भगवान् विष्णु ने विश्व मोहनी कन्या का रूप कब लिया था?By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाबसमुद्र मंथन के अंत में भगवान धन्वन्तरि अमृत कलश लेकर प्रगट हुए ,अमृत कुम्भ निकलते ही धन्वन्तरि के हाथ से अमृतपूर्ण कलश छीनकर दैत्य लेकर भागे, क्योंकि उनमें से प्रत्येक सबसे पहले अमृत पान करना चाहते था।कलश के लिये छीना झपटी चल रही थी और देवता निराश खड़े थे अचानक वहाँ एक अदि्वतीय सौन्दर्यशालिनी नारी प्रकट हुई असुरों ने उसके सौन्दर्य से प्रभावित होकर उससे मध्यस्थ बनकर अमृत बाँटने की प्रार्थना की** वास्तव में भगवान विष्णु ने ही दैत्यों को मोहित करने के लिए मोहिनीरूप धारण किया था।***मोहिनीधारी भगवान ने कहा - मैं विभाजन का कार्य करूँ, चाहे वह उचित हो या अनुचित- तुम लोग बीच में बाधा न उपस्थित करने का वचन दो तभी में कार्य को करूँगी।*सभी ने इस शर्त को स्वीकार किया, देवता और दैत्य अलग अलग पंक्तियों में बैठ गये। जिस समय भगवान मोहिनी रूप में देवताओं को अमृत पिला रहे थे। राहु धैर्य न रख सका वह देवताओं का रूप धारण करके सूर्य - चन्द्रमा के बीच में बैठ गया।जैसे ही उसे अमृत का एक घूट मिला, सूर्य-चन्द्रमा ने संकेत कर दिया। भगवान मोहिनी रूप त्याग करके चक्रधारी विष्णु हो गये और उन्होंने चक्र से राहु का सिर काट डाला.अमृत के प्रभाव से राहु के सर और धड़ से राहु और केतु दो दैत्यों का रूप ले लिया।असुरों ने भी अपना शस्त्र उठाया और देवासुर संग्राम प्रारम्भ हो गया। अमृत के प्रभाव से तथा भगवान की कृपा से देवताओं की विजय हुई और उन्हें अपना स्वर्ग पुन: वापस मिला।भस्मासुर के वध के लिए भी भगवान विष्णु विश्व मोहनी कन्या बने थे
भगवान् विष्णु ने विश्व मोहनी कन्या का रूप कब लिया था? By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब समुद्र मंथन के अंत में भगवान धन्वन्तरि अमृत कलश लेकर प्रगट हुए ,अमृत कुम्भ निकलते ही धन्वन्तरि के हाथ से अमृतपूर्ण कलश छीनकर दैत्य लेकर भागे, क्योंकि उनमें से प्रत्येक सबसे पहले अमृत पान करना चाहते था। कलश के लिये छीना झपटी चल रही थी और देवता निराश खड़े थे अचानक वहाँ एक अदि्वतीय सौन्दर्यशालिनी नारी प्रकट हुई असुरों ने उसके सौन्दर्य से प्रभावित होकर उससे मध्यस्थ बनकर अमृत बाँटने की प्रार्थना की** वास्तव में भगवान विष्णु ने ही दैत्यों को मोहित करने के लिए मोहिनीरूप धारण किया था।** *मोहिनीधारी भगवान ने कहा - मैं विभाजन का कार्य करूँ, चाहे वह उचित हो या अनुचित- तुम लोग बीच में बाधा न उपस्थित करने का वचन दो तभी में कार्य को करूँगी।* सभी ने इस शर्त को स्वीकार किया, देवता और दैत्य अलग अलग पंक्तियों में बैठ गये। जिस समय भगवान मोहिनी रूप में देवताओं को अमृत पिला रहे थे। राहु धैर्य न रख सका वह देवताओं का रूप धारण करके सूर्य - चन्द्रमा के बीच में बैठ गया। जैसे ही उसे अमृत का एक घूट मिला, सूर्य-...