्रचोदयात् ॥68 सीता ॐ जनकनन्दिन्यै विद्महे भूमिजायै च धीमहि तन्नः सीता प्रचोदयात् ॥69 राधा ॐ वृषभानुजायै विद्महे कृष्णप्रियायै धीमहि तन्नो राधा प्रचोदयात् ॥70 अन्नपूर्णा ॐ भगवत्यै च विद्महे माहेश्वर्यै च धीमहि तन्न अन्नपूर्णा प्रचोदयात् ॥71 तुलसी ॐ तुलसीदेव्यै च विद्महे विष्णुप्रियायै च धीमहि तन्नो बृन्दः प्रचोदयात् ॥72 महादेव ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्रः प्रचोदयात् ॥73 रुद्र ॐ पुरुषस्य विद्महे सहस्राक्षस्य धीमहि तन्नो रुद्रः प्रचोदयात् ॥74 ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्रः प्रचोदयात् ॥75 शङ्कर ॐ सदाशिवाय विद्महे सहस्राक्ष्याय धीमहि तन्नः साम्बः प्रचोदयात् ॥76 नन्दिकेश्वर ॐ तत्पुरुषाय विद्महे नन्दिकेश्वराय धीमहि तन्नो वृषभः प्रचोदयात् ॥77 गणेश ॐ तत्कराटाय विद्महे हस्तिमुखाय धीमहि तन्नो दन्ती प्रचोदयात् ॥78 ॐ तत्पुरुषाय विद्महे वक्रतुण्डाय धीमहि तन्नो दन्तिः प्रचोदयात् ॥79 ॐ तत्पुरुषाय विद्महे हस्तिमुखाय धीमहि तन्नो दन्ती प्रचोदयात् ॥80 ॐ एकदन्ताय विद्महे वक्रतुण्डाय धीमहि तन्नो दन्तिः प्रचोदयात् ॥81 ॐ लम्बोदराय विद्महे महोदराय धीमहि तन्नो दन्तिः प्रचोदयात् ॥82 षण्मुख ॐ षण्मुखाय विद्महे महासेनाय धीमहि तन्नः स्कन्दः प्रचोदयात्॥83 ॐ षण्मुखाय विद्महे महासेनाय धीमहि तन्नः षष्ठः प्रचोदयात् ॥84 सुब्रह्मण्य ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महासेनाय धीमहि तन्नः षण्मुखः प्रचोदयात् ॥85 ॐ ॐ ॐकाराय विद्महे डमरुजातस्य धीमहि! तन्नः प्रणवः प्रचोदयात् ॥86 अजपा ॐ हंस हंसाय विद्महे सोऽहं हंसाय धीमहि तन्नो हंसः प्रचोदयात् ॥87 दक्षिणामूर्ति ॐ दक्षिणामूर्तये विद्महे ध्यानस्थाय धीमहि तन्नो धीशः प्रचोदयात् ॥88 गुरु ॐ गुरुदेवाय विद्महे परब्रह्मणे धीमहि तन्नो गुरुः प्रचोदयात् ॥89 हयग्रीव ॐ वागीश्वराय विद्महे हयग्रीवाय धीमहि तन्नो हंसः प्रचोदयात् ॥90 अग्नि ॐ सप्तजिह्वाय विद्महे अग्निदेवाय धीमहि तन्न अग्निः प्रचोदयात् ॥91 ॐ वैश्वानराय विद्महे लालीलाय धीमहि तन्न अग्निः प्रचोदयात् ॥92 ॐ महाज्वालाय विद्महे अग्निदेवाय धीमहि तन्नो अग्निः प्रचोदयात् ॥93 यम ॐ सूर्यपुत्राय विद्महे महाकालाय धीमहि तन्नो यमः प्रचोदयात् ॥94 वरुण ॐ जलबिम्बाय विद्महे नीलपुरुषाय धीमहि तन्नो वरुणः प्रचोदयात् ॥95 वैश्वानर ॐ पावकाय विद्महे सप्तजिह्वाय धीमहि तन्नो वैश्वानरः प्रचोदयात् ॥96 मन्मथ ॐ कामदेवाय विद्महे पुष्पवनाय धीमहि तन्नः कामः प्रचोदयात् ॥97 हंस ॐ हंस हंसाय विद्महे परमहंसाय धीमहि तन्नो हंसः प्रचोदयात् ॥98 ॐ परमहंसाय विद्महे महत्तत्त्वाय धीमहि तन्नो हंसः प्रचोदयात् ॥99 नन्दी ॐ तत्पुरुषाय विद्महे चक्रतुण्डाय धीमहि तन्नो नन्दिः प्रचोदयात् ॥100 गरुड ॐ तत्पुरुषाय विद्महे सुवर्णपक्षाय धीमहि तन्नो गरुडः प्रचोदयात् ॥101 सर्प ॐ नवकुलाय विद्महे विषदन्ताय धीमहि तन्नः सर्पः प्रचोदयात् ॥102 पाञ्चजन्य ॐ पाञ्चजन्याय विद्महे पावमानाय धीमहि तन्नः शङ्खः प्रचोदयात् ॥103 सुदर्शन ॐ सुदर्शनाय विद्महे महाज्वालाय धीमहि तन्नश्चक्रः प्रचोदयात् ॥104 अग्नि ॐ रुद्रनेत्राय विद्महे शक्तिहस्ताय धीमहि तन्नो वह्निः प्रचोदयात् ॥105 ॐ वैश्वानराय विद्महे लाललीलाय धीमहि तन्नोऽग्निः प्रचोदयात् ॥106 ॐ महाज्वालाय विद्महे अग्निमथनाय धीमहि तन्नोऽग्निः प्रचोदयात् ॥107 आकाश ॐ आकाशाय च विद्महे नभोदेवाय धीमहि तन्नो गगनं प्रचोदयात् ॥108 अन्नपूर्णा ॐ भगवत्यै च विद्महे माहेश्वर्यै च धीमहि तन्नोऽन्नपूर्णा प्रचोदयात् ॥109 बगलामुखी ॐ बगलामुख्यै च विद्महे स्तम्भिन्यै च धीमहि तन्नो देवी प्रचोदयात् ॥110 बटुकभैरव ॐ तत्पुरुषाय विद्महे आपदुद्धारणाय धीमहि तन्नो बटुकः प्रचोदयात् ॥111 भैरवी ॐ त्रिपुरायै च विद्महे भैरव्यै च धीमहि तन्नो देवी प्रचोदयात् ॥112 भुवनेश्वरी ॐ नारायण्यै च विद्महे भुवनेश्वर्यै धीमहि तन्नो देवी प्रचोदयात् ॥113 ब्रह्मा ॐ पद्मोद्भवाय विद्महे देववक्त्राय धीमहि तन्नः स्रष्टा प्रचोदयात्॥114 ॐ वेदात्मने च विद्महे हिरण्यगर्भाय धीमहि तन्नो ब्रह्मा प्रचोदयात् ॥115 ॐ परमेश्वराय विद्महे परतत्त्वाय धीमहि तन्नो ब्रह्मा प्रचोदयात् ॥116 चन्द्र ॐ क्षीरपुत्राय विद्महे अमृततत्त्वाय धीमहि तन्नश्चन्द्रः प्रचोदयात् ॥117 छिन्नमस्ता ॐ वैरोचन्यै च विद्महे छिन्नमस्तायै धीमहि तन्नो देवी प्रचोदयात्॥118 दक्षिणामूर्ति ॐ दक्षिणामूर्तये विद्महे ध्यानस्थाय धीमहि तन्नो धीशः प्रचोदयात्॥119 देवी ॐ देव्यैब्रह्माण्यै विद्महे महाशक्त्यै च धीमहि तन्नो देवी प्रचोदयात्॥120 धूमावती ॐ धूमावत्यै च विद्महे संहारिण्यै च धीमहि तन्नो धूमा प्रचोदयात्॥121 दुर्गा ॐ कात्यायन्यै विद्महे कन्याकुमार्यै धीमहि तन्नो दुर्गा प्रचोदयात्॥122 ॐ महादेव्यै च विद्महे दुर्गायै च धीमहि तन्नो देवी प्रचोदयात् ॥123 गणेश ॐ तत्पुरुषाय विद्महे वक्रतुण्डाय धीमहि तन्नो दन्ती प्रचोदयात्॥124 ॐ एकदन्ताय विद्महे वक्रतुण्डाय धीमहि तन्नो दन्ती प्रचोदयात् ॥125 गरुड ॐ वैनतेयाय विद्महे सुवर्णपक्षाय धीमहि तन्नो गरुडः प्रचोदयात् ॥126 ॐ तत्पुरुषाय विद्महे सुवर्णपर्णाय (सुवर्णपक्षाय) धीमहि तन्नो गरुडः प्रचोदयात् ॥127 गौरी ॐ गणाम्बिकायै विद्महे कर्मसिद्ध्यै च धीमहि तन्नो गौरी प्रचोदयात् ॥128 ॐ सुभगायै च विद्महे काममालायै धीमहि तन्नो गौरी प्रचोदयात् ॥129 गोपाल ॐ गोपालाय विद्महे गोपीजनवल्लभाय धीमहि तन्नो गोपालः प्रचोदयात् ॥130 गुरु ॐ गुरुदेवाय विद्महे परब्रह्माय धीमहि तन्नो गुरुः प्रचोदयात् ॥131 हनुमत् ॐ रामदूताय विद्महे कपिराजाय धीमहि तन्नो हनुमान् प्रचोदयात् ॥132 ॐ अञ्जनीजाय विद्महे वायुपुत्राय धीमहि तन्नो हनुमान् प्रचोदयात् ॥133 हयग्रीव ॐ वागीश्वराय विद्महे हयग्रीवाय धीमहि तन्नो हंसः प्रचोदयात् ॥134 इन्द्र, शक्र ॐ देवराजाय विद्महे वज्रहस्ताय धीमहि तन्नः शक्रः प्रचोदयात्॥135 ॐ तत्पुरुषाय विद्महे सहस्राक्षाय धीमहि तन्न इन्द्रः प्रचोदयात् ॥136 जल ॐ ह्रीं जलबिम्बाय विद्महे मीनपुरुषाय धीमहि तन्नो विष्णुः प्रचोदयात् ॥137 ॐ जलबिम्बाय विद्महे नीलपुरुषाय धीमहि तन्नस्त्वम्बु प्रचोदयात् ॥138 जानकी ॐ जनकजायै विद्महे रामप्रियायै धीमहि तन्नः सीता प्रचोदयात्॥139 जयदुर्गा ॐ नारायण्यै विद्महे दुर्गायै च धीमहि तन्नो गौरी प्रचोदयात् ॥140 काली ॐ कालिकायै विद्महे श्मशानवासिन्यै धीमहि तन्नोऽघोरा प्रचोदयात् ॥141 काम ॐ मनोभवाय विद्महे कन्दर्पाय धीमहि तन्नः कामः प्रचोदयात्॥142 ॐ मन्मथेशाय विद्महे कामदेवाय धीमहि तन्नोऽनङ्गः प्रचोदयात् ॥143 ॐ कामदेवाय विद्महे पुष्पबाणाय धीमहि तन्नोऽनङ्गः प्रचोदयात् ॥144ॐ दामोदराय विद्महे वासुदेवाय धीमहि तन्नः कृष्णः प्रचोदयात् ॥145ॐ देवकीनन्दनाय विद्महे वासुदेवाय धीमहि तन्नः कृष्ण: प्रचोदयात्:। बाल वनिता महिला आश्रम जय माता दी जय माँ गायत्री जय माँ भवानी

॥ सर्व गायत्रीमन्त्राः॥ 145 देवो के गायत्री मंत्र By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब 1 सूर्य ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ॥  2 ॐ आदित्याय विद्महे सहस्रकिरणाय धीमहि तन्नो भानुः प्रचोदयात् ॥  3 ॐ प्रभाकराय विद्महे दिवाकराय धीमहि तन्नः सूर्यः प्रचोदयात् ॥  4 ॐ अश्वध्वजाय विद्महे पाशहस्ताय धीमहि तन्नः सूर्यः प्रचोदयात् ॥  5 ॐ भास्कराय विद्महे महद्द्युतिकराय धीमहि तन्न आदित्यः प्रचोदयात् ॥  6 ॐ आदित्याय विद्महे सहस्रकराय धीमहि तन्नः सूर्यः प्रचोदयात् ॥  7 ॐ भास्कराय विद्महे महातेजाय धीमहि तन्नः सूर्यः प्रचोदयात् ॥  8 ॐ भास्कराय विद्महे महाद्द्युतिकराय धीमहि तन्नः सूर्यः प्रचोदयात् ॥  9 चन्द्र ॐ क्षीरपुत्राय विद्महे महाकालाय धीमहि तन्नश्चन्द्रः प्रचोदयात् ॥  10 ॐ क्षीरपुत्राय विद्महे अमृतत्वाय धीमहि तन्नश्चन्द्रः प्रचोदयात् ॥  11 ॐ निशाकराय विद्महे कलानाथाय धीमहि तन्नः सोमः प्रचोदयात् ॥  12 अङ्गारक, भौम, मङ्गल, कुज ॐ वीरध्वजाय विद्महे विघ्नहस्ताय धीमहि तन्नो भौमः प्रचोदयात् ॥  13 ॐ अङ्गारका...

श्री गायत्री चालीसा ॥दोहा॥ह्रीं, श्रीं क्लीं मेधा, प्रभा, जीवन ज्योति प्रचण्ड।शान्ति कान्ति, जागृति, प्रगति, रचना शक्ति अखण्ड॥जगत जननी, मंगल करनि, गायत्री सुखधाम।प्रणवों सावित्री, स्वधा स्वाहा पूरन काम॥बाल वनिता महिला आश्रम॥चौपाई॥भूर्भुवः स्वः ॐ युत जननी, गायत्री नित कलिमल दहनी।अक्षर चौविस परम पुनीता, इनमें बसें शास्त्र, श्रुति, गीता॥शाश्वत सतोगुणी सत रूपा, सत्य सनातन सुधा अनूपा।हंसारूढ़ सिताम्बर धारी, स्वर्ण कान्ति शुचि गगन-बिहारी॥पुस्तक पुष्प कमण्डलु माला, शुभ्र वर्ण तनु नयन विशाला।ध्यान धरत पुलकित हित होई, सुख उपजत दुःख दुर्मति खोई॥कामधेनु तुम सुर तरु छाया, निराकार की अदभुत माया।तुम्हरी शरण गहै जो कोई, तरै सकल संकट सों सोई॥सरस्वती लक्ष्मी तुम काली, दिपै तुम्हारी ज्योति निराली।तुम्हरी महिमा पार न पावैं, जो शारद शत मुख गुन गावैं॥चार वेद की मात पुनीता, तुम ब्रह्माणी गौरी सीता।महामन्त्र जितने जग माहीं, कोउ गायत्री सम नाहीं॥सुमिरत हिय में ज्ञान प्रकासै, आलस पाप अविद्या नासै।सृष्टि बीज जग जननि भवानी, कालरात्रि वरदा कल्याणी॥ब्रह्मा विष्णु रुद्र सुर जेते, तुम सों पावें सुरता तेते।तुम भक्तन की भक्त तुम्हारे, जननिहिं पुत्र प्राण ते प्यारे॥महिमा अपरम्पार तुम्हारी, जय जय जय त्रिपदा भयहारी।पूरित सकल ज्ञान विज्ञाना, तुम सम अधिक न जगमे आना॥तुमहिं जानि कछु रहै न शेषा, तुमहिं पाय कछु रहै न कलेशा।जानत तुमहिं तुमहिं व्है जाई, पारस परसि कुधातु सुहाई॥तुम्हरी शक्ति दिपै सब ठाई, माता तुम सब ठौर समाई।ग्रह नक्षत्र ब्रह्माण्ड घनेरे, सब गतिवान तुम्हारे प्रेरे॥सकल सृष्टि की प्राण विधाता, पालक पोषक नाशक त्राता।मातेश्वरी दया व्रत धारी, तुम सन तरे पातकी भारी॥जापर कृपा तुम्हारी होई, तापर कृपा करें सब कोई।मन्द बुद्धि ते बुद्धि बल पावें, रोगी रोग रहित हो जावें॥दारिद्र मिटै कटै सब पीरा, नाशै दुःख हरै भव भीरा।गृह क्लेश चित चिन्ता भारी, नासै गायत्री भय हारी॥सन्तति हीन सुसन्तति पावें, सुख संपति युत मोद मनावें।भूत पिशाच सबै भय खावें, यम के दूत निकट नहिं आवें॥जो सधवा सुमिरें चित लाई, अछत सुहाग सदा सुखदाई।घर वर सुख प्रद लहैं कुमारी, विधवा रहें सत्य व्रत धारी॥जयति जयति जगदम्ब भवानी, तुम सम ओर दयालु न दानी।जो सतगुरु सो दीक्षा पावे, सो साधन को सफल बनावे॥सुमिरन करे सुरूचि बड़भागी, लहै मनोरथ गृही विरागी।अष्ट सिद्धि नवनिधि की दाता, सब समर्थ गायत्री माता॥ऋषि, मुनि, यती, तपस्वी, योगी, आरत, अर्थी, चिन्तित, भोगी।जो जो शरण तुम्हारी आवें, सो सो मन वांछित फल पावें॥बल बुद्धि विद्या शील स्वभाउ, धन वैभव यश तेज उछाउ।सकल बढें उपजें सुख नाना, जो यह पाठ करै धरि ध्याना॥॥दोहा॥यह चालीसा भक्ति युत, पाठ करै जो कोय।तापर कृपा प्रसन्नता, गायत्री की होय॥By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब

  श्री गायत्री चालीसा                     ॥दोहा॥ ह्रीं, श्रीं क्लीं मेधा, प्रभा, जीवन ज्योति प्रचण्ड। शान्ति कान्ति, जागृति, प्रगति, रचना शक्ति अखण्ड॥ जगत जननी, मंगल करनि, गायत्री सुखधाम। प्रणवों सावित्री, स्वधा स्वाहा पूरन काम॥ बाल वनिता महिला आश्रम ॥चौपाई॥ भूर्भुवः स्वः ॐ युत जननी, गायत्री नित कलिमल दहनी। अक्षर चौविस परम पुनीता, इनमें बसें शास्त्र, श्रुति, गीता॥ शाश्वत सतोगुणी सत रूपा, सत्य सनातन सुधा अनूपा। हंसारूढ़ सिताम्बर धारी, स्वर्ण कान्ति शुचि गगन-बिहारी॥ पुस्तक पुष्प कमण्डलु माला, शुभ्र वर्ण तनु नयन विशाला। ध्यान धरत पुलकित हित होई, सुख उपजत दुःख दुर्मति खोई॥ कामधेनु तुम सुर तरु छाया, निराकार की अदभुत माया। तुम्हरी शरण गहै जो कोई, तरै सकल संकट सों सोई॥ सरस्वती लक्ष्मी तुम काली, दिपै तुम्हारी ज्योति निराली। तुम्हरी महिमा पार न पावैं, जो शारद शत मुख गुन गावैं॥ चार वेद की मात पुनीता, तुम ब्रह्माणी गौरी सीता। महामन्त्र जितने जग माहीं, कोउ गायत्री सम नाहीं॥ सुमिरत हिय में ज्ञान प्रकासै, आलस पाप अविद्या नासै। सृष्टि ...

आरती श्री विष्णु भगवान जी कीBy समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाबॐ जय जगदीश हरे, प्रभु! जय जगदीश हरे|भक्तजनों के संकट, क्षण में दूर करे||ॐ जय जगदीश हरे||जो ध्यावै फल पावै, दु:ख बिनसै मनका|सुख सम्पत्ति घर आवै, कष्ट मिटै तनका||ॐ जय जगदीश हरे||मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूँ किसकी|तुम बिन और न दूजा, आस करूँ जिसकी||ॐ जय जगदीश हरे||तुम पूरण परमात्मा, तुम अंतर्यामी|पार ब्रह्म परमेश्वर, तुम सबके स्वामी||ॐ जय जगदीश हरे||तुम करुणा के सागर, तुम पालनकर्ता|मैं मूरख खल कामी, कृपा करो भर्ता||ॐ जय जगदीश हरे||तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति|किस विधि मिलूँ दयामय, तुमको मैं कुमती||ॐ जय जगदीश हरे||दीनबन्धु, दु:खहर्ता तुम ठाकुर मेरे|अपने हाथ उठाओ, द्वार पड़ा (मैं) तेरे||ॐ जय जगदीश हरे||विषय विकार मिटाओ, पाप हरो देवा|श्रद्धा-भक्ति बढ़ाओ, संतन की सेवा||ॐ जय जगदीश हरे||ॐ जय जगदीश हरे, प्रभु! जय जगदीश हरे|भक्तजनों के संकट, क्षण में दूर करे||ॐ जय जगदीश हरे||

आरती श्री विष्णु भगवान जी की By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब ॐ जय जगदीश हरे, प्रभु! जय जगदीश हरे| भक्तजनों के संकट, क्षण में दूर करे|| ॐ जय जगदीश हरे|| जो ध्यावै फल पावै, दु:ख बिनसै मनका| सुख सम्पत्ति घर आवै, कष्ट मिटै तनका|| ॐ जय जगदीश हरे|| मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूँ किसकी| तुम बिन और न दूजा, आस करूँ जिसकी|| ॐ जय जगदीश हरे|| तुम पूरण परमात्मा, तुम अंतर्यामी| पार ब्रह्म परमेश्वर, तुम सबके स्वामी|| ॐ जय जगदीश हरे|| तुम करुणा के सागर, तुम पालनकर्ता| मैं मूरख खल कामी, कृपा करो भर्ता|| ॐ जय जगदीश हरे|| तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति| किस विधि मिलूँ दयामय, तुमको मैं कुमती|| ॐ जय जगदीश हरे|| दीनबन्धु, दु:खहर्ता तुम ठाकुर मेरे| अपने हाथ उठाओ, द्वार पड़ा (मैं) तेरे|| ॐ जय जगदीश हरे|| विषय विकार मिटाओ, पाप हरो देवा| श्रद्धा-भक्ति बढ़ाओ, संतन की सेवा|| ॐ जय जगदीश हरे|| ॐ जय जगदीश हरे, प्रभु! जय जगदीश हरे| भक्तजनों के संकट, क्षण में दूर करे|| ॐ जय जगदीश हरे||

जय लक्ष्मी मां

क्या आप लोग माता सरस्वती की तस्वीर को 1001 अपवोट दे सकते हैं? वनिता कासनियां पंजाब जय माँ सरस्वती फोटो गूगल

तत्व दृष्टि से बन्धन मुक्ति (भाग २५) तत्वज्ञान क्या है *********************By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब अब यहां पर ज्ञान का स्वरूप जानने से पूर्व यह जान लेना आवश्यक है कि आखिर दुःख की उत्पत्ति होती किन कारणों से? वैसे तो जीवात्मा अपने मूल रूप में आनन्दमय है। तब अवश्य ही कोई कारण ऐसा होना चाहिये जो उसके लिये दुःख की सृष्टि करता है। उसको भी योगवाशिष्ठ में इस प्रकार बताया गया है—‘‘देह दुःख विदुर्व्याधिमाध्याख्यं मानसामयम् ।मौर्ख्य मूले हते विद्यातत्वज्ञाने परीक्षयः ।।’’शारीरिक दुःखों को व्याधि और मानसिक दुःखों को आधि कहते हैं। यह दोनों मुख्य अर्थात् अज्ञान से ही उत्पन्न होती हैं और ज्ञान से नष्ट होती हैं।बाल वनिता महिला आश्रमसंसार के सारे दुःखों का एकमात्र हेतु अविद्या अथवा अज्ञान ही है। जिस प्रकार प्रकाश का अभाव अन्धकार है और अन्धकार का अभाव प्रकाश होता है, उसी प्रकार ज्ञान का अभाव अज्ञान और अज्ञान का ज्ञान होना स्वाभाविक ही है और जिस प्रकार ज्ञान का परिणाम सुख-शान्ति और आनन्द है उसी प्रकार अज्ञान का फल दुःख, अशान्ति और शोक-सन्ताप होना ही चाहिये।यह युग-युग का अनुभूत तथा अन्वेषित सत्य है कि दुःखों की उत्पत्ति अज्ञान से ही होती है और संसार के सारे विद्वान, चिन्तक एवं मनीषी जन इस बात पर एकमत पाये जाते हैं। इस प्रकार सार्वभौमिक और सार्वजनिक रूप से प्रतिपादित तथ्य में संदेह की गुंजाइश रह ही नहीं जाती—इस प्रकार अपना-अपना मत देते हुये विद्वानों ने कहा है—चाणक्य ने लिखा—‘‘अज्ञान के समान मनुष्य का और कोई दूसरा शत्रु नहीं है।’’ विश्वविख्यात दार्शनिक प्लेटो ने कहा है—‘अज्ञानी रहने से जन्म न लेना ही अच्छा है, क्यों कि अज्ञान ही समस्त विपत्तियों का मूल है।’’ शेक्सपियर ने लिखा है—‘‘अज्ञान ही अन्धकार है।’’जीवन की समस्त विकृतियों, अनुभव होने वाले दुःखों, उलझनों और अशान्ति आदि का मूल कारण मनुष्य का अपना अज्ञान ही होता है। यही मनुष्य का परम शत्रु है। अज्ञान के कारण ही मनुष्य भी अन्य जीव-जन्तुओं की तरह अनेक दृष्टियों से हीन अवस्था में ही पड़ा रहता है। ज्ञान के अभाव में जिनका विवेक मन्द ही बना रहता है उनके जीवन के अन्धकार में भटकते हुये तरह-तरह के त्रास आते रहते हैं। अज्ञान के कारण ही मनुष्य को वास्तविक कर्तव्यों की जानकारी नहीं हो पाती इसलिये वह गलत मार्गों पर भटक जाता है और अनुचित कर्म करता हुआ दुःख का भागी बनता है। इसलिये दुःखों से निवृत्ति पाने के लिये यदि उनका कारण अज्ञान को मिटा दिया जाये तो निश्चय ही मनुष्य सुख का वास्तविक अधिकारी बन सकता है।अज्ञान का निवारण ज्ञान द्वारा ही हो सकता है। शती उसकी विपरीत वस्तु आग द्वारा ही दूर होता है। अन्धकार की परिसमाप्ति प्रकाश द्वारा ही सम्भव है। इसलिये ज्ञान प्राप्त का जो भी उपाय सम्भव हो उसे करते ही रहना चाहिये।ज्ञान का सच्चा स्वरूप क्या है? केवल कतिपय जानकारियां ही ज्ञान नहीं माना जा सकता। सच्चा ज्ञान वह है जिसको पाकर मनुष्य आत्मा परमात्मा का साक्षात्कार कर सके। अपने साथ अपने इस संसार को पहचान सके। उसे सत् और असत् कर्मों की ठीक-ठीक जानकारी रहे और वह जिसकी प्रेरणा से असत् मार्ग को त्याग कर सन्मार्ग पर असंदिग्ध रूप से चल सके। कुछ शिक्षा और दो-चार शिल्पों को ही सीख लेना भर अथवा किन्हीं उलझनों को सुलझा लेने भर की बुद्धि ही ज्ञान नहीं है। ज्ञान वह है जिससे जीवन-मरण, बन्धन-मुक्ति, कर्म-अकर्म और सत्य-असत्य का न केवल निर्णय ही किया जा सके बल्कि गृहणीय को पकड़ा और अग्राह्य को छोड़ा जा सके, वह ज्ञान आध्यात्मिक ज्ञान ही है।अज्ञान की स्थिति में कर्मों का क्रम बिगड़ जाता है। संसार में जितने भी सुख-दुःख आदि द्वन्द्व हैं वे सब कर्मों का फल होता है। अज्ञान द्वारा अपकर्म होना स्वाभाविक ही है और तब उनका दण्ड मनुष्य को भोगना ही पड़ता है। इतना ही क्यों सकाम भाव से किये सत्कर्म सुख के फल रूप में परिपक्व होते हैं और असत्य होने से कुछ ही समय में दुःख रूप में परिवर्तित हो जाते हैं। इसलिये कर्म ही अधिकतर बन्धनों अथवा दुःख को मनुष्य पर आरोपित कराते हैं।

तत्व दृष्टि से बन्धन मुक्ति (भाग २५)           तत्वज्ञान क्या है         ********************* By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब अब यहां पर ज्ञान का स्वरूप जानने से पूर्व यह जान लेना आवश्यक है कि आखिर दुःख की उत्पत्ति होती किन कारणों से? वैसे तो जीवात्मा अपने मूल रूप में आनन्दमय है। तब अवश्य ही कोई कारण ऐसा होना चाहिये जो उसके लिये दुःख की सृष्टि करता है। उसको भी योगवाशिष्ठ में इस प्रकार बताया गया है— ‘‘देह दुःख विदुर्व्याधि माध्याख्यं मानसामयम् । मौर्ख्य मूले हते विद्या तत्वज्ञाने परीक्षयः ।।’’ शारीरिक दुःखों को व्याधि और मानसिक दुःखों को आधि कहते हैं। यह दोनों मुख्य अर्थात् अज्ञान से ही उत्पन्न होती हैं और ज्ञान से नष्ट होती हैं। बाल वनिता महिला आश्रम संसार के सारे दुःखों का एकमात्र हेतु अविद्या अथवा अज्ञान ही है। जिस प्रकार प्रकाश का अभाव अन्धकार है और अन्धकार का अभाव प्रकाश होता है, उसी प्रकार ज्ञान का अभाव अज्ञान और अज्ञान का ज्ञान होना स्वाभाविक ही है और जिस प्रकार ज्ञान का परिणाम सुख-शान्ति और आनन्द है उसी प्रकार अज्ञान का फ...

जय श्री लक्ष्मी मां

. आगामी दिनांक 06.06.2021 दिन रविवार को आनेवाली है, ज्येष्ठ माह के कृष्णपक्ष की एकादशी👇                              “अपरा एकादशी"            ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम अपरा है। अपरा अर्थात अपार या अतिरिक्त, जो प्राणी एकादशी का व्रत करते हैं, उन्हें भगवान श्रीहरि विष्णु की अतिरिक्त भक्ति प्राप्त होती है। भक्ति और श्रद्धा में वृद्धि होती है। एकादशी व्रत का संबंध केवल पाप मुक्ति और मोक्ष प्राप्ति से नहीं है। एकादशी व्रत भौतिक सुख और धन देने वाली भी मानी जाती है। ज्येष्ठ मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी ऐसी ही एकादशी है जिस दिन व्रत रखकर भगवान विष्णु की पूजा करने से अपार धन प्राप्त होता है। यही कारण है कि इस एकादशी को अपरा एकादशी के नाम से जाना जाता है। अपरा एकादशी को अचला एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन भगवान विष्णु व उनके पांचवें अवतार वामन ऋषि की पूजा की जाती है। अपरा एकादशी व्रत के प्रभाव से अपार खुशियों की प्राप्ति तथा पापों का नाश होता है।   ...

The tenth Mahavidya Maa Kamala is the goddess of wealth and splendor By Social Activist Vnita Kasniya PunjabThe tenth Mahavidya Kamala is the goddess of wealth and glory. All the goddesses included in the ten Mahavidyas are the goddesses of wealth and splendor. everything to the seeker

दसवीं महाविद्या माँ कमला हैं धन-वैभव की देवी By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब  : दसवीं महाविद्या कमला हैं धन-वैभव की देवी। दस महाविद्या में शामिल सभी देवियां धन-वैभव की देवी हैं। वह साधक को सब कुछ देने में समर्थ हैं। फिर भी साधक की सुविधा, साधना क्रम और आध्यात्मिक लक्ष्य के अनुरूप इन्हें क्रम दिया गया है। दस महाविद्याओं में दसवें स्थान पर स्थित हैं माता कमला। सिद्धविद्यात्रयी में इनको तीसरा स्थान प्राप्त है। इनकी उपासना दक्षिण और वाम दोनों मार्ग से की जाती है। इनके अधिष्ठाता का नाम सदाशिव-विष्णु है। यह मुख्य रूप से धन-वैभव की देवी मानी जाती हैं। इसके साथ ही ऐश्वर्य और श्री प्रदान करने वाली हैं। श्रद्धा और नियम पूर्वक दरिद्रता, संकट, गृहकलह और अशांति को दूर करती है कमलारानी। इनकी सेवा और भक्ति से व्यक्ति सुख और समृद्धि पूर्ण रहकर शांतिमय जीवन बिताता है।   श्वेत वर्ण के चार हाथी सूंड में सुवर्ण कलश लेकर सुवर्ण के समान कांति लिए हुए मां को स्नान करा रहे हैं। कमल पर आसीन कमल पुष्प धारण किए हुए मां सुशोभित होती हैं। समृद्धि, धन, नारी, पुत्रादि के लिए इनकी साधना की जाती ...